
वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय की रिपोर्ट
आज भास्कर\जबलपुर। .पुत्रमोह, बहू पर कृपा में मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज के सहयोग से गोंदिया के अशासकीय धोतेबंधु साइंस कॉलेज में कथित सहायक प्राध्यापक बहू धरना बिसेन को मध्यप्रदेश की शासकीय सेवा में कूटरचित अभिलेखों के माध्यम से 16.08. 2017 को कृषि कॉलेज मुरझड़ फॉर्म वारासिवनी जिला बालाघाट में सहायक प्राध्यापक कीटशास्त्र के पद पर पदस्थ कराया है, पिछ्ले अंकों में अपने इस शानदार षड्यंत्र की अपराध कथा को पढ़ा है।
गत 17 वें अंक में अपने किस तरह पूर्व डीन फैकेल्टी डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा वर्तमान कुलगुरु की सरपरस्ती में सहायक कुल सचिव बैठक प्रशांत श्रीवास्तव और सहायक कुल सचिव स्थापना एक प्रशांत श्रीवास्तव द्वारा कूटरचित प्रतिनियुक्ति प्रस्ताव 20. 7. 2017 तैयार किया इसके बारे में पढ़ा है।
सुधी पाठकों को थोड़ा सा फ्लैशबैक में ले जाना जरूरी है। अंतर राज्य अशासकीय सेवक की शासकीय सेवा में प्रतिनियुक्ति पर जब 12 बिंदुओं पर प्रथम आरटीआई आवेदन 9. 12. 2022 में जानकारी मांगी गई तो 45 दिन बाद स्थापना एक के सहायक कुलसचिव और अनुभाग अधिकारी प्रशांत श्रीवास्तव ने 16 जनवरी 2023 को पत्र दिया कि अभिलेख संधारित नहीं है। अर्थात जानकारी उपलब्ध नहीं है। तब प्रथम अपील लगाने के पश्चात अपील अधिकारी ने 10 दिन में अभिलेख उपलब्ध कराने का आदेश 2 मार्च 2023 पारित किया। इस पर केवल चार बिंदुओं की जानकारी दी गई।
प्रतिनियुक्ति के विज्ञापन सहित आठ बिंदुओं के संबंध में गौरीशंकर की बहू, शरद की पत्नी धरना विसेन ने 6 मार्च 2023 को कुल सचिव जबलपुर को हस्तलिखित पत्र भेजा कि मेरी सेवा संबंधी अभिलेख उपलब्ध नहीं कराए । आरटीआई की सुनवाई में धरना का यह पत्र मान्य नहीं हुआ और पुनः प्रथम अपील अधिकारी ने अपने पारित आदेश 2 मार्च 2023 का परिपालन करने के लिए लोक सूचना अधिकारी को 21. 4.2023 को रिमाइंडर दिया, लेकिन जानकारी आज तक प्राप्त नहीं हुई है।
जब इस बात का संदेह पुष्ट हो गया कि स्थापना एक के प्रभारी,सहायक कुलसचिव प्रशांत श्रीवास्तव जानकारी नहीं दे रहे हैं। तब प्रशांत श्रीवास्तव और डॉक्टर धरना और टैमरे बिसेन पर कार्रवाई करने हेतु लिखित शिकायत 5 अप्रैल 2023 को कुलसचिव और कुलपति डॉ प्रमोद कुमार मिश्रा को दी गई।
आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा प्रस्तुत इन दोनों शिकायतों पर कुलपति डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा ने संज्ञान नहीं लिया, शिकायत ठंडे बस्ते में डाल दी गई। इसके बाद लगातार 45 दिन की समय सीमा और 60 दिन की समय सीमा में अशासकीय सहायक प्राध्यापक की शासकीय सेवा में अंतरराज्य प्रतिनियुक्ति करने के लिए पद का दुरुपयोग ,कदाचरण षड्यंत्र रक्तसंबंधी को शासकीय सेवा के माध्यम से आर्थिक लाभ देने के सभी बिंदुओं पर 10 से ज्यादा शिकायतें कुलपति और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के ससुर डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा को उनके नाम से दी गई है।
