
जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट
आज भास्कर\जबलपुर। कृषिमंत्री शिवराज समर्थित बालाघाट की बिसेन गैंग को आंशिक रूप से नुकसान हुआ है। पूर्व कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन की दम पर अशासकीय सेवा से शासकीय सेवा में अंतरप्रांतीय प्रतिनियुक्ति पाने वाली धारणा बिसेन की सर्विस बुक में काला, गोरा, चितकबरा करने वाले डीन एनके विसेन हटा दिए गए हैं, श्री बिसेन के स्थान पर घनश्याम देशमुख प्रभारी अधिष्ठाता कृषि कॉलेज बालाघाट बनाए गए हैं।
इसके साथ ही आगे खबर यह है कि सुनियोजित, सुविचारित, कूटरचना और षड्यंत्र का सबसे प्रमुख घटनास्थल डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया के प्राचार्य डॉक्टर अंजन कुमार एस नायडू से मिलकर किसी भी हालत में बात संभालने के लिए धारणा बिसेन गोंदिया पहुंच गई है।
उसकी सबसे महत्वपूर्ण वजह यह है कि गोंदिया के अशासकीय कॉलेज में धारणा का सेवाकाल 14.09.2012 से 31.07.2017 तक अर्थात 4 साल 11 महीना का सर्विस रिकॉर्ड गोंदिया की सर्विस बुक में कैसे मेंटेन किया जाए इस बात पर काम चल रहा है। यह बहुत कठिन काम है और इसमें पेंच फंस गया है। साफ-साफ समझ ले की कूट रचना के दो मुख्य आरोपी अपने बचाव में अर्थात एक झूठ छुपाने के लिए 100 झूठ का सहारा लेने प्रयासरत हो गए हैं।
यह तो एकदम स्पष्ट हो गया कि जबलपुर के गोयल प्रिंटिंग प्रेस करमचंद चौक से वर्ष 2017 में खरीदी गई सर्विस बुक में भूतकाल की अर्थात डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया के सेवाकाल की एंट्री करना ही जालसाजी , धोखाधड़ी, बोगस फर्जीवाडा अर्थात झूठ मिथ्या तथ्यों को सत्य के रूप में प्रस्तुत करने का कूटरचित अभिलेख तैयार हो चुका है, और यह कूटरचित सर्विस बुक की प्रविष्टियां मिटने वाली नहीं है। अर्थात भारतीय न्याय संहिता की धारा 312 से 318 के साथ-साथ 332 से 338 का अपराध घटित होने का शासकीय अभिलेख पब्लिक डोमेन में आ गया है। इसमें अधिकतम 10 साल से लेकर आजन्म कारावास तक की सजा हो सकती है।
अब आपको इस सुविचारित सुनियोजित सुसंगठित कूटरचना और षड्यंत्र में, जैसा कि पत्रकार साथियों के बीच चर्चा में आया है कि धारणा की कोई गलती नहीं है। धारणा ने तो आवेदन किया था और आवेदन अमान्य करने की जिम्मेदारी कृषि विश्वविद्यालय के तत्कालीन डीन फैकेल्टी और पी के मिश्रा कुल सचिव अशोक कुमार इंग्ले की थी।
चर्चा में यह भी आया कि इस तरह धारणा का पक्ष काफी मजबूत है कि आपने हमें नौकरी में लिया तो हमने नौकरी की है। यदि आप प्रारंभ में ही हमारा आवेदन आमने कर देते तो नौकरी करने का सवाल ही नहीं उठाता।
सुधी पाठकों को याद दिला दूं कि इस अपराध के वास्तविक किरदार पर्दे के पीछे हैं। सामने जो मुख्य आरोपी दिख रहे हैं उनमें डीबी साइंस कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर अंजन कुमार एस नायडू के साथ धरना और उनके पति शरद बिसेन हैं।
अभी हम कूटरचना का पहला कदम का विवरण देते हैं।
धारणा ने सादे कागज पर अपने प्रतिनियुक्ति आवेदन 19 10 2016 की शुरुआती दो लाइनों में ही सबसे बड़ी कूट रचना की है।
धरना ने साफ-साफ लिखा है कि वह दब साइंस कॉलेज महाराष्ट्र शासन में 10 9 2012 से पदस्थ है।
जब आरटीआई से धरना की महाराष्ट्र शासन में सहायक प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति आदेश 10.9 2012 मांगा गया तो कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना के अनुभाग अधिकारी श्री जॉन ने लिखित में बताया है कि अभिलेख संधारित नहीं है। अब यहां स्थापना एक की चतुराई देखिए अभिलेख संधारित नहीं होने का मतलब यह हुआ कि अभिलेख अस्तित्व में है, भौतिक अस्तित्व में है, लेकिन विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड में नहीं है। इसमें विश्वविद्यालय की कोई गलती नहीं है।
