
जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट
डॉ प्रमोद कुमार मिश्रा ने अपने दामाद और भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा की पहुंच और पकड़ का फायदा उठाते हुए विश्वविद्यालय को प्रशासनिक अधिकारियों से रहित बना दिया है। अपनी कथित सुख सुविधाओं का ध्यान रखने के लिए डॉक्टर मिश्रा ने कुलसचिव जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण प्रशासकीय पद पर एक वरिष्ठ प्राध्यापक एके जैन को रीवा से लाकर बिठा दिया है।
स्पष्ट है कि एक प्राध्यापक जिसने कभी प्रशासनिक कार्य नहीं किए हैं वह मजबूरी में प्रशासनिक पद पर बैठकर काम करने के लिए बाध्य कर दिया गया है।
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक अजय खरे के बारे में आपको पहले ही बताया जा चुका है कि यह व्यक्ति मूल कार्य छोड़कर विगत कई वर्षों से पहले उपवित्त नियंत्रक के पद पर आकर बैठा, फिर राज्य शासन की वित्त सेवा के दो वित्त नियंत्रकों को हटाकर अब प्रभारी वित्त नियंत्रक के पद पर बैठकर कथिततौर पर मस्त मलाई पर हाथ साफ कर रहा है। अब यहां मलाई क्या है इसके विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है।
अब इसके आगे चलते हैं विश्वविद्यालय का वह प्रमंडल जिसमें विषय के योग्य अनुभवी विशेषज्ञ को सलाहकार के रूप में मनोनीत करने और विश्वविद्यालय को आगे बढ़ाने की रीति नीति बनाने की कार्य योजना बनती है। ऐसे प्रमंडल में डॉक्टर पीके मिश्रा ने उस सेवानिवृत्ति लिपिक एमके हरदहा को सदस्य बनाया है जिसने कृषि विश्वविद्यालय में चमचागिरी और बाबूगिरी के अलावा और कोई काम नहीं किया है।
विषय विशेषज्ञों का वह प्रमंडल जिसकी बैठक आहुत करने के पूर्व पूरे विश्वविद्यालय को सजाया संवारा जाता था, एक उत्सव जैसा माहौल होता था कि आज देश के कृषि विकास में योगदान देने वाले महान वैज्ञानिक और अन्य व्यक्तित्व पधारने वाले हैं।
अब प्रमंडल में इसी बाबू वर्ग के लोगों को कुलगुरु पीके मिश्रा ने अपने सुरक्षा कवच के रूप में घुसा लिया है।
यह कुलगुरु पीके मिश्रा के संकुचित वैचारिक परिणाम का नतीजा है की कुलगुरु काम नहीं जानने के कारण खतरा महसूस कर रहे हैं। वह यह अच्छे से जानते हैं कि प्रमंडल में एक बाबू को बिठाकर वह अपने कथित गलत कामों को भी नियम का जामा पहना कर, करा ले जाएंगे।
यहां एमके हरदहा के बारे में जो चर्चाएं हैं ,उनका खुलासा करना जरूरी है ।
यह वही एमके हरदहा है, जो बालाघाट के कृषिमंत्री रहे गौरीशंकर बिसेन के भाई पूर्व कुलगुरु डॉक्टर प्रदीप कुमार बिसेन के बेटे शरद बिसेन की पत्नी धरना विसेन को गोंदिया की अशासकीय सेवा से मध्य प्रदेश की शासकीय सेवा में अंतरप्रांतीय प्रतिनियुक्ति करने की फाइल देख रहे थे। फिर बाबूगिरी से आगे बढ़ते हुए उपकुलसचिव के पद तक पहुंचे हैं।
सेवानिवृत्ति के बाद कुलगुरु प्रमोद कुमार मिश्रा अपनी कथित सुरक्षा और सुविधा के लिए एमके हरदहा को प्रमंडल के गरिमामय सदस्य के रूप में मनोनीत करा लाए हैं।
सुधी पाठक विचार करें कि एक लिपिक वर्ग के कर्मचारी का कृषि विश्वविद्यालय के अत्यंत महत्वपूर्ण सलाहकार परिषद अर्थात प्रमंडल में सदस्य के रूप में क्या योगदान हो सकता है।
मेरा मानना है कि इस विषय पर कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा को विश्वविद्यालय अधिनियम 1964 के उन पन्नों को खोलकर अध्ययन कर लेना चाहिए जिसमें सलाहकार परिषद अर्थात प्रमंडल के सदस्यों के मनोनयन के बारे में मार्गदर्शन वर्णित है।
इस तरह के मनोनयन से प्रमंडल के गरिमामय स्वरूप को धक्का पहुंचा है।
यदि फाइलों को इधर-उधर करने वाला एक बाबू प्रमंडल का सदस्य बन सकता है तो फिर एक अत्यंत अनुभवी सेवानिवृत चपरासी प्रमंडल का सदस्य क्यों नहीं बन सकता, घास का गट्टा धोने वाला मजदूर और खेतों में काम करने वाला श्रमिक भी इस प्रमंडल का सदस्य होना चाहिए।इस बात पर सरकार को विचार करना चाहिए,। इस समय हमारी सरकार मोहन यादव हैं, उन तक मेरा विचार अवश्य पहुंचना चाहिए। अब अनुमान लगा लीजिए कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा और उनके ससुर कुलगुरु डॉक्टर पी के मिश्रा का क्या स्टैंडर्ड है।