यही शिकायतें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कस्टोडियन और संभाग आयुक्त अभय वर्मा को भी दी गई है। संभाग आयुक्त अभय वर्मा जी से मांग की गई कि राज्य शासन को विधि विरुद्ध कार्य करने वाले तीनों कुलपति सहित अन्य लोगों पर करवाई करने के लिए विभागीय पत्र लिख़ें, श्री वर्मा ने विभागीय पत्र लिखा और भोपाल में हलचल हुई लेकिन हलचल केवल हलचल तक सीमित रह गई, कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया है।
फिर भी संभाग आयुक्त की तरफ से प्रक्रिया आगे बढ़ने से संतोष है। परंतु वर्तमान कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा ने 14 से अधिक शिकायत है ठंडे बस्ते में डाल दी।
शिकायतों में सभी जिम्मेदार लोगों को कारण बताओं नोटिस जारी करते हुए 15 दिन में जवाब मांगने और तत्पश्चात विभागीय जांच करते हुए आरोप पत्र सौंपने की मांग की गई थी।
आरोपपत्र के बाद दोषियों से प्राप्त जवाब के अनुसार आरोप तय करते हुए अंतिम निर्णय और निष्कर्ष की मांग की गई थी।
जब इन सभी शिकायतों पर आरटीआई से कारण बताओं नोटिस जारी करने संबंधी जानकारी मांगी गई तो लोग सूचना अधिकारी ने 15 सितंबर 2023 को बताया कि इस प्रकार का एक भी नोटिस जारी होना नहीं पाया है।
एक प्रकार से यह सभी शिकायतें अशासकीय सहायक प्राध्यापक की शासकीय सेवा में अंतरप्रांतीय प्रतिनियुक्ति के अनुमोदन प्रस्ताव 21 जुलाई 2017 पर हस्ताक्षर करने वाले वर्तमान कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा और पूर्व कुलगुरु डॉक्टर पी के बिसेन और डॉक्टर विजय सिंह तोमर के खिलाफ थी।
कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा को यह समझ में आ गया कि उन्हें भी जवाब देना पड़ेगा कि उन्होंने कूटरचित धरना के प्रतिनियुक्ति आवेदन 19.10. 2016 को रिकॉर्ड पर लेकर अनुमोदन 21.7.2017 में हस्ताक्षर करने की बड़ी भारी गलती की है।
इसीलिए कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा ने आज तक एक भी शिकायत पर संज्ञान नहीं लिया है। कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि उन्होंने किस कारण से 12 से अधिक शिकायतों मैं नामजद लोगों को कारण बताओं नोटिस जारी नहीं किया है। साफ है कि वर्तमान कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा सारी बातें सब कुछ जानते हैं और अब उनके गले में भी जांच फंदा अटक रहा है इसलिए किसी भी तरह से मामले को टालना चाहते हैं।
अब डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा का डबल स्टैंडर्ड के बारे में बताते हैं।
गत वर्ष 2024 में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के रिक्त पदों पर विशेष भर्ती अभियान के तहत लगभग 30 कर्मचारियों को दूरदराज के क्षेत्र में नियुक्ति आदेश जारी हुए हैं।
यह सारे नियुक्ति आदेश वर्तमान कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा और पूर्व कुलसचिव आरएस सिसोदिया के कार्यकाल में हुई है।
आज तक इन नवनियुक्त चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पुलिस वेरिफिकेशन और जाति प्रमाण पत्र वेरीफिकेशन नहीं कराए गए हैं।
इस भर्ती के बाद कुल सचिव आर एस सिसोदिया स्थानांतरित होकर भोपाल संचालनालय पहुंच गए। इस भर्ती प्रक्रिया में सहायक कुल सचिव बैठक प्रशांत श्रीवास्तव, सहायक कुल सचिव स्थापना एक और दो प्रशांत श्रीवास्तव, कुलसचिव के रीडर राकेश बोरकर, और स्थापना दो के लिपिक अरुण केवट ने समस्त भर्ती प्रक्रिया का संचालन किया है।
मामला जब उखड़ा तो केवल अरुण केवट को निलंबित कर कारण बताओं नोटिस पकड़ कर निलंबन काल की अवधि में मुख्यालय रीवा में स्थानांतरित कर दिया गया।
