
जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह
आज भास्कर\जबलपुर। पूर्व कृषि मंत्री गौरी शंकर बिसेन की बहू धरना रामकिशोर टेंभरे बिसेन ने गोंदिया मैं अशासकीय धोतेबंधु साइंस कॉलेज मैं सहायक प्राध्यापक जूलॉजी के पद पर सेवाएं 14 सितंबर 2012 से शुरू की है, यह बात आपको पिछ्ले 21अंकों में स्पष्ट हो चुकी है। अशासकीय कॉलेज डीबी साइंस कॉलेज को चलाने वाली अशासकीय संस्था गोंदिया एजुकेशन सोसाइटी ने धारणा विसेन का नियुक्ति आदेश 10.9.2012 को जारी किया है।
यह नियुक्ति अभिलेख जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड में नहीं था। मांगे जाने पर आरटीआई में यह अभिलेख डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया के प्राचार्य अंजन कुमार नायडू ने उपलब्ध कराया है। अंजन कुमार नायडू ने कितने घपला, धोखाधड़ी चार सौ बीसी की है यह अगले अंक में विस्तार से पढ़ने को मिलेगा। क्योंकि धोखाधड़ी फरेब और मक्कारी की पूरी कहानी का प्रथम घटना स्थल डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया है। अभी राजा भोज कृषि कॉलेज वारासिवनी, बालाघाट मे धरना और शरद के सोचे समझे सुविचारित सुनियोजित अपराध की वह कड़ी खोल रहे हैं जो आरटीआई दिनांक 03. 04. 2025 की जानकारी आने से स्पष्ट हुई है। गोंदिया एजुकेशन सोसाइटी का नियुक्ति पत्र 10. 9. 2012 को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय ने अपने रिकॉर्ड पर नहीं लिया है।विश्वविद्यालय ने इसे रिकॉर्ड पर इसीलिए नहीं लिया है क्योंकि इस अभिलेख को धोखाधड़ी और हेरफेर के साथ मुख्य आरोपियों ने रिकॉर्ड में नहीं आने दिया है। इन सातों के नाम अंत में बताऊंगा पहले इस अपराध की विवेचना पर चलते हैं। धरना और शरद ने सादे कागज पर प्रतिनियुक्ति आवेदन 19.10.2016 में साफ लिखा है कि महाराष्ट्र शासन में उनकी नियुक्ति 10.09.2012 को हुई है। महाराष्ट्र शासन में धारणा की नियुक्ति से संबंधित एक भी अभिलेख कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर ने नहीं मांगा, प्रतिनियुक्ति और संविलियन का प्रस्ताव बनाने वाले सहायक कुलसचिव विधि और बैठक प्रशांत श्रीवास्तव ने धरना की डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया में नियुक्ति की तिथि 10.9.2012 को ही पदभार ग्रहण करने की तिथि के रूप में लेख किया है,(शासकीय सेवा में वरिष्ठता देने की गरज से सोच समझ सामूहिक, सुविचारित षड्यंत्र)।
अब सुधी पाठक विचार करें कि कृषि कॉलेज गोंदिया के पास केवल एक सर्विस बुक है, यह सर्विस बुक गोयल प्रिंटिंग प्रेस करमचंद चौक से वर्ष 2017 में शरद विसेन ने खरीद कर अपने हाथ से एंट्री दर्ज की है। (इन एंट्री का विश्लेषण आगे,बाद में करेंगे)।
किसी भी कर्मचारी की जीवन में केवल एक सर्विस बुक बनती है (प्रथम नियुक्ति दिनांक से लेकर सेवानिवृत्ति दिनांक तक केवल एक सर्विस बुक ही होती है।)
