जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट
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आज भास्कर\जबलपुर। भाजपा शासित दो राज्यों के शिक्षा व्यवसाय में व्याप्त भ्रष्टाचार की बानगी देखिए। अशासकीय सेवा से शासकीय सेवा में अंतरप्रांतीय प्रतिनियुक्ति 16. 08.2017 और सम्विलियन 05.10. 2018 पाने वाली डॉक्टर धरना आर टैंभरे बिसेन जब 4 साल 11 माह की सेवा धोतेबंधु साइंस कॉलेज गोंदिया मैं 14 सितंबर 2012 से 31 जुलाई 2017 तक पूरा करके बालाघाट के राजा भोज शासकीय कृषि महाविद्यालय में प्रतिनियुक्ति पर 25.08.2017 को पहुंची, पदभार ग्रहण किया।
इस दरमियान पूरे 8 साल बीत गए पर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के वित्त नियंत्रक अजय खरे और कृषि कॉलेज बालाघाट के डीन और डीडीओ यह पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पाए कि, 15600 से 39100 और जीपी 6000 की एलपीसी लेकर कृषि कॉलेज बालाघाट पहुंची धरना की सेवा पुस्तिका कहां है। अजय खरे अभी तक यह नहीं पूछ पाए हैं कि 31 जुलाई 2017 की एलसी 24 दिन बाद 24 अगस्त 2017 को जारी करने के पीछे का कारण क्या है।
जब गोंदिया के प्राचार्य अंजन कुमार नायडू ने 13 अगस्त 2017 को धरना का इस्तीफा स्वीकार करने का प्रमाण पत्र दिया है तो फिर 24 अगस्त को धारण की एलसी कैसे और क्यों जारी हुई है क्या यह विधिसम्मत है या नहीं है, जालसाजी और फर्जीवाड़ा यहां साफ-साफ दिख रहा है।
छठवां और सातवां वेतनमान पाने वाली धारणा की गोंदिया में बनाई गई सर्विस बुक कहां है।
एकदम साफ-साफ जाहिर है कि पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरपरस्ती में गोंदिया के रिश्ते से उनके साडू भाई लगने वाले बालाघाट के पूर्व कृषिमंत्री गौरीशंकर बिसेन की बहू धरना से किसी भी प्रकार की क्वेरी, इंक्वारी नहीं की जा सकती है।
भ्रष्टाचार मिटाने की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पिछले 25 साल से कर रहे हैं। पारदर्शिता की बात भी कर रहे हैं। और प्राइवेटाइजेशन को छाती से लगाए बैठे हैं। प्राइवेटाइजेशन के बड़े-बड़े किस्सों पर में बाद में जाऊंगा आउटसोर्स से शासकीय विभागों में सेवा करने वाले कर्मचारी कितने बड़े-बड़े घपले करके निकल गए हैं।
(हाल ही में जबलपुर के जिलाधीश दीपक कुमार सक्सेना ने सिविक सेंटर स्थित स्थानीय निधि संपरीक्षा के कंप्यूटर ऑपरेटर और अन्य अधिकारियों के मिली भगत से किया गया 6 करोड़ का घपला पकड़ा है और एफ़ आई आर दर्ज कराई है। )
इसका यदि आंकड़ा उठा लिया जाए तो आंकड़ा अरबों रुपए में जा सकता है, इसके अलावा यह प्राइवेट शो - आउटसोर्स कर्मचारी जिन्हें भाजपा शासनकाल में ज्यादातर शासकीय विभागों में उद्यमिता विकास केंद्र और अन्य एजेंसीयों के माध्यम से लाया गया है, संलग्न कर्मियों का शोषण करने के अलावा कोई काम नहीं कर रहे हैं।
यह बड़ा विवेचना का मुद्दा है, इस पर बाद में विस्तार से चर्चा होगी
अभी हम वापस गोंदिया बालाघाट और जबलपुर भोपाल के अधिकारियों की धारणा कांड मे भ्रष्टाचार में आंख मूंद लेने की मजबूरी पर बात कर रहे हैं।
गतांक 21- 22 में आपने पढ़ा की धरना के पति बालाघाट कॉलेज में पदस्थ सहायक प्राध्यापक उद्यान शरद विसेन ने जबलपुर के करमचंद चौक स्थित गोयल प्रिंटिंग प्रेस से सर्विस बुक खरीद कर उसमें तमाम 4 साल 11 माह की बोगस जालसाजीयुक्त फर्जी प्रविष्टि अर्थात एंट्री दर्ज कराई है।