जब प्रतिनियुक्ति का आवेदन 19 10 2016 मार्क होकर कुल सचिव के पास से स्थापना एक के पास पहुंचा तो जांच पड़ताल में इन्होंने क्या पाया और जब अभिलेख नहीं पाया तो अभिलेख प्रस्तुत करने के लिए धरना और महाराष्ट्र शासन को पत्र क्यों नहीं लिखा, डीबी साइंस कॉलेज के प्राचार्य दो अनजान एस नायडू को शोक नोटिस क्यों नहीं भेजा कि प्राइवेट कॉलेज में है या सरकारी कॉलेज में है।
धरना ने निजीहित मैं कृषि कॉलेज बालाघाट में पदस्थ पति शरद बिसेन के साथ नौकरी करने के लिए प्रतिनियुक्ति की मांग वाला आवेदन 19 10 2016 दिया है, आवेदन में इस बात का लेख है।
यह यह आवेदन 19 10 16 मेंदूसरी सबसे बड़ी कूटरचना है। क्योंकि जिस एमपी फंडामेंटल रूल के तहत यह प्रतिनियुक्ति की है उसमें कहीं भी इस तरह का मार्गदर्शन वर्णित नहीं है की पति के साथ पदस्थ करने के लिए पत्नी की अशासकीय सेवा से शासकीय सेवा में अंतरप्रांतीय प्रतिनियुक्ति की जा सकती है।
यह दो कूटरचना आवेदन 19 10 2016 में है। कूटरचना की पुष्टि के लिए आरटीआई से उपलब्ध कराया गया सामान्य प्रशासन विभाग का परिपत्र 29 फरवरी 2008 का अवलोकन किया जा सकता है।
अब इन दोनों कूटरचनाओं की पुष्टि कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व संलिप्त कुलसचिव अशोक कुमार इंगले के पत्र से होती है।
स्थापना एक का पत्र क्रमांक 462 दिनांक 17 3 17 में कुल सचिव जबलपुर ने डीबी साइंस कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर अंजन कुमार एस नायडू से महाराष्ट्र शासन में प्रतिनियुक्ति के शासकीय नियमों की मांग की है। इसकी प्रतिलिपि पत्र क्रमांक 463 दिनांक 17 03 2017 डॉक्टर श्रीमती धरना रामकिशोर टेमरे बिसेन को दी है।
एकदम साफ है कि डीबी साइंस कॉलेज के प्राचार्य और धारणा को कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के कुलसचिव द्वारा चाहे गए महाराष्ट्र शासन के प्रतिनियुक्ति संबंधी परिपत्र और अधिनियम की प्रतिलिपि कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर में निर्धारित समय पर भेजना था।
यह पत्र 17 3 2017 लिखे जाने के बाद प्रति नियुक्ति आदेश 16 817 और उसके बाद पद ग्रहण 25-817 और उसके 11 महीने बाद निकाला संविलियन आदेश 5.10.2018 तक भी धरना और गोंदिया के प्राचार्य अंजन कुमार एस नायडू महाराष्ट्र शासन में प्रचलित परिपत्र और अधिनियम की बुक कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर को नहीं दे पाए।
दरअसल यह इस षड्यंत्र का हिस्सा है जिसके तहत अशासकीय सेवक की शासकीय सेवा में प्रतिनियुक्ति के लिए सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे वाली कहावत के हिसाब से काम हुआ है।
सुधी पाठकों को बता दें कि वर्तमान केंद्रीय कृषिमंत्री शिवराज सिंह और उनके कार्यकाल में मध्य प्रदेश के कृषिमंत्री रहे बालाघाट के गौरीशंकर बिसेन ने अपनी अशासकीय सेवक बहू की प्रतिनियुक्ति के लिए इतना जबरदस्त दबाव बना रखा था कि कृषि विश्वविद्यालय के कुलसचिव और अधिनस्थ स्टाफ कुछ भी सोचने समझने में असमर्थ हो गया था या तो इन बड़े-बड़े लोगों का कहना मानो, या तबादले के लिए तैयार रहो, इस तरह इस स्थापना एक के अधिनस्थ स्टाफ में तबादले पर जाने के बजाय कानून को तोड़ना मरोड़ना और कानून का उल्लंघन करना तय किया और इस गलत काम में बिसेन गैंग का साथ दिया।