लेकिन जो लोग सीधे इंवॉल्व थे उनमें शामिल कुलसचिव प्रशांत श्रीवास्तव को बहुत बाद में नोटिस पकड़ाया गया। यहां साफ-साफ दिख रहा है कि जिस भर्ती प्रक्रिया में कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा ने अनुमोदन किया है और पूरी फाइल चलने वाले स्थापना एक के अनुभाग अधिकारी प्रशांत श्रीवास्तव को बख्श दिया गया है। अर्थात प्रशांत श्रीवास्तव को निलंबित नहीं किया है, और भारती की सूची का अनुमोदन करने वाले वर्तमान कुलगुरु तथा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के ससुर डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा पूरी तरह से सुरक्षित हैं।
इसी को कहते हैं सैया भाई कोतवाल तो अब डर काहे का।
मैंने ऊपर दोहरे मानक का जिक्र किया है।
यहां दोहरे मानक के दो स्तर हैं, पहले स्टार है बैकलॉग भर्ती में शामिल सभी लोगों पर एक समान कार्रवाई नहीं की गई केवल अरुण केवट को बलि का बकरा बनाकर निलंबन काल का मुख्यालय रीवा में भेज दिया गया। यदि अरुण केवट दोषी है तो फिर बराबरी से प्रशांत श्रीवा प्रमोद कुमार मिश्रा कभी निलंबन होना चाहिए और इन्हें भी शो का नोटिस मिलना चाहिए।
कुलगुरु प्रमोद कुमार मिश्रा ने निलंबित लिपिक अरुण केवट से जवाब तो मांगा है लेकिन जिस आधार पर अरुण केवट को जवाब प्रस्तुत करना है, तदविषयक अभिलेख अरुण केवट ने आरटीआई से मांगे हैं और वह नहीं दिए जा रहे हैं। अब अरुण केवट को द्वितीय अपील लगाना पड़ी है।
यह है डबल स्टैंडर्ड का पहला स्तर।
दूसरा स्तर है डॉक्टर धरना के प्रकरण में खुद कुलगुरु डॉक्टर पी के मिश्रा इंवॉल्व है इसीलिए उन्होंने अशासकीय सेवक की शासकीय सेवा में अंतरप्रांतीय प्रतिनियुक्ति के प्रकरण में किसी को भी शो कासनोटिस जारी करने का इरादा नहीं किया।
इसका मतलब यह हुआ कि यदि कहीं भी कोई घपला हुआ है तो छोटा कर्मचारी तत्काल बली का बकरा बना दिया जाए, लेकिन जिन लोगों (कुलगुरु पीके mishra और सहायक कुल सचिव प्रशांत श्रीवास्तव ) के हस्ताक्षर से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को नियुक्ति आदेश जारी हुए हैं वह पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे।
सुधी पाठक इसे समझ जाएंगे की भाजपा की तरफ से नामित कुलगुरुओं की कार्यप्रणाली में कितनी पारदर्शिता है।
डॉक्टर धरना बिसेन के प्रकरण में कुलगुरु पीके मिश्रा ने नोटिस इसीलिए जारी नहीं किया, क्योंकि डॉक्टर मिश्रा जानते हैं कि यदि उन्होंने कोई भी ऐसा कदम उठाया तो उन्हें कुलपति जैसे मलाईदार पद से हाथ धोना पड़ेगा।
अब मैं कुलपति के पद को मलाईदार क्यों कहा, तो मैं स्पष्ट कर दूं कि खबर के मुताबिक डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा भले ही विश्वविद्यालय के कर्मचारियों को वेतन और पेंशन देने के लिए सरकार से पैसा नहीं ला पा रहे हो, पर खबर यह है कि उन्होंने अपनी बेटी स्तुति मिश्रा के लिए राज्य शासन से 40 करोड़ का कोई प्रोजेक्ट सीक्रेट कराया है। और इसका बजट भी आ गया है और काम भी शुरू हो गया है।
इसके लिए एक ठेठ देसी कहावत है काम अपना बनता भाड़ में जाए जनता।
अगले 19 वें अंक में धरना का गोंदिया के अशासकीय झूठ बंधु साइंस कॉलेज से छटवा वेतनमान निर्धारण का प्राप्त अभिलेख को शासकीय मानते हुए बालाघाट के डीन एनके बिसेन ने जो सातवां वेतनमान का फिक्सेशन और देना शुरू किया है उसे पर चर्चा करेंगे।
क्रमशः ------