गोंदिया के सेवाकाल की इन प्रविष्टियों का सत्यापन अनुमोदन नातो गोंदिया से हुआ है, और नाही जबलपुर से हुआ है।
उसके बाद भी लगभग सवा लाख- डेढ़ लाख रुपए महीना की सैलरी देने के लिए कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा और उनके वित्तमंत्री अर्थात वित्त नियंत्रक अजय खरे बेचैन है।
मूलत केवीके वैज्ञानिक प्रशासनिक भाषा और कार्यप्रणाली तो जानते ही नहीं है है , सीख ही नहीं सकते हैं। इन्हें डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा ने किस इंटरेस्ट से वित्त नियंत्रक के पद पर प्रमोट किया है यह स्वाभाविक रूप से सुधी पाठक विचार कर सकते हैं,। खासकर विषय के विशेषज्ञ जो भी हैं जो मध्यप्रदेश वित्त सेवा में कार्य कर रहे हैं वह अंदाजा लगा सकते हैं कि एक वैज्ञानिक स्तर का कर्मचारी भाजपा की मेहरबानी से, संघ की मेहरबानी से कृषि विश्वविद्यालय को बर्बाद करने के लिए और व्यक्तिगत लाभ लेने के लिए वित्त नियंत्रक के पद पर बैठा दिया गया है। कुलगुरु प्रमोद कुमार मिश्रा और वित्त नियंत्रक अजय खरे की कार्यप्रणाली से अभी तक यही ध्वनित हो रहा है, यही संदेश निकल रहा है।
अब पाठक गण सोचेंगे कि अजय खरे का व्यक्तिगत हित क्या है तो संक्षेप में बता दूं कि केवीके में 62 वर्ष से अधिक की आयु के बाद सेवाएं नहीं ली जा सकती है। सेवानिवृत्ति की आयु 62 वर्ष है। लेकिन इन सभी केवीके कर्मचारियों को विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपनी मर्जी से राज्य शासन के नियमों के अधीन लेते हुए 65 वर्ष की आयु के समस्त वित्तीय लाभ लेने और देने का सोमोटीव निर्णय लिया है। स्वविचरित्र निर्णय इसीलिए की इस संबंध में राज्य शासन और भारत सरकार ने कोई सामूहिक निर्णय नहीं लिया है और ना ही इस संबंध में मध्य प्रदेश शासन और भारत सरकार के बीच कोई पत्राचार हुआ है।
इसका वित्तीय भार, भारत सरकार कृषि मंत्रालय पर डालने की पूरी कोशिश की है।
आईसीएआर ने स्वीकृति नहीं दी और बता दिया कि वह अपने हिस्से की पूरी राशि विधि अनुसार कृषि विश्वविद्यालय को दे चुके हैं। लेकिन अजय खरे ने मामले को हाईकोर्ट में ले जाकर खड़ा कर दिया, खबर मिली है की गत तीन अप्रैल 2025 को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भारत सरकार के विधि सलाहकार या विधि विभाग से संबंधित वरिष्ठ अधिकारी आए थे और स्पष्ट कर गए हैं की सभी कर्मचारियों को भारत सरकार कृषि मंत्रालय के अंतर्गत और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की शर्तों के अधीन रखा है।
कर्मचारियों ने अंडरटेकिंग भरा है । कोई भी कर्मचारी जब नई-नई सेवा में प्रवेश करता है तो सेवा में प्रवेश करने के पूर्व एक शपथ पत्र या अंडरटेकिंग भरना पड़ता है, जिसमें वह अपनी मातृसंस्था अर्थात सेवाप्रदाता संस्था की शर्तों के अधीन सेवा करने का वादा करता है।
