जबलपुर से पत्रकार दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट
आज भास्कर, जबलपुर। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज के मुख्यमंत्री के कार्यकाल में, बालाघाट के मंत्री गौरीशंकर बिसेन को शिवराज के प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष सहयोग समर्थन और मार्गदर्शन के चलते शिवराज की ससुराल गोंदिया से कृषि कॉलेज बालाघाट में अशासकीय सेवा से शासकीय सेवा में अंतरप्रांतीय प्रतिनियुक्ति पाने वाली धारणा बिसेन और उनके पति शरद बिसेन अब अपना आखिरी दाव खेलने में जुटे हैं।
इस आखिरी दाव को कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर से समर्थन देने वाले प्रभारी वित्त नियंत्रक और केवीके के वैज्ञानिक अजय खरे, उनके सहयोगी सहायक कुलसचिव प्रशांत श्रीवास्तव के नाम पर है। ग़तांक 15 - 16 में आप पढ़ चुके हैं कि चतुर गुट के प्यादे अजय खरे - प्रशांत श्रीवास्तव ने वकीलों से तैयार कराए पत्र को पहले कुलसचिव एके जैन के पास भिजवाया, जब कुलसचिव ने कहा कि वित्त नियंत्रक अजय खरे का मसला है तो वित्त नियंत्रक अजय खरे ने कथित वकील की भाषा में तैयार कराए गए वेतन भुगतान करने के पत्र को शब्दशह स्वीकार करते हुए 23 जनवरी25 को वेतन दिए जाने संबंधी मार्गदर्शन डीन एन के बिसेन को बालाघाट भेजा था।
विश्वविद्यालय रूपी भ्रष्टाचार के अड्डे में संघ के स्वयंसेवक अजय खरे का खुला समर्थन देखकर यह लेखक हतप्रभ था, सोशल मीडिया पर सार्वजनिक दबाव पड़ने के बाद अजय खरे ने दोबारा डीन बालाघाट को पत्र लिखा कि ऑडिट आपत्ति के मद्देनजर धारणा को वेतन भुगतान नहीं किया जाए। यह दोनों पत्र अभी आरटीआई से मांगने के बावजूद नहीं मिले हैं लेकिन अजय खरे ने जो पत्र दिया है उसके मुताबिक वह यह पत्र लोग सूचना अधिकारी को दे चुके हैं, इसके बाद विश्वविद्यालय का ब्रह्म- भ्रष्टाचारी प्रमंडल जिसमें कुलगुरु पीके मिश्रा, डीएसडब्ल्यू अमित शर्मा, उप कुलसचिव तोताराम शर्मा, अजय खरे, प्रशांत श्रीवास्तव शामिल है ने नवागत कुलसचिव को भ्रष्टाचार के गुड़ में लपेटने के लिए अपना एक और पासा फेंका। इस पांसा के अंतर्गत अधिष्ठाता बालाघाट एनके बिसेन से पुनः कुलसचिव को संबोधित पत्र 19 जनवरी 25 की तारीख में डाक से विश्वविद्यालय जबलपुर भेजा गया।
जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय में यह पत्र 06 फरवरी को कुलसचिव कार्यालय में आवक हुआ, 7 फरवरी को स्थापना एक में पहुंचा। अधिष्ठाता एनके बिसेन का पत्र क्रमांक 1020/ 13 1 25 मैं स्थानीय निधि संपरीक्षा सिविक सेंटर जबलपुर के द्वारा लगाई गई ऑडिट आपत्ति को उनमोचित अर्थात रिमूव अर्थात समाप्त करते हुए धारणा का रुका हुआ वेतन शुरू करने की मांग कुलसचिव से की गई थी।
जैसा कि मैं पूर्व में स्पष्ट कर चुका हूं कि अजय खरे कथिततौर पर शासन से प्राप्त बड़ी-बड़ी रकम बैंक में एफडी करने के नाम पर खुद और कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा को कमीशन दिलवाते हैं।
