
जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट
आज भास्कर\जबलपुर। मुख्यमंत्री मोहन यादव और भाजपा की सरकारों के लिए यह बड़ा नीतिगत विषय है की विधानसभा में गलत और झूठा जवाब प्रस्तुत करने वालों पर क्या कार्रवाई की जाए। इस विषय पर गाइडलाइन के साथ-साथ विशेष दिशा निर्देश जारी किया जाना जरूरी है कि विधानसभा में उठाए गए ध्यानाकर्षण सूचना पर सही जवाब आ रहे हैं या नहीं आ रहे हैं और यदि गलत और असत्य जानकारी के साथ धोखेबाजी जालसाजी की जा रही है तो जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई का रास्ता अब खोल देना चाहिए। क्योंकि यहां विधानसभा के सम्मान और गरिमा के साथ खिलवाड़ पर बहुत गंभीर रुख अख्तियार करना चाहिए।
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वर्तमान कुलगुरु , भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के ससुर डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा के दस्तखत से अशासकीय सेवा से शासकीय सेवा में अंतरराज्यीय प्रतिनियुक्ति पाने वाली डॉक्टर धरना रामकिशोर टैमरे बिसेन का मसला विधानसभा में 9 सितंबर 2022 को विधानसभा ध्यानाकर्षण सूचना क्रमांक 57 उठा है।
कुलगुरु प्रमोद कुमार मिश्रा ने खुद को बचाने की नीयत से कथित तौर पर आधी अधूरी अपूर्ण और झूठी जानकारी विधानसभा में सितंबर 2022 में भेजी है।, वह जानकारी विधानसभा में उठाए गए सवाल की आंशिक पूर्ति करती है।
या यह कह सकते हैं कि दोषियों को बचाने के लिए विधानसभा में उठे सवाल का जवाब कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा ने बदल दिया , विधानसभा ने भी इस पर गौर नहीं किया है। विश्वविद्यालय से भी किसी ने ध्यान नहीं दिया।, आज तक किसी का ध्यान नहीं गया कि विधानसभा में पूछा क्या है और जवाब क्या जा रहा है,।
इस घोर लापरवाही के लिए विधानसभा का जवाब तैयार करने वालों को 15 दिन में कारण बताओ नोटिस देते हुए अनुशासनातमक कार्रवाई कर देनी चाहिए।
विधानसभा में 9 सितंबर 2022 को ध्यानाकर्षण सूचना क्रमांक 57 की जानकारी किसान कल्याण तथा कृषि विकास मध्य प्रदेश भोपाल से जबलपुर भेजी गई। 12 सितंबर 2022 को कृषि विश्वविद्यालय के भोपाल स्थित संपर्क अधिकारी ने ध्यानाकर्षण सूचना 57 जबलपुर भेजी और 15 सितंबर को जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय में यह जानकारी आवक हुई है।
विधानसभा में पूछा गया है कि धारणा बिसेन पत्नी शरद बिसेन को जूलॉजी में स्नातकोत्तर होने के आधार पर सहायक अध्यापक एंटोंमोलॉजी किटशास्त्र बना दिया गया है। नियमविरुद्ध नियुक्ति किए जाने से उत्पन्न स्थिति के बारे में विधानसभा के ध्यान आकर्षण का उत्तर शीघ्र उपलब्ध कराना सुनिश्चित करें।विधानसभा में उठा मुद्दा 100% सही है, बल्कि 1000 प्रतिशत सही है, यदि किसी ने रामायण में एमए किया है तो वह महाभारत विषय ठीक से नहीं पढ़ा सकता। और यदि महाभारत में एमए किया है तो रामायण ठीक से नहीं पढ़ा सकता। क्योंकि किसी भी विषय में डूबना पड़ता है, गहराई तक जाना पड़ता है, और तब उसका भाव, विचार ,भावार्थ और मंथन के बाद निष्कर्ष, और विचार मीमांसा निकल कर आता है। धारणा बिसेन के जूलॉजी अर्थात बायोलॉजी में कभी भी कृषि का कीटशास्त्र नहीं पढ़ाया जाता है। इसी तरह कृषि के कीटशास्त्र में जूलॉजी या बायोलॉजी नाम की कोई चीज नहीं होती है। कृषि की फसल को कीड़े मकोड़े कितना फायदा और नुकसान पहुंचा सकते हैं इस कोर्स को कृषि के बीएससी में पांच पेपर में पढ़ना पड़ता है, और इसके बाद इसमें पीजी अर्थात पोस्ट ग्रेजुएट अर्थात स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण करना पड़ती है।
कृषि का बीएससी केवल कृषि कॉलेज और कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत होता है। और किटशास्त्र विषय केवल दो या तीन कृषि कॉलेज में ही पढ़ाया जाता है इनमें रीवा कॉलेज, पवारखेड़ा कॉलेज और एक अन्य कॉलेज शामिल है। धरना विषय ने किट शास्त्र विषय का एबीसीडी भी नहीं पड़ा और आज वह किस प्रकार कृषि कॉलेज बालाघाट में कृषि के छात्रों को किट शास्त्र विषय पढ़ा रही होगी अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस एक गलती ने कृषि कॉलेज बालाघाट का स्तर कितना गिरा दिया है। इस ध्यानाकर्षण सूचना का जवाब देने के लिए यह विचित्र सत्य स्वीकार करना पड़ेगा की कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर और कृषि कॉलेज बालाघाट के पास विधानसभा ध्यान आकर्षण सूचना क्रमांक 57 का कोई जवाब नहीं था। इसीलिए फरवरी 2025 में यह जानकारी डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया महाराष्ट्र से मंगाई गई जहां पर धारणा बिसेन ने जूलॉजी विषय में सहायक प्राध्यापक के पद पर अपनी सेवा 14 सितंबर 2012 से शुरू की थी।