कर्मचारी की केवल एक नियुक्ति तिथि, पदभार ग्रहण तिथि, ट्रांसफर या स्थानांतरण होने पर एक कार्यमुक्त अर्थात रिलीविंग तिथि, और सबसे अंत में एक सेवानिवृत्ति की तिथि होती है। यह सभी महत्वपूर्ण तिथियां एक ही एक होती है, यदि दूसरी तिथियां है तो मतलब कंट्रोवर्सी आ गई है। हेरफेर हुई है, धोखाधड़ी हुई है, और आर्थिक लाभ कमाने के लिए तारीखों का मनमाना उपयोग करने के लिए छल,छद्म,फरेब, मक्कारी, व्यक्तिगत लाभ के लिए शासन की आंखों में धूल झोंकना, का इस्तेमाल किया है।
सुधीपाठक विचार करें कि डीबी साइंस कॉलेज में 10 सितंबर 2012 को नियुक्ति आदेश और 14 सितंबर2012 से सेवाएं शुरू करने वाली धारणा बिसेन की सेवापुस्तिका नहीं बनी है।
क्योंकि यदि धारण की सेवा पुस्तिका डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया ने बनाई होती तो वह गोयल प्रिंटिंग प्रेस करमचंद चौक जबलपुर की नहीं होती वह महाराष्ट्र के किसी प्रिंटिंग प्रेस की होती। और उसे महाराष्ट्र के गोंदिया की सर्विस बुक में महाराष्ट्र शासन में धारणा का नियुक्ति का आदेश दिनांक 10.09.2012 .....के तहत सर्विस बुक बनाई गई है, की घोषणा ,सत्यापन पहले पन्ने पर दर्ज होता।
यहां साफ हो जाता है कि डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया ने धारणा विसेन की नियुक्ति 10.9.2012 से लेकर धरना की शासकीय कृषि कॉलेज वारासिवनी, जिला बालाघाट में प्रतिनियुक्ति आदेश 16. 8.2017 और कृषि कॉलेज बालाघाट में पदग्रहण 25. 8. 2017 तक का कोई रिकॉर्ड (सर्विस बुक में) मेंटेन नहीं किया है, कोई सर्विस बुक नहीं बनाई है।
डीबी साइंस कॉलेज में धरना का पदग्रहण का स्वयं का डिक्लेरेशन 14. 9.2012 हस्तलिखित का अभिलेख गोंदिया डीबी साइंस कॉलेज के प्राचार्य अंजन कुमार नायडू ने लोक सूचना अधिकारी की मांग पर कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर को पहली बार भेजी है। जो आरटीआई कार्यकर्ता को क्रमांक 145/440 / जबलपुर 03 अप्रैल 2025 को प्राप्त हुई है।
अर्थात डीबी साइंस कॉलेज ने अपने लेटरहेड और पत्र क्रमांक के साथ इस बात की उद्घोषणा नहीं की है कि धारणा उनके अर्थात डीबी साइंस कॉलेज में 14. 09.2012 को पदभार ग्रहण करके सेवारत रही है। केवल सादे कागज पर धरना का डिक्लेरेशन है कि मैं(धारणा ) 14 सितंबर 2012 से डीबी साइंस कॉलेज में सेवाएं देने के लिए उपस्थित हुई है। धारणा के स्वघोषणा पत्र पर डीबी साइंस कॉलेज की कोई आवक जावक, कोई टीप ,पावती कुछ भी दर्ज नहीं है।
धारणा के डीबी साइंस कॉलेज में पदग्रहण के स्वघोषणा से स्पष्ट है कि डीबी साइंस कॉलेज ने पूरी तरह से फर्जी बोगस धोखाधड़ीयुक्त , झूठे , मिथ्या अभिलेख तैयार किए हैं।
अब आप गौरीशंकर बिसेन पूर्वमंत्री बालाघाट के परिजनों के शातिर, मानसिक स्तर का अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके मन में कितना छल, फरेब धोखाधड़ी, मक्कारी भरी हुई है।