नतीजा हम सभी के सामने हैं की कुल सचिव के पत्र 17 मार्च 2017 में चाही गई जानकारी गोंदिया से जबलपुर नहीं आई और ना ही दोबारा कोई स्मरणपत्र धरना और डीबी साइंस कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर अंजन कुमार एस नायडू को दिया गया
- सुधी पाठक विचार करें कि 8 साल से इस पत्र का कंप्लायंस नहीं हुआ है।
- अर्थात इस पत्र का जवाब आज तक बीते 8 सालों से नहीं आया है।
- साफ-साफ समझ लें कि गोंदिया बालाघाट और जबलपुर के सभी संलिप्त एकराय होकर अपराध किए हैं।
सुधी पाठकों ने जो सवाल उठाए थे उनका जवाब देने की कोशिश की है
गोंदिया से एक अशासकीय सेवक की मध्य प्रदेश की शासकीय सेवा में प्रतिनियुक्ति के बाद बिसेन गैंग पिछले 8 सालों से सफलता का जश्न मनाते हुए आगे इस अपराध को दोहराने के लिए तैयारी कर रही थी, कि मामला खुला और रायता ऐसा बकरा की समेटे नहीं समट रहा है। दोहराने से मतलब है कि एक बार फिर से अशासकीय सेवकों को महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश की शासकीय सेवा में लाने का धंधा शुरू होने वाला था कि पोलपट्टी खुल गई, यह खेल वर्तमान कुलगुरु पीके मिश्रा ने शुरू किया है।
कमाई वाले इस धंधे को आगे बढ़ाने की पूरी तैयारी थी और इस तैयारी के सिलसिले में धारणा की प्रतिनियुक्ति की फाइल तैयार करने वाले उपकुलसचिव, एमके हरदहा को कुलगुरु पीके मिश्रा प्रमंडल का सदस्य बना कर लाए हैं।
एमके हरदहा, और वर्तमान सहायक कुल सचिव विधि बैठक और गोपनीय प्रशांत श्रीवास्तव को इस तरह के कामों का मास्टरमाइंड माना जाता है।
कुलगुरु पीके मिश्रा ने पिछले कुछ अरसे में विश्वविद्यालय के प्रमंडल की कुछ बैठक भोपाल में आहूत की है।
यह सभी बैठक बिना हल्ले गुल्ले की हुई है इन बैठकों में क्या निर्णय हुआ है यह अभी विवेचना का विषय है।
तो इस तरह सुधी पाठक स्पष्ट समझ गए होंगे कि शादी कागज पर धरना का प्रतीक नियुक्ति आवेदन 19 10 2016 और कुल सचिव जबलपुर का पत्र 17 मार्च 2017 गोंदिया बालाघाट और जबलपुर के स्तर पर पद का दुरुपयोग ,रक्तसंबंधी को फायदा देना, कदाचरण, शासकीय अभिलेखों में साशय फेरफार, सुविचारित पूर्व नियोजित, शासकीय कर्मियों का, पढ़े-लिखे कर्मियों का सुसंगठित, षड्यंत्र है।
सुधी पाठक विचार करें कि उच्च स्तरीय राजनीतिक संरक्षण प्राप्त कदाचरण में मध्य प्रदेश मूलभूत नियम और शासन के निर्माण अनुसार प्रतिनियुक्ति की गई है, का अनुमोदन किया है। मध्य प्रदेश मूलभूत नियम में ऐसा कोई नियम वर्णित नहीं है, जिस आधार पर अशासकीय अंतर प्रांतीय सेवक को मध्य प्रदेश शासन की सेवा में लेकर धड़ल्ले से पिछले 8 सालों से वेतन दिया जा रहा है।
आज के इस लेख को पढ़कर सुधी पाठक निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि धरना और उनके पति शरद बिसेन अब यह कहकर नहीं बच सकते कि उनकी कोई गलती नहीं है सारी गलती कृषि विश्वविद्यालय की है।
धरना और शरद की कूट रचना को अगले अंकों में फिर स्पष्ट होगा। ज्यादा मजबूती के साथ स्पष्ट होगा।
क्योंकि अब आरटीआई से मांगे गए अभिलेख कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर, कृषि महाविद्यालय बालाघाट, और अशासकीय डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया नहीं दे पा रहे हैं। यह अभिलेख इस बात को प्रमाणित करेंगे की पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संरक्षण में बालाघाट की विषय गैंग में कौन-कौन से महत्वपूर्ण शासकीय अभिलेख जो प्रतिनियुक्ति और संविलियन में आवश्यक होते हैं प्रस्तुत नहीं किए हैं।
क्रमशः ---------------