जब इस संबंध में खोजबीन की गई तब लोक सूचना अधिकारी कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर ने आरटीआई आवेदन क्रमांक 120 दिनांक 25.2.2025 को मूलत डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया के प्राचार्य डॉक्टर अंजन कुमार एस नायडू को भेज कर, तुरंत जानकारी सीधे इस लेखक के पास पहुंचाई, जिससे यह प्रमाणित होता है कि कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर और कृषि महाविद्यालय बालाघाट के पास विधानसभा के समक्ष रखी जाने वाली जानकारी गत 8 साल से नहीं थी , वास्तविक सवाल के जवाब को छुपाते हुए विधानसभा में जानबूझकर झूठ और गलत जवाब अथवा जानकारी प्रस्तुत करना गंभीर अपराध की श्रेणी में आ सकता है। विधानसभा में भी संभवतह गलत और झूठा जवाब पेश किया गया है।
क्योंकि यदि चाही गई जानकारी कृषि कॉलेज बालाघाट और कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर में होती तो निश्चित रूप से लोकसूचना के माध्यम से जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय के लोकसूचना अधिकारी के माध्यम से ही जानकारी मिल जाती ,लेकिन ऐसा नहीं हुआ है, आरटीआई अधिनियम एकदम साफ और कड़क होने के कारण इस बार जानकारी देने के लिए कृषि विश्वविद्यालय को मजबूर होना पड़ा है।
और इसीलिए इस मामले में गहरी साजिश समझ में आती है, जिसमें कुलगुरु पीके मिश्रा पूरी तरह से शामिल हैं, क्योंकि जो जवाब विधानसभा में प्रस्तुत किया है उसमें पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के खासमखास बालाघाट के कृषिमंत्री रहे गौरीशंकर बिसेन के सगेभाई पूर्व कुलपति पीके बिसेन और प्रतिनियुक्ति के अनुमोदन की 166वीं प्रशासनिक परिषद 21.7.2017 पर दस्तखत करने वाले वर्तमान विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के करीबी पूर्व कुलगुरु विजय सिंह तोमर को बचाने की कवायद दिखती है।
विधानसभा में इस बात की सफाई पेश की गई है कि जो प्रतिनियुक्ति और सांवलियान हुआ है वह पूरी ईमानदारी और नियमानुसार हुआ है।
अपनी झूठी बात को सही साबित करने के लिए कृषि विश्वविद्यालय प्रमंडल 24. 02.2001 में हुए निर्णय का सहारा लिया गया, जिसमें यह कहा है कि एक विश्वविद्यालय से दूसरे विश्वविद्यालय में प्रतिनियुक्ति पर अथवा संविलियन हेतु आने वाले कर्मचारी और वैज्ञानिकों को लेने के लिए कुलपति को अधिकृत किया जाता है।
जवाब बनाने वाले लोग यह भूल गए कि यह प्रमंडल की बैठक 24. 02.2001 केवल और केवल शासकीय कर्मचारी और वैज्ञानिकों के लिए है, इस संबंध में मध्य प्रदेश मूलभूत नियम और सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र 29. 02.2008 में स्पष्ट प्रावधान वर्णित है।
लेखक का अनुमान है कि न जाने इस तरह से कितने मामलों में गलत जवाब विधानसभा में प्रस्तुत करके और कर्मचारियों अधिकारियों ने अपना पीछा छुड़ाया है सुधी पाठक इस बात पर विचार करें।
यह मैं स्पष्ट नहीं कह सकता लेकिन अनुमान है कि वर्ष 2022 में जब विधानसभा में यह जवाब प्रस्तुत हुआ है तब विधानसभा अध्यक्ष के पद पर रीवा के चुरहट के विधायक गिरीश गौतम विधानसभा अध्यक्ष रहे होंगे। क्योंकि पूरे मामले में प्रमंडल की 221 में बैठक 11. 04. 2018 में गिरीश गौतम ने डॉक्टर धारना के संविलियन अनुमोदन पर हस्ताक्षर किए हैं, और बैठक की उपस्थिति पत्रक में उनके हस्ताक्षर हैं।
संभवत विधानसभा अध्यक्ष को बचाने के लिए भी मूलप्रश्न को किनारे रखते हुए प्रतिनियुक्ति और सम्मेलन को सामने रखकर प्रमंडल की बैठक 2001 में पारित निर्णय को आधार बनाकर जवाब प्रस्तुत किया गया है, और इस तरह विधानसभा को संतुष्ट करते हुए मामले को दफन कर दिया गया। मेरा माननीय मुख्यमंत्री मोहन यादव से अनुरोध है कि वह इतनी मजबूत कलेजे वाले विश्वविद्यालय के कर्मचारियों का विधानसभा में सम्मान करें।
कहानी अभी बाकी है दोस्तों,,,,,,,,,