सुधी पाठक अनुमान लगाने की 14 सितंबर 2012 से लेकर 25 अगस्त 2017 तक कुल अवधि लगभग चार वर्ष की सेवा अवधि का रिकॉर्ड डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया के प्राचार्य अंजन नायडू ने नहीं रखा है। आचार्य नायडू ने धरना की कोई सर्विसबुक नहीं बनाई है। यदि डीबी साइंस कॉलेज के प्राचार्य अंजन कुमार नायडू ने सर्विस बुक रखा होता तो 25. 8.2017 को कृषि कॉलेज वारासिवनी जिला बालाघाट में पदभार ग्रहण करने वाली धारणा की सर्विसबुक को उनके पति शरद बिसेन सन ऑफ पूर्व कुलपति डॉक्टर पीके बिसेन को सर्विसबुक गोयल प्रिंटिंग प्रेस करमचंद चौक जबलपुर से वर्ष 2017 में खरीद कर नहीं लानी पड़ती, और उसमें डीबी साइंस कॉलेज मैं धरना की सेवा अवधि 4 वर्ष का रिकॉर्ड मेंटेन करने की जरूरत नहीं पड़ती।
(अभी हम धरना के पति शरद बिसेन द्वारा वर्ष 2017 में जबलपुर स्थित करमचंद चौक के गोयल प्रिंटिंग प्रेस से खरीदी हुई सर्विस बुक के अंदर की एंट्रीयों पर विस्तार में नहीं जा रहे हैं)
यहां हम इतना अवश्य बता दें की आरटीआई कार्यकर्ता को प्राप्त सर्विस बुक के पेज नंबर 14 में डीबी साइंस कॉलेज के प्राचार्य अंजन कुमार नायडू ने ग्रांटेड लियन के अंतर्गत दो लाइन में लेख किया है कि:- ग्रांटेड लियोन फॉर वन ईयर विद इफ़ेक्ट फ्रॉम 18/8/2017 टू 17.8.2018
शी इस रिलीव्ड फ्रॉम हर ड्यूटीज ऑन डेटेड 24.8.2017 ए एम।
(सुधी पाठक यहीं से गोंदिया से शुरू धोखाधड़ी को पकड़ें की जब धारणा बिसेन का कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर से प्रतिनियुक्ति आदेश 16.08. 2017 जारी हुआ है तो गोंदिया से दो दिन बाद लियन ग्रांटेड 18/8/ 2017 का पत्र जारी होना कैसे संभव है।
कृषि कॉलेज बालाघाट में अपने आरटीआई जवाब 26/11/2024 में स्पष्ट कहा है कि लियोन के अभिलेख रिकॉर्ड पर नहीं है)
(आगे के अंक में इसी प्रतिनियुक्ति, लियोन और संविलियन इन तीन बिंदुओं पर तकनीकी चर्चा करेंगे)
सुधी पाठक समझ गए होंगे की 13 जनवरी 2025 को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के लोक सूचना अधिकारी के समक्ष आरटीआई आवेदन 03.01.2025 में ओरिजिनल रिलीविंग आर्डर मांगने के बाद भी ओरिजिनल रिलीविंग आर्डर नहीं मिला है।
प्रथम अपील अधिकारी ने चाहे गए अभिलेख 10/ दस दिन के अंदर उपलब्ध कराने का आदेश 19.03.2025 को दिया है परंतु प्रथम अपील अधिकारी के आदेश का कंप्लायंस नहीं होना सूचना अधिकार अधिनियम 2005 का स्पष्ट उल्लंघन है और अपराध की श्रेणी में आता है जिस पर प्रथम अपील अधिकारी को एक स्मरणपत्र देकर आगे की कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए कहा जा सकता है। सुधी पाठकों को बता दिया जाए कि पूर्व के अंकों में डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया से धरना के रिलीविंग की चार तारीख है, कृषि विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड में मौजूद है और यह रिलीविंग की पांचवी तारीख 24.08.2017 कृषि कॉलेज बालाघाट में में तैयार सर्विस बुक के पेज नंबर 14 पर मिली है।
