
जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट
आज भास्कर\जबलपुर। भाजपा का परिवारवाद पर यह 25 वां अंक अनुभवी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी को समर्पित है। पिछले 30 सालों से कांग्रेस के परिवारवाद के धुरविरोधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक , मुख्यमंत्री मोहन यादव जी लेखक के यह विचार पहुंचाएंगे ऐसी उम्मीद रखते हैं। भाजपा संगठन मंत्री हितानंद शर्मा से उम्मीद करते हैं कि वह भाजपा की परिवारवाद से मुक्ति की दिशा में ठोस कदम उठाएंगे, इससे पार्टी की छवि बनाने में मदद मिलेगी, नहीं तो यदि कांग्रेस ने इस मुद्दे को हाथों-हाथ लिया तो मान लें कि धर्म की भांग का नशा मतदाता पर कितना ही चढ़ा हो उतरने में वक्त नहीं लगेगा। पर इसकी संभावना व्यावहारिक रूप से कम ही दिखाई दे रही है। भाजपा जब भी अपने विचार को और सलाहकारों के साथ बैठक करें तो उम्मीद है कि मुद्दे से सभी को अवगत कराएंगे।
लेख के समापन पर सुधी पाठक स्वयं यह निष्कर्ष निकाल लेंगे कि भाजपा की कथनी और करनी में कितना अंतर है। कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर में परिवारवाद अर्थात सगे रक्तसंबंधियों को शासकीय सेवा में लेने और आर्थिक लाभ देने का यह सिलसिला पिछले 20 वर्षों से चल रहा है। सभी प्रकरणों का धीरे-धीरे, क्रमशः एक के बाद एक खुलासा करेंगे। पूर्व के अंकों में रक्तसंबंधियों को शासकीय सेवा का लाभ देने और लेने वालों के बारे में आंशिक जानकारी दी जा चुकी है। और यदि संघ का नाम और आड़ ले लेकर सत्ता की मलाई खाने वालों पर रोक नहीं लगाई गई तो आने वाला समय निश्चित रूप से संघ और भाजपा दोनों के लिए कठिन होगा।
यहां स्पष्ट आशय कृषि विश्वविद्यालय के राजा भोज कृषि कॉलेज वारासिवनी जिला बालाघाट मे पदस्थ सहायक प्राध्यापक धारणा और उसके सहायक प्राध्यापक पति शरद बिसेन का है।
यह 25 वां सिल्वर जुबली अंक है, कृषि विश्वविद्यालय में अभी आगे गोल्डन जुबली अंक तक जाने का प्रयास है।
यह सिल्वर जुबली अंक इसीलिए क्योंकि अशासकीय कॉलेज के सहायक प्राध्यापक की शासकीय कॉलेज में अंतरराज्यीय प्रतिनियुक्ति पदग्रहण और संविलियन पर इस खबर के सोशल मीडिया में आने के पहले तक, खबर उजागर नहीं हो इसके लिए समस्त भाजपा और संघ के लोगों ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। अपराध करना जितना गलत है उससे ज्यादा जानबूझकर अपराध को, संरक्षण और छुपाने की हर संभव कोशिश करना गलत है ,बल्कि न्याय व्यवस्था में इसे अत्यंत गंभीर माना जाता है।
मूल घटनास्थल वर्तमान केंद्रीय कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनके मध्यप्रदेश के पूर्व कृषिमंत्री बालाघाट के गौरीशंकर बिसेन की ससुराल गोंदिया से जुड़ा है। जिस धारणा बिसेन को यह लाभ मिला है, वह भी मूलरूप से गोंदिया की है। धारणा ,गौरीशंकर बिसेन के छोटे भाई कृषि विश्वविद्यालय के वर्ष 2017 से 2021 तक के कुलगुरु रहे डॉक्टर प्रदीप कुमार बिसेन के लड़के शरद बिसेन की पत्नी है। शरद बिसेन भी मार्च 2015 में सहायक प्राध्यापक उद्यान कृषि कॉलेज बालाघाट पर जब पदस्थ हुए उसे समय डीएसडब्ल्यू और डीन फैकल्टी के पद पर क्रमशः प्रदीप कुमार बिसेन और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के ससुर डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा पदस्थ थे। बहुत स्पष्ट है कि शरद बिसेन की नियुक्ति में भी महत्वपूर्ण आधिकारिक और निर्णायक डीएसडब्ल्यू और डीन फैकल्टी के पद पर बैठे सगे रक्तसंबंधियों, पार्टी संबंधियों ने खुलकर खेला है।