इस अंडरटेकिंग को गायब करते हुए कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के प्रशासन ने आईसीएआर पर पूरा आर्थिक भार डालना चाहा है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने इन्हें राज्य शासन के अंतर्गत विश्वविद्यालय की सेवाओं में रखा है इसीलिए 65 साल या 62 साल से अधिक आयु पूरी करने के बाद विश्वविद्यालय में सेवा कर रहे अधिकारियों कर्मचारियों को जो भी पारिश्रमिक या वेतन मिलना है वह राज्य शासन के खाते से निकलना है, क्योंकि 62 वर्ष की आयु पूर्ण करने के बाद वह आईसीएआर के कर्मचारी नहीं रह गए हैं, वह विश्वविद्यालय के कर्मचारी हो गए हैं। कृषि विश्वविद्यालय ने केवीके से लिए कर्मचारी विधि रूप से है या नहीं है यह अलग विषय है, इतना विस्तार से मुझे इसीलिए बताना पड़ा क्योंकि यह अजय खरे का खेल है। डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा शामिल है।
मुझे विस्तार से और संदर्भ इसीलिए बताना पड़ रहा है क्योंकि नजर और नियत अर्थात नजरिया बताना आवश्यक है। कि जब सभी भ्रष्टाचार की गंगा में गोता लगा रहे हों तो धरना को कैसे वंचित किया जा सकता है। धारणा नाराज हो गई तो बिसेन जी नाराज हो जाएंगे और बिसेन जी नाराज हो गए तो केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज चौहान नाराज हो जाएंगे और फिर हम अर्थात अजय खरे ऐसी की हवा में बैठकर भारत सरकार और राज्य सरकार को बेवकूफ बनाकर आर्थिक लाभ कैसे ले पाएंगे।
इसीलिए अजय खरे जी ने दिसंबर 2022 को कृषि कॉलेज बालाघाट से भेजी गई धारणा की सेवापुस्तिका को अगस्त 2023 तक बिना कारण के कृषि विश्वविद्यालय के वित्त नियंत्रक के अंतर्गत वेतन निर्धारण शाखा के अनुभाग अधिकारी मिश्रा के पास रोके रखा। क्या वित्त नियंत्रक अजय खरे यह बता सकते हैं कि केवल और केवल बार-बार धारणा की सर्विस बुक बालाघाट से जबलपुर क्यों भेजी जाती है।
बालाघाट से अन्य किसी कर्मचारी अधिकारी की सर्विस बुक बार-बार कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर क्यों नहीं आती है। सारे जवाब कुलगुरु पीके मिश्रा और वित्त नियंत्रक अजय खरे बहुत अच्छे से जानते हैं, लेकिन यह भी जानते हैं कि यदि धारणा नाराज हो गई, तो कुलगुरु पीके मिश्रा के दामाद प्रदेश अध्यक्ष भाजपा बीडी शर्मा भी उनको बचाने में अक्षम रहेंगे।
हम वापस धरना के बालाघाट कांड पर लौटते हैं, जिसमें इस बात पर विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा है कि धोतेबंधु साइंस कॉलेज गोंदिया में लगभग 5 साल की सेवा करने वाली और छठवां वेतनमान लेने वाली धारणा की गोंदिया के कॉलेज में सेवा पुस्तिका बनी है या नहीं बनी है, और यदि बनी है तो कहां है, और यदि नहीं बनी है तो क्यों नहीं बनी है। यह पूरी तरह से शुद्ध भ्रष्टाचार का मामला है और इसमें गोंदिया एजुकेशन सोसाइटी उसके प्राचार्य अंजन कुमार नायडू, और उस भ्रष्टाचार को कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर में पुष्पित पल्लवित करके पालने पोषण करने वाले पूर्व अधिष्ठाता और कथित 376 के मामले में तत्कालीन डीएसडब्ल्यू प्रदीप कुमार बिसेन, तक्कालीन डीन फैकल्टी और वर्तमान कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा से अभयदान प्राप्त करने वाले विजय बहादुर उपाध्याय ,वर्तमान प्रबंध संचालक अनुसंधान जीके कोतू ,वर्तमान अधिष्ठाता कृषि कॉलेज बालाघाट एनके विसेन, साल साल भर तक धरना की सर्विस बुक को कृषि विश्वविद्यालय में लंबित अर्थात विदेल्ड रखने वाले वित्त नियंत्रक अजय खरे, उनके अनुभाग अधिकारी वेतन निर्धारण शाखा श्री मिश्रा और अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी खुले तौर पर शामिल हैं। वित्त नियंत्रक अजय खरे पर जिम्मेदारी इसलिए बनती है क्योंकि उन्होंने वेतन भुगतान कर दिया जाए यह पत्र बालाघाट भेजा है, साथी अजय खरे इस बात के लिए भी जिम्मेदार है कि जब आठ माह तक धरना की सर्विस बुक वित्त नियंत्रक के पास पड़ी रही तो वह किस कारण से आठ माह तक लंबित रखी गई और लंबित रखने के पीछे क्या क्वेरी अथवा इंक्वारी उठाई गई। अजय खरे के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं है।
सुधी पाठक विचार करें कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर और कृषि महाविद्यालय बालाघाट में कितना गजब का कमल पिछले 8 सालों से आंख बंद करके किया जा रहा है। गंभीर वित्तीय अनियमितता और अपराध पाए जाने के बावजूद कुलगुरु पीके मिश्रा वित्त नियंत्रक अजय खरे इस मामले को जिला पुलिस अधीक्षक जबलपुर के सुपुर्द करने से बच रहे हैं।
यह पूरी तरह 2 करोड़ के घपले का मामला है
आगे मैं यह भी बता दूं कि जब विधानसभा में ध्यान आकर्षण सूचना क्रमांक 57 अगस्त 2022 में उठा और उसके बाद सितंबर 2022 में विधानसभा सचिवालय से पत्र किसान कल्याण और कृषि विकास विभाग के अपर संचालक ईटी भोपाल के पास पहुंचा। इसके बाद अपर संचालक ईटी भोपाल ने कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर से अत्यंत आवश्यक और तत्काल के अंतर्गत पत्र 09. 09. 2022 मे जानकारी चाही, इस जानकारी के अंतर्गत तत्कालीन कुल सचिव आरएस सिसोदिया ने धोतेबंधु साइंस कॉलेज गोंदिया को पत्र लिखकर जानकारी मांगी, इस जानकारी में धोते बंधु साइंस कॉलेज में सहायक प्राध्यापक जीव विज्ञान के पद पर धरना के द्वारा भरा गया आवेदन फार्म भी मांगा गया। परंतु डीबी साइंस कॉलेज के प्राचार्य अंजन कुमार नायडू ने वर्ष 2022 में कृषि विश्वविद्यालय को धरना का आवेदन पत्र उपलब्ध नहीं कराया है । आरटीआई से मांगने पर प्रकरण क्रमांक 145/ 440 दिनांक 03.04.2025 में भी धरना का धोतेबंधु साइंस कॉलेज में जूलॉजी के सहायक प्राध्यापक के पद पर भर गया आवेदनपत्र की प्रतिलिपि उपलब्ध नहीं कराई है। यह अधूरी जानकारी देना भ्रामक जानकारी देना गलत जानकारी देना ,यह सूचना अधिकार अधिनियम के दायरे में दांडिक अपराध की श्रेणी में आता है।जाहिर है कि धरना का धोतेबंधु साइंस कॉलेज में भर गया आवेदनपत्र जबलपुर विश्वविद्यालय में तो नहीं मिलेगा, यह गोंदिया से ही मिलेगा, धरना द्वारा गोंदिया में भर गया आवेदनपत्र गोंदिया के प्राचार्य अंजन कुमार नायडू ने उपलब्ध नहीं कराया है।
आरटीआई से धरना के सेवा संबंधी अभिलेख प्राप्त हो जाने पर इन्हें संयुक्त संचालक कोष एवं लेखा कलेक्ट्रेट जबलपुर के सम्मुख जांच के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। जांच में जिन 23 बिंदुओं को उठाया है , इन 23 बिंदुओं को अगले अंक में विस्तार के साथ सुधी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करेंगे।
लेकिन अब यह एकदम स्पष्ट है कि सामूहिक सुंनियोजित कूटरचना, सामूहिक सुंनियोजित- सुविचारित- सुसंगठित कदाचरण, सामूहिक रूप से एक राय होकर किया गया फर्जीवाड़ा और षड्यंत्र , पद का दुरुपयोग के अंतर्गत राज्य शासन को दो करोड़ की आर्थिक क्षति पहुंचाने के कारण यह बड़ा दांडीक प्रकरण है।