अगले अंक में इन्हीं पांच रिलीविंग तारीखों पर विस्तार से रिपोर्ट पढ़िए।
ऊपर मैंने उल्लेख किया है कि इसमें सात प्रमुख आरोपी हैं, उनके नाम है गोंदिया के प्राचार्य अंजन कुमार नायडू, सर्विस बुक जबलपुर से खरीद कर लाने वाले डॉक्टर धरना के पति डॉक्टर शरद बिसेन, सर्विस बुक को मेंटेन करने वाले कृषि कॉलेज बालाघाट के प्रथम डीन विजय बहादुर उपाध्याय, दूसरे नंबर पर डीन रहे जी के कोतू, यही कोतू अभी संचालक अनुसंधान के पद पर कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर में पदस्थ हैं। तीसरे डीन है नरेश कुमार बिसेन जो वर्तमान में अभी कृषि कॉलेज बालाघाट में धारणा को सातवां वेतनमान देने के बाद से सिर पकड़ कर बैठे हैं।कृषि कॉलेज बालाघाट के पूर्व डीडीओ ऋषिकेश ठाकुर, घनश्याम देशमुख, सर्विस बुक में गवाह के रूप में हस्ताक्षर करने वाले डॉक्टर अजय सिंह लोधी वर्तमान में सागर में पदस्थ है,कृषि कॉलेज जबलपुर में एक साल तक धरना की सर्विस बुक को दबाकर रखने वाले उपवित्त नियंत्रक अजय खरे, अजय खरे ने यह सोचकर एक साल तक धरना की सर्विस बुक दबाकर रखी कि जैसे ही मामला ठंडा होगा सातवां वेतनमान की प्रमाणीकरण कर दी जाएगी ,और इसी के साथ धारण की सर्विस बुक का स्वमेव सत्यापन हो जाता, पर आरटीआई कार्यकर्ता के बीच में आ जाने से यह हो ना सका और मजबूरन में दिसंबर 22 में आई सर्विस बुक को दिसंबर 23 के आसपास वापस बिना सत्यापन के बालाघाट लौटना पड़ा। उसे समय वित्त नियंत्रक डॉ महोबिया थे जिन्होंने लिख कर दिया है की धारणा की सर्विस बुक का अनुमोदन और सत्यापन नहीं हुआ है, अपने आप को संघ का बड़ा कर्तव्यनिष्ठ स्वयंसेवक बताने वाले अजय खरे यदि उसे समय वित्त नियंत्रक होते तो पता नहीं यह क्या लिख देते।
यहां स्पष्ट बता दूं कि इस शानदार धोखाधड़ी में शामिल कृषि विश्वविद्यालय में पदस्थ अधिकांश अधिकारी कर्मचारी बालाघाट के मूल निवासी हैं।
इनमें डीएसडब्ल्यू अमित शर्मा, पूरे मामले को अपने हाथों से तैयार करने वाले सहायक कुलसचिव विधि और बैठक प्रशांत श्रीवास्तव, पूर्व कुलसचिव अशोक कुमार इंगले, कुलसचिव के रीडर राकेश बोरकर
इन सभी गोटे को कहां-कहां बिठाना है यह पूर्व मंत्री गौरी शंकर बिसेन के भाई पूर्व कुलगुरु पीके विसेन ने डीएसडब्ल्यू के पद पर रहते हुए तय कर लिया था और उसी के अनुसार सभी गोटियां बिठाई गई जिससे यह अंतरराज्यीय आपराधिक षड्यंत्र 8 सालों तक दबा रहा और अंततः उजागर हो गया है।
(अंक 21 - 22 में यह सवाल उठाए जा चुका है कि किसी अशासकीय सहायक प्राध्यापक की शासकीय सेवा में सर्विस बुक किस प्रकार बनेगी यही सबसे बड़ा प्रश्न है।)
क्रमशः ------