
जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट
- शिव और गोरी को खुश करने बी डी ने दी सहमति
- बीडी बनना चाह रहे थे सीएम
अशासकीय डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया के प्राचार्य डॉक्टर अंजन कुमार एस नायडू और अपने पति शरद बिसेन के साथ मिलकर किए सुनियोजित षडयंत्र के तहत धारणा ने, आवेदन पत्र में डीबी साइंस कॉलेज को महाराष्ट्र शासन का कॉलेज बताते हुए 10.9. 2012 से सेवारत होने की घोषणा प्रथम दो पंक्तियों में की है। इसी के आधार पर प्रतिनियुक्ति आदेश 16.08.2017 निकला है।, यह आप गत अंक में पढ़ चुके हैं।
आज के अंक में धृतराष्ट्र की तरह आंख पर पट्टी बांधे कुलगुरु पीके मिश्रा कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर के कारनामे का खुलासा कर रहे हैं । जो यह प्रमाणित करने के लिए काफी है कि यदि भारत के केंद्रीय कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहान का समर्थन इसी तरह अन्य लोगों को हासिल होता रहा तो कुछ भी असंभव नहीं है। धारणा ने कृषि कॉलेज बालाघाट में पदभार ग्रहण 25.08. 2017 को करने के साथ अनुपालन रिपोर्ट कृषि विश्वविद्यालय के कुलसचिव एके इंगले को भेजी है, जिसमें प्रतिनियुक्ति आदेश 16.08.2017 के साथ ओरिजिनल रिलीविंग आर्डर जबलपुर भेजने का लेख है।
जब आरटीआई से मांगने पर धारणा का ओरिजिनल रिलीविंग आर्डर नहीं मिला तो प्रथम अपील लगाई गई, प्रथम अपील में ओरिजिनल रिलीविंग आर्डर, अपीलार्थी को 10 कार्यदिवस के भीतर देने का आदेश 19 मार्च 2025 को हुआ है,। आज 30 दिन से ज्यादा बीत चुके हैं, 8 साल पुराना ओरिजिनल रिलीविंग आर्डर की प्रतिलिपि प्राप्त नहीं हुई है।
धोतेबंधु साइंस कॉलेज गोंदिया के प्राचार्य डॉक्टर अंजन कुमार एस नायडू ने गोंदिया से धारणा को अगस्त 2017 में 5 बार रिलीव अर्थात भारमुक्त अर्थात पदमुक्त किया है। इन पांच रिलीविंग डेट्स की पुष्टि आरटीआई से 09.05.2024 और 03.04.2025 में प्राप्त सर्विस बुक से हो रही है।
धरना की गोंदिया में नियुक्ति की चार से पांच तारीख हैं, और रिलीविंग की भी पांच तारीख हैं।
लेकिन ओरिजिनल रिलीविंग आर्डर गायब है। प्रथम अपील अधिकारी को पुनः लिखित निवेदन देकर कुलसचिव जबलपुर के साथ अधिष्ठाता कृषि कॉलेज बालाघाट और डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया के प्राचार्य डॉक्टर अंजन कुमार एस नायडू को नामजद नोटिस देकर ओरिजिनल रिलीविंग आदेश की प्रतिलिपि प्राप्त करने का निवेदन किया है।
जैसा कि पूर्व मे कहा है, विश्वविद्यालय प्रशासन धृतराष्ट्र की तरह आज भी आंख पर पट्टी बांधे है। इस षड्यंत्र और कूटरचना में सीधे-सीधे लिप्त भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के ससुर ,कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा ने अधिष्ठाता फैकल्टी होते हुए वर्ष 2018 में धारणा की सनवीलियन की फाइल 23.03. 2018 पर 28.03.2018 को दस्तखत किए हैं, लेकिन उसे समय शिवराज और गौरीशंकर की चमचागिरी का भूत कुलगुरु पीके मिश्रा पर जमकर चढ़ा था , बीडी शर्मा भी पहले प्रदेश अध्यक्ष बने और फिर मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए थे, इसीलिए शिवराज और गौरीशंकर को खुश करने के लिए तो यह करना ही था। डीन फैकल्टी पीके मिश्रा विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार किसी भी चयन के लिए वर्ष 2015 से वर्ष 2019 तक कमेटी के पदेन अध्यक्ष होते हैं,। पूरी तरह जिम्मेदार हैं,। कुलगुरु पीके मिश्रा ने , धरना के आवश्यक और अनिवार्य अभिलेख, जरूरी अभिलेख रिकॉर्ड पर है या नहीं यह देखे बिना आंख बंद करके दस्तखत किया और फाइल आगे बढ़ा दिया,। कुलगुरु पीके मिश्रा पर जिम्मेदारी इसीलिए बनती है क्योंकि अधिष्ठाता कृषि कॉलेज बालाघाट ने अधिष्ठाता फैकल्टी काशी विश्वविद्यालय जबलपुर के नाम से पत्र और प्रस्ताव भेजा है। संविलियन की कार्रवाई 11.04.2018 मास्टरमाइंड कुलगुरु पीके मिश्रा द्वारा सहायक कुलसचिव प्रशांत श्रीवास्तव और एमके हरदहा से करवा दी गई।
सुधी पाठक विचार करें कि आज दिनांक तक डॉक्टर धरना आर टेंभरे बिसेन का ओरिजिनल रिलीजिंग ऑर्डर रिकॉर्ड पर नहीं है, उसके बाद स्थानीय निधि संपरीक्षा के संयुक्त संचालक सिविक सेंटर जबलपुर सहित कृषि विश्वविद्यालय ने किसी भी प्रकार की कोई जांच नहीं की है, आज तक सब की आंखें बंद है। मोहन सरकार भी तीसरा नेत्र नहीं खोल रही है, कि ओरिजिनल रिलीविंग आर्डर की प्रतिलिपि या मूल प्रति गायब है, पर है तो है कहां यह पता लगाना चाहिए।
यह स्पष्टतया शासन की आंखों में धूल झोंकना है, कदाचरण है, कूटरचना है, साशय फेरफार है, वर्तमान कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा के द्वारा किया गया और कराया गया सुविचार नियोजित सामूहिक सुसंगठित षड्यंत्र है, जालसाजी, धोखाधड़ी,छल और फरेब है, इसी को कहते हैं जिस थाली में खाना उसी में छेद करना, पुरानी बिसेन गैंग और वर्तमान कुलगुरु पीके मिश्रा की गैंग यही धंधा कर रही है। धंधा करना इसीलिए कहा है क्योंकि 16 से अधिक आवेदन पिछले दो वर्षों से जांच के लिए लंबित पड़े हैं, जिन पर कुलगुरु पीके मिश्रा ने कोई कार्रवाई नहीं की है, सुधी पाठक अंदाजा लगाएं कि किस कदर कुलगुरु पीके मिश्रा पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अहसानो के तले दबा हुआ है।
सुधी पाठकों को यह स्पष्ट करें कि जब कोई सम्मविलियन की कार्रवाई की जाती है, तो यह पूरी तरह नई नियुक्ति की भांति की जाती है और इसका डायरेक्शन सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र 29.02.2008 में दिया है।
नई नियुक्ति का मतलब होता है कि प्रत्येक वह औपचारिकता जो जरूरी है उसके बिना संविलियन नहीं हो सकता है और यदि हुआ है तो वह पद का दुरुपयोग और कदाचरण के अंतर्गत छल, फरेब और धोखा, सामूहिक षड्यंत्र है।
आपके सामने गोंदिया बालाघाट और जबलपुर के षड्यंत्र और कूटरचना को स्पष्ट किया है। इसमें एक बात और सामने आई है कि विधानसभा की ध्यानाकर्षण सूचना 57 की पूर्ति के लिए कुलसचिव जबलपुर ने कृषि कॉलेज बालाघाट से डॉक्टर धरना आर टेंभरे बिसेन का डीबी साइंस कॉलेज में सहायक प्राध्यापक जूलॉजी के पद पर भर गए फॉर्म की प्रति मांगी थी,। इसी विधानसभा में चाही जानकारी के आधार पर आरटीआई में धारणा द्वारा गोंदिया के डीबी कॉलेज में भरे गए फॉर्म की प्रति मांगी गई जो अभी तक नहीं मिली है इसके लिए प्रथम अपील आवेदन दायर करना पड़ा है।
सबसे महत्वपूर्ण है कि संविलियन अर्थात पूरी तरह से नई नियुक्ति के प्रकरण में पुराने संस्थान अर्थात अशासकीय डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया की सेवापुस्तिका क्यों नहीं देखी गई, डीबी साइंस कॉलेज की सेवा पुस्तिका क्यों नहीं मंगाई गई,। इस पूरे मसले को 171 वीं प्रशासनिक परिषद में रखने वाले मास्टरमाइंड सहायक कुलसचिव प्रशांत श्रीवास्तव और उप कुलसचिव एम के हरदहा किसके इशारे पर काम कर रहे थे कि मूल अभिलेख नहीं होने के बावजूद प्रमंडल की 221वीं बैठक 11.04.2018 में मूलभूत नियम के अनुसार लोकहित में संविलियन का अनुमोदन किया जाता है,, की टिप दी गई।
221 वीं प्रमंडल की अध्यक्षता पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज के चहते और प्रदेश के पूर्व कृषिमंत्री गौरीशंकर बिसेन के सगेभाई पूर्व कुलगुरु डॉक्टर प्रदीप कुमार बिसेन अर्थात धारणा के सगे ससुर ने की है।
सत्ता का इससे बड़ा दुरुपयोग, उपभोग, एक योग्य कृषि स्नातक का हक मारना और एक बोगस झूठ लेकिन राजनीतिक पहुंच वाले व्यक्ति को सरकारी नौकरी का लाभ देना, यह उद्देश्य स्पष्ट दिखाई देता है। भाजपा के शासनकाल में ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण है जो ढूंढने पर मिल जाएंगे, अभी तो विश्वविद्यालय के कुछ ऐसे भी अधिकारी कर्मचारी हैं जो कथित तौर पर ईडब्ल्यूएस का लाभ अपने बच्चों को दिलवा रहे हैं। इस पर खुलासा हम बाद में करेंगे। कुलगुरु पीके मिश्रा की सरपरस्ती में एक और घोटाला धोखा फरेब विधानसभा से किया है कि *विधानसभा* में *ध्यान* *आकर्षण* *सूचना* *57* में *मांगा* *कुछ* *और* है *और* *भेजा* *कुछ* *और* है। अब सुधी पाठकगण और मुख्यमंत्री मोहन यादव जी अंदाजा लगाएं कि उनको सरकार कैसी चलाना है। मुख्यमंत्री मोहन यादव जी ने पदभार संभालने के बाद अपना वजन बनाने के लिए एक- दो अधिकारियों को सस्पेंड जरूर कर दिया, उसके बाद उनका ऐसा कुछ दिखाई नहीं दे रहा है कि वह व्यवस्था बदलने के लिए मैदान में आए हैं या इस सत्ता के एक हिस्सेदार बन गए हैं।
अगले 29 वें अंक की प्रतीक्षा करिए।