धारणा ने सादे कागज पर प्रतिनियुक्ति आवेदन 19.10. 2016 और 30.06.2017 में स्पष्ट लेख किया है कि उसे व्यक्तिगत और निजीहित में पति शरद बिसेन सहायक प्राध्यापक उद्यान राजा भोज कृषि कॉलेज तहसील वारासिवनी जिला बालाघाट में पदस्थ कराया जाए।
और इस निजीहित को प्रशासनिक परिषद की 166 वीं, बैठक 171 वीं बैठक, तथा प्रमंडल की 221 वीं बैठक में सार्वजनिक एवं लोकहित में अनुमोदन किया जाना, बताना यह प्रमाणित करता है कि यह रक्तसंबंधियों और पार्टी संबंधियों का आपस में कितना गहरा संबंध है,।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम भी इस कूटरचना में दस्तखत करना नहीं भूले।
पत्नी सुख प्राप्त करने के निजीहित को लोकहित में प्रतिनियुक्ति और संविलियन किया गया लिखना कितना उचित है यह विधि विशेषज्ञ बतायेंगे।
खास बात यह है की धारणा की जो गोयल प्रिंटिंग प्रेस करमचंद चौक से खरीद कर वर्ष 2017 में बनाई गई सर्विस बुक के अंदर पेज 15 पर स्पष्ट लेख है कि यह प्रतिनियुक्ति एमपी फंडामेंटल रूल को यथा अनुरूप स्वीकार करते हुए जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर ने की है।
यह तो नियुक्ति की विधि- विधिक कसौटी पर कसने के लिए बताया है, परंतु क्या भाजपा के संगठन मंत्री हितानंद शर्मा, इस बात का स्पष्टीकरण देने और लेने का काम कर पाएंगे कि गोंदिया बालाघाट जबलपुर और भोपाल के बीच चला परिवारवाद में कृषि विश्वविद्यालय के समस्त अधिकारियों और कर्मचारी ने चूं से चाँ तक नहीं किया,100 से अधिक अधिकारियों और कर्मचारियों ने आंख मूंद कर लगभग 2 सालों तक अशासकीय सेवक की शासकीय सेवा में अंतरप्रांतीय प्रतिनियुक्ति पर एकराय होकर कदम से कदम मिलाकर , शानदार कदमताल किया है। सुधी पाठक विचार करें कि प्रत्येक अधिकारी और कर्मचारी एग्री फॉर डेपुटेशन , एग्री फॉर हाईकमान आर्डर पर चला है।
यही नहीं धरना के आवेदन 19.10.2016 से लेकर उसके संविलियन 5.10.2018 तक तो कूटरचना, कदाचरण और पद के दुरुपयोग का एकदम खुला खेल है।
फिर किसी ने यह नहीं देखा कि धारणा की सर्विस बुक में गोंदिया एजुकेशन सोसाइटी के सचिव के नियुक्ति आदेश 10.9.2012 को ही शासकीय सेवा में नियुक्ति का आदेश मानते हुए सर्विस बुक में एंट्री कर दी गई है।
(गोंदिया एजुकेशन सोसाइटी का नियुक्ति आदेश 10.9.2012 विश्वविद्यालय जबलपुर में मौजूद धारणा की प्रतिनियुक्ति और संविलियन की फाइल में संलग्न नहीं है ,यह आरटीआई के माध्यम से 3 अप्रैल 2025 को प्राप्त हुआ है, तब यह खुलासा हुआ है कि धारणा ने प्रतिनियुक्ति आवेदन 19.10.2016 और 30.06.2017 में महाराष्ट्र शासन में 10.09.2012 से सेवारत होने का सफेद झूठ का लेख किया है।)
सर्विस बुक में इसी एंट्री 10.09. 2012 से शासकीय सेवा में होने के आधार पर धारणा को 100 से अधिक वरिष्ठ प्राध्यापक एसोसिएट प्राध्यापक और सहायक अध्यापकों के ऊपर वर्तमान कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा ने वरिष्ठता दी है। सुधी पाठक विचार करें कि कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा ने विश्वविद्यालय में मौजूद उनके समकक्ष और वरिष्ठ प्राध्यापकों का कितना अपमान किया है। और शासन का कितना आर्थिक नुकसान पहुंचाया है,।
(धारणा ने विधानसभा चुनाव के पूर्व चाइल्ड केयर लीव का हस्तलिखित आवेदन 22 मार्च 2024 को कृषि कॉलेज बालाघाट में प्रस्तुत किया है, यह प्रपत्र जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर की शासकीय प्रपत्र है, जिसे धारणा ने हस्तलिपि में भरा है, कॉलम चार और पांच में शासकीय सेवा में नौकरी पर आने की तिथि 14.0 9.2012 और परीवीक्षा पूर्णता की तिथि 14.9.2013 बताई है, गौरतलब है कि कृषि विश्वविद्यालय में परीवीक्षा पूर्णता की अवधि 2 वर्ष की होती है। इस सफेद झूठ पर भी अधिष्ठाता बालाघाट एनके बिसेन ने दस्तखत करके सहमति दी है।)
बड़ी-बड़ी पीएचडी कराने वाले कृषि वीके डीन और प्रोफेसर जब प्रशासनिक परिषद की बैठक में वरिष्ठता, वेतनवृद्धि , सीएएस देने का निर्णय करने के लिए बैठे तो कोई भी यह क्यों नहीं देख पाया कि धारणा को 10.9.2012 से वरिष्ठता की पात्रता नहीं बनती है और ना ही अन्य कोई योग्यता उसके अंदर है जिसके कारण उसे वरिष्ठता, वेतनवृद्धि और सीएएस का लाभ दिया जा सकता है।
सभी क्यों इस भयंकर भूल और कूटरचना, कदाचरण और साशय सर्विस बुक में फेरफार को आंख बंद करके स्वीकार करते चले गए, इस बात का कोई तर्क यदि कुलगुरु पीके मिश्रा के पास है तो वह बताएं। बहुत साफ है कि धारणा को यह सब लाभ देने के लिए प्रशासनिक परिषद के सामने बहुत स्पष्ट संदेश था कि यदि सहयोग नहीं करोगे तो जबलपुर विश्वविद्यालय में नहीं रह पाओगे, बच्चों की शिक्षा दीक्षा का और महानगर में रहने का लालच सभी को होता है। किसी को टीकमगढ़ रीवा गंजबासौदा या छिंदवाड़ा नहीं जाना है। और खासतौर पर जब सीधे पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और उनके पूर्व कृषिमंत्री गौरीशंकर बिसेन अपनी बहू के मामले को देख रहे हो, यह भी स्पष्ट है कि प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के ससुर कुलगुरु पीके मिश्रा तो हैं ही, साथ ही साथ पीके मिश्रा को उनकी पत्नी के साथ अत्यंत पारिवारिक संबंध होने के कारण उमा भारती का भी आशीर्वाद प्राप्त है। इतनी अंधेरगर्दी का उदाहरण तो ना भूतो और ना भविष्यति है।
उसमें भी महत्वपूर्ण यह है कि कूटरचना कदाचरण और धोखे को अधिकारी वर्ग नहीं देख पाया लेकिन जो स्थापना एक और दो के सहायक कुल सचिव और अनुभव अधिकारी ने फाइल तैयार करने का काम किया, वरिष्ठता और अन्य सुविधाएं देने के लिए समय-समय पर जो भी बैठक हुई है, तो उसमें इस गलती की तरफ क्यों नहीं ध्यान आकर्षित कराया कि धारणा की शासकीय सेवा में मूल उपस्थित उसकी संविलियन की तारीख 5.10.2018 से बनती है, उसके पहले बिल्कुल नहीं बनती है, और यदि उसके पहले अशासकीय डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया की नियुक्ति तिथि 10. 9. Pi 2012 से वरिष्ठता बनी है तो वह स्पष्ट कूटरचना है, कदाचरण है, साशय फेरफार है, धोखाधड़ी है, जालसाजी है, सामूहिक सुविचारित सुसंगठित षड्यंत्र है, जानबूझकर वास्तविक तथ्यों को छुपाना है, और झूठे तथ्यों को सत्य के रूप में स्थापित करना है, इस पूरे काम में सहायक कुलसचिव विधि और बैठक बालाघाट के मूल निवासी प्रशांत श्रीवास्तव और बालाघाट के ही मूल निवासी डीएसडब्ल्यू अमित शर्मा ने सक्रिय भूमिका निभाई है, भाजपा ने कांग्रेस की लाबी तोड़ी तो कोई गलत नहीं किया, लेकिन अपनी भी जो लॉबी बनाई वो कांग्रेस से ज्यादा खराब और गंदी लॉबी बनाई है,।
पाठकगण इसके बाद उद्यान शास्त्र विभाग और प्रक्षेत्र संचालक अनीता बब्बर, हाल ही में सेवानिवृत हुए कृषि कॉलेज के डीन और लोक सूचना अधिकारी आशुतोष श्रीवास्तव और संचालक अनुसंधान जी के कोतू के कारनामों का भी खुलासा पढ़ेंगे।
सुधी पाठकों को बहुत आनंद आएगा कि जिस कृषि पर भारत सरकार सर्वाधिक बजट का आवंटन करती है उस कृषि को सत्यानाश या बर्बाद करने में कितने आगे हैं और अपना छलछद्म , धोखा,भ्रष्टाचार छुपाने के लिए कितना जतन करते हैं ,और लोक सूचना अधिनियम 2005 को किस कदर मजाक बना रखा है। यह सब आप अगले अंक में देखेंगे
पुनः परिवारवाद के धुरविरोधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को समर्पित सिल्वर जुबली