अभी मेरे पास वर्तमान प्रमंडल के सदस्यों की सूची नहीं आई है जिससे इस बात का विश्लेषण किया जाए की प्रमंडल में किन-किन लोगों को जगह दी गई है।
प्रमंडल के सदस्य जब बैठक में आते हैं तो उन्हें तमाम भत्ते मिलते हैं,।
एमके हरदहा पर बता दूं कि यह वही शख्स है जिसने गोंदिया के अशासकीय धोतेबंधु साइंस कॉलेज की कथित सहायक प्राध्यापक डॉक्टर श्रीमती धरना रामकिशोर टेंभरे बिसेन को मध्य प्रदेश शासन के मूलभूत नियम के अंतर्गत का लेख करते हुए, मध्यप्रदेश शासन की शासकीय सेवा में लेने की फाइल चलाई थी।
लगता है कि ऐसी ही कुछ फाइल फिर से चलने वाली हैं, या चल रही हो तो पता नहीं, पर गड़बड़ हो सकती है।
अशासकीय सेवक की अंतरप्रांतीय शासकीय सेवा में प्रतिनियुक्ति की फाइल चलाने वालों में कौन-कौन शामिल हैं, इस बात की पतासाजी की गई, तब पता चला कि वर्ष 2017-18 के दौरान पूर्व कुलगुरु डॉक्टर प्रदीप कुमार बिसेन के बेटे शरद बिसेन की पत्नी धरना विसेन के आवेदन 19 10 2016 से लेकर प्रमंडल की 221 में बैठक 11.4.2018 में समविलियन का प्रस्ताव बालाघाट निवासी लिपिक प्रशांत श्रीवास्तव के साथ मिलकर तैयार करने वालों में एम के हरदहा का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है।
अभी अशासकीय सहायक प्राध्यापक जूलॉजी धरना विसेन की सेवापुस्तिका मैं दर्ज प्रविष्टि के विश्लेषण के साथ- साथ उसे पत्राचार पर बात करना बाकी है, जिस पत्राचार में कृषि विश्वविद्यालय के कुलसचिव एके इंगले ने अशासकीय धोतेबंधु साइंस कॉलेज गोंदिया के प्राचार्य अंजन कुमार नायडू को पत्र लिखकर महाराष्ट्र शासन में प्रतिनियुक्ति और संविलियन के नियम और विधि के संबंध में अवगत कराने के लिए पत्र लिखा था।
अंजन कुमार नायडू, शरद बिसेन, पीके बिसेन, धरना विसेन, पूर्व मंत्री बालाघाट के गौरी शंकर बिसेन, और इन सब के मार्गदर्शन और संरक्षक वर्तमान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस पत्र को ठंडे बस्ते में डाले रखना के लिए अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग किया है, ऐसा आम जनता का मानना है।
नए पाठकों के लिए यह संदर्भ बताना जरूरी है कि केंद्रीय कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहान, उनके सहयोगी पूर्व कृषिमंत्री गौरीशंकर बिसेन और गौरीशंकर बिसेन के छोटे भाई पूर्व कुलगुरु प्रदीप कुमार बिसेन के बेटे शरद बिसेन इन तीनों की ससुराल गोंदिया में है। इसीलिए वर्तमान केंद्रीय कृषिमंत्री और प्रदेश के पूर्व कृषिमंत्री गौरीशंकर आपस में गोंदिया के रिश्ते से साढू भाई भी होते हैं। इसीलिए शरद बिसेन का उनके दिल के करीब होना बहुत स्वाभाविक रिश्ता है।
यह भी कह सकते हैं कि शरद विसेन ने इस संवेदनशील रिश्ते रूपी धागे का बेहतर इस्तेमाल किया है।
अब वापस प्रमंडल में सदस्य बनाए गए लिपिक एमके हरदहा पर लौटते हैं, बिसेन गैंग में शामिल हरदहा ने वह कारनामा किया है, जिससे करने की हिम्मत अच्छे-अच्छे कानून के जानकारी नहीं कर सकते। मूलभूत नियम और प्रमंडल के 24 फरवरी 2001 के निर्णय की आड़ लेकर झूठ को सच बनाने का काम करने वाले सामूहिक कदाचरण के षड्यंत्रकारियों में पूर्व ऊपर कुलसचिव एमके हरदहा और उनके जूनियर वर्तमान में सहायक कुलसचिव विधि और बैठक प्रशांत श्रीवास्तव का योगदान है। सुधी पाठक विचार करें कि यदि इस प्रकरण में संयुक्त संचालक स्थानीय निधि संपरीक्षा सिविक सेंटर जबलपुर और संयुक्त संचालक कोष एवं लेखा जबलपुर को शासकीय राशि के अपभक्षण गबन की शिकायत वर्ष 2023 - 24 में नहीं की जाती तो धरना बिसेन को वेतन भुगतान भी होता रहता।
बिसेन गैंग की ताकत देखिए कि शासकीय अभिलेखों में प्रत्यक्ष प्रमाण होने के बावजूद जबलपुर जिला पुलिस को कूटरचना, कदाचरण षड्यंत्र, पद का दुरुपयोग और रक्तसंबंधी को प्रभावी पद के माध्यम से लाभ देने के आरोपों में आपराधिक प्रकरण दर्ज करने में पसीना छूट रहा है।