पिछले अंक में सार्वजनिक तौर पर बेनकाब होने के बाद इस बार अजय खरे सतर्क हुए, और टीम बी के सदस्य प्रशांत श्रीवास्तव को धारणा की ऑडिट आपत्ति को खत्म करने की पेरवी करने के लिए कुलसचिव के पास भेजा,। क्योंकि ऑडिट आपत्ति पर पूर्व में अजय खरे ने टिप देकर दस्तखत 11. 11. 2022 किए थे। इसीलिए वित्त नियंत्रक और उसके वेतन निर्धारण शाखा के प्रभारी मिश्रा का हस्तक्षेप होने का हवाला देते हुए कुलसचिव ने पत्र मूलतः वित्त नियंत्रक के पास वापस भेजा,। स्वाभाविक है वित्तीय गड़बड़ी धांधली और गवन का प्रकरण होने के कारण इस प्रकरण में कुलसचिव का कोई दखल नहीं बनता है। यदि गोपनीय चरित्रावली अर्थात सर्विस बुक का मामला होता तो एक बार कुल सचिव मामले को देख सकते थे। इस तरह धरना की सर्विस बुक में सबसे पहले सहयोग करने वाले बालाघाट के ऋषिकेश ठाकुर, एनके बिसेन ,उत्तम बिसेन, शरद बिसेन, को विश्वविद्यालय से सहयोग करने वाली कड़ी के दमदार हिस्से संघ के स्वयंसेवक अजय खरे और प्रशांत श्रीवास्तव को मुंह के बल धड़ाम से जमीन में गिरना पड़ा।
इस तरह इस भ्रष्टाचारी गैंग का एकदांव फिर फेल हो गया।
अब इस पत्र रूपी दांव के फेल होने की आगे की कहानी सुनिए।
पिछले 8 सालों से केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज के प्रत्यक्ष और परोक्ष ऊपरी समर्थन के सहारे पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन की बहू धरना और भतीजा शरद कृषि कॉलेज बालाघाट में लोगों को खून के आंसू रुला रहे थे, दोनों को पहली बार सार्वजनिक रूप से आंसू बहाने के लिए मजबूर होना पड़ा,
दूसरों को पांव की ठोकर में रखने वाले बिसेन दंपति को कभी उम्मीद नहीं रही होगी कि इतना उच्चस्तरीय केंद्रीय कृषिमंत्री के सहयोग वाला भ्रष्टाचार पकड़ा जाएगा।
(केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान का पूरे मामले में बार-बार आरोपों में आना, इसका कुछ आधार है जो यह बताता है की पूरी डोर ऊपर से चल रही है इस पर मैं बाद में चर्चा करूंगा, इसमें दो बिंदु शामिल है पहले विशेष स्थापना पुलिस लोकायुक्त में प्रकरण का एक सप्ताह में खात्मा लग जाना और दूसरा विधानसभा में ध्यान आकर्षण सूचना क्रमांक 57 में झूठी जानकारी पटल पर रखवाना और प्रकरण का समाप्त किया जाना।)
इतना सब होने के बाद भी बालाघाट कृषि कॉलेज के अधिष्ठाता एनके बिसेन रिश्तेदारी निभाते हुए लगातार चारों तरफ से झूठ भ्रष्टाचार और अपराध को समर्थन और सहयोग देने का काम कर रहे हैं।
मैंने गत अंक में आपको धरना बिसेन को छठवां और सातवां वेतनमान दिए जाने संबंधी स्टोरी देने का उल्लेख किया था, पर इसे अब कुछ समय के लिए आगे बढ़ा दिया है।
प्रकरण में आरटीआई आवेदन क्रमांक 120 और 121 लगा हुआ था जिसमें विधानसभा में प्रस्तुत किए गए अभिलेखों की मांग की गई थी।
क्योंकि जानकारी विधानसभा में प्रस्तुत कर दी गई थी इसलिए अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार अधिष्ठाता बालाघाट एनके विसेन ने मजबूरी में जानकारी भेजी है।
यह वही एनके बिसेन है जिसने सर्वप्रथम आरटीआई को मूलतः वापस लौटाया था।
तत्पश्चात प्रथम अपील में कृषि विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता धीरेंद्र खरे के पास सुनवाई में चाहे गए अभिलेख प्रदान करना पड़े थे।
क्योंकि शैक्षणिक स्तर के अधिकारी प्रशासनिक नहीं होते इसीलिए प्रथम अपील अधिकारी श्री खरे ने नरमी बरती और केवल जानकारी दिलवाते हुए और एनके बिसेन को बख्श दिया । अन्यथा इस मामले में कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान अधिनियम में दिया है। जिसके तहत आर्थिक दंड और सेवा पुस्तिका में लालस्याही से टिप लिखने का प्रावधान है। यह प्रशासनिक प्रावधान नहीं है यह न्यायिक प्रावधान है जो सही होने पर,किसी भी स्तर पर बदला नहीं जा सकता है।
इस तरह के एनके बिसेन एक कठोर कार्रवाई से बच गए परंतु यह कठोर कार्रवाई कभी भी खोली जा सकती है क्योंकि इसमें कोई समयसीमा का बंधन नहीं है, जिस तरह बारिश का मौसम आते ही मिट्टी में छुपे नाना प्रकार के वनस्पति अनुकूल मौसम पाते ही पुष्पित और पल्लवित होते हैं, इस तरह यथाअनुरूप यथाअनुकूल समय पाते ही अधिनियम के यह प्रावधान भी लागू किया जा सकते हैं।
क्योंकि स्पष्ट दिखाई दे रहा है की अधिष्ठाता कृषि कॉलेज बालाघाट एनके बिसेन जिन्होंने धारणा को छठवां और सातवां वेतनमान देने की एंट्री धरना की सेवा पुस्तिका में की है।
पुराने तीन ड्राइंग डिस्वर्सिंग ऑफिसर और पुराने तीन अधिष्ठाता के साथ वित्तीय नियमों की अनदेखी करने में, उल्लंघन करने में और स्थानीय निधि संपरीक्षा आर के कोष्टा का आदेश नहीं मानने में आज तक संलग्न है, ऐसी स्थिति में शासकीय राशि का जानते बुझते हुए, जानबूझकर अपभक्षण करने और कराने के मामले में अपराधिक मामले में आरोपी बन गए हैं।
जिसमें 3 साल से लेकर अधिकतम 10 साल और आजन्म कारावास तक की सजा प्रकरण की गंभीरता को देखकर हो सकती है।
बहरहाल मैं आप सबको पुनः अधिष्ठाता कृषि कॉलेज बालाघाट एनके बिसेन के उसे अंतिम प्रयास की याद दिला दूं जिसके तहत और वित्त नियंत्रक जबलपुर अजय खरे और सहायक कुल सचिव विधि और बैठक प्रशांत श्रीवास्तव के सहयोग और सलाह से कुलसचिव जबलपुर को बलि का बकरा बनाने का प्रयास किया था। संजोगवश आरटीआई आवेदन में यह सारे तथ्य उठाए गए हैं और कुलसचिव, लोक सूचना अधिकारी होने के कारण अधिनियम के मुताबिक सर्वोच्च अधिकारी हैं जिनके अधीन कुलपति भी आता है। इन तथ्यों के दृष्टिगत होने से डीन बालाघाट एनके विसेन का कुत्सित प्रयास सफल नहीं हो पाया और पहली बार पूरे बालाघाट कॉलेज को पैर की ठोकर में रखने वाली धरना और शरद को सार्वजनिक रूप से रोते हुए मुरझाड़ फार्म स्थित घर को वापस लौटना पड़ा।
एनके बिसेन अभी भी धरना बिसेन और शरद बिसेन को रिश्तेदारी होने के कारण सहयोग कर रहे हैं। लगातार अपराध में फंसते जा रहे हैं। यह वही अधिष्ठाता एनके बिसेन हैं जिन्होंने दिसंबर 22 में कृषि विश्वविद्यालय के 26 लोगों को सातवां वेतनमान देने की सूची में धरना का नाम26वें क्रम में जोड़ा है और पूरी तरह से बोगस फर्जी झूठी सेवा पुस्तिका में सातवां वेतनमान देने की टिप लिखी है और दस्तखत किए हैं और मुहर लगाए हैं लेकिन तारीख नहीं डाली है।
सर्विस बुक पर हम बाद में बात करेंगे क्योंकि यह बहुत विस्तार का विषय है और इसी सर्विस बुक में डॉक्टर धरना रामकिशोर टेंभरे बिसेन की धोटे बंधु साइंस कॉलेज गोंदिया से पांचवी रिलीविंग डेट ऑन रिकॉर्ड मिल गई है।
इस इस सर्विस बुक में पूरे मामले से खुद को ऑन रिकॉर्ड अलग कर लेने वाले पूर्व डीडीओ घनश्याम देशमुख और इस समय सागर में पदस्थ डॉक्टर अजय सिंह लोधी ने गवाह के रूप में दस्तक किए हैं, ।
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मार्गदर्शन सहयोग और संरक्षण के बल पर बालाघाट के मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने यह जो गैरकानूनी काम अपने कुलपति भाई पीके बिसेन से कराया है उसके पूरे प्रमाण अभी तक सामने आए थे, सर्विस बुक के सामने आने से अब यह सभी प्रमाण प्रमाणित हो गए हैं। हाथ कंगन को आरसी क्या पढ़े लिखे को फारसी क्या?
यह सारा अपराध विश्लेषण आप लगातार अगले अंकों में देखेंगे,
क्रमशः -------------