2008 से बगावती तेवरों से हारती रही है कांग्रेस - Aajbhaskar

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Tuesday, October 17, 2023

2008 से बगावती तेवरों से हारती रही है कांग्रेस





लेखक सत्यदेव चतुर्वेदी

राजनीतिक समीक्षक एवम विश्लेषक

2008  से बगावती तेवरों से हारती रही है कांग्रेस.....

प्रत्याशी चयन में फिर से संगठित- बगावत की आंधी की संभावना  नजर आ रही

आज भास्कर, कटनी। प्रत्याशियों के नाम की घोषणा के बाद राजनैतिक दलों में बगावत होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, इसमें नुक्ता चीनी करने का कोई अर्थ नहीं है l ऐसी बगावतों का असर आंशिक होता है। हां, बगावत ज़ब संगठित रूप से होती है तो राजनैतिक परिदृश्य बदलते देर नहीं लगती। बगावतों की धीमी बयार चलती रहती है, लेकिन कटनी शहर में बगावत को आंधी का रूप लेते हुए सबने देखा है। महापौर के रूप में दो बार बगावती प्रत्याशी ने परिदृश्य बदला है और एक बार तो मतदाता ने दल-दलों से खीझकर नया इतिहास ही रच दिया था । पहले निर्दलीय बगावती महापौर प्रत्याशी संदीप जायसवाल ने और वर्तमान में भाजपा से बागी प्रीति सूरी की बगावत की हवा ऐसी चली कि आंधी में बदल गई। इसके पहले एक बार मतदाता दोनों दल-दल से सीझकर  ऐसे बगावती हुए कि सबक सिखाते हुए किन्नर कमला जान को अपना जनप्रतिनिधि चुन लिया। इन तीन सफल बगावतों से यह प्रमाण तो मिल ही जाता है कि जिले का मतदाता थोपे गए प्रत्याशी को नकारना जानता है।


चुनाव 2023 बगावत -प्रधान चुनाव के रूप में सामने आ रहा है l पूर्व सीएम कैलाश जोशी के पुत्र दीपक जोशी से शुरू हुई बगावत संभाग-जिले-तहसील तक निरंतर परवान चढ़ रही है। भाजपा प्रत्याशी की सूची हर बार नई बगावत की खबर लाती है lलेकिन भाजपाई बगावत का स्वरूप असंगठित होने से पार्टी की स्थिति आंतरिक रूप से ही कमजोर हो पाती है l उनका अधिकृत प्रत्याशी फिर भी मुख्य मुकाबले में टिका रहता है। बगावत से पिछली बार मेयर के चुनाव मे जरूर भाजपा कांग्रेस दोनों की हार हुई।


इसके विपरीत कांग्रेस में बगावत ज्यादा संगठित रूप से होती है। इसका उदाहरण पिछली विधानसभा चुनावों में मिला है, जब जबरदस्त एन्टीइनकमवेंसी के चलते प्रदेश में कांग्रेस को बहुमत मिला लेकिन कटनी में मिथलेश जैन को हारना पड़ा। भले ही कांग्रेस को वोट बढक़र मिले लेकिन भाजपा से सोलह हजार के बड़े अंतर से पिछड़ गए। कांग्रेस की पराजय मे पार्टी कार्यकर्ताओं का जबरदस्त भीतरघात शामिल था जो ऐसे ही परिणाम को दोहरा सकता है l 2018 के  चुनाव में भाजपा से संदीप जायसवाल को मिला बहुमत उनकी संगठित टीम के कारण था। बगावत वहाँ भी थी लेकिन बिखरी हुई थी वह कांग्रेस की तरह एकजुट नहीं थी l संदीप जायसवाल के इस प्रदर्शन पर कहा जाता है कि इस बार इसी वजह से प्रदेेशाध्यक्ष का विरोध भी उन्हें प्रत्याशी बनने से  नहीं रोक पाया है 

कांग्रेस से प्रत्याशी का परिचय अभी तक कटनी विजयराघवगढ़ और बहोरीबंद के मतदाताओं को नहीं कराया गया है । जब प्रत्याशी घोषित होंगे तो कांग्रेस से भी बगावत का दौर शुरू होगा और भाजपा की बगावत के झुके हुए पलड़े को बराबरी पर ले आएगा, यह बात मतदाता समझ गया है।

सुनील मिश्रा भी रेस मे

कटनी से कांग्रेस दावेदारों में अब पूर्व विधायक सुनील मिश्रा का नाम मतजबूती से उभरा है। जिन्हें 1985 में राजीव गांधी की युवा ब्रिगेड से टिकट दी गई थी। आज भी गांधी परिवार से ही उन्हें वजनदारी मिली है, ऐसा अनुभवी कांग्रेसी मानते हैं। खैर जो भी कांग्रेस प्रत्याशी बनेगा उसके खिलाफ बगावत स्वाभाविक रूप से सामने आनी है। इसलिए कटनी और बहोरीबंद में बगावती तेवर निश्चित रूप से चुनाव परिणाम पर असर डालेंगे। भाजपाई बगावत असंगठित और बिखरी रहेगी तो कांग्रेस में बगावत हमेशा संगठित होती रही है।

बगावती तेवरों से 2008 में कांग्रेस को भारी पराजय झेलनी पड़ी थी। उस समय भाजपा से राजू पोद्दार ने 51 हजार मतों को हासिल किया तो कांग्रेस से प्रियदर्शन गौर 21 हजार तक सिमट गए। संगठित बगावत में बीएम तिवारी 12 हजार, संदीप जायसवाल 9 हजार और राजेश दीक्षित 4 हजार लगभग 25 हजार मतों की कटौती कांग्रेस वोट बैंक में कर दी थी।


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चुनाव संहिता क्या रोक पाएगी मोदी का गरबा गीत

कटनी : डंका-शंख-थाली-ताली डमरू-बैंड बजाकर दिखाने वाले सहस्त्रमुखी प्रतिभा के स्वामी प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अब अपनी रचनाधर्मिता एन चुनाव के वक़्त प्रदर्शित की है l उनके भक्तिगीत की रचना से नवरात्र पर धूम मच रही  है। उनके गरबा-गीत को प्रसिद्ध गायक कलाकार भानुशाली और तनिस्क बागची ने अपना स्वर दिया है। इस गीत की रचना पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव काल के मध्य हुई है, इसलिए यह रोचक जिज्ञासा का सबब बन गया है कि- मोदी जी के गरबा गीत को नवरात्र-गरबा आयोजनों में सुनाए-बजाए जाने को चुनाव आयोग किस रूप में स्वीकार करता है।

गाय तेनो गरबो ने,

झीले तेनो गरबो,

दिवस पान गरबो ने

रात पान गरबो।

उक्त गीत आज गुजरात के पंडालों में खूब प्रचलित है। मध्यप्रदेश के गरबा पंडाल में यह गरबा-गान प्रवेश करता है अथवा नहीं इस पर समस्त भांति के भक्तों में चर्चा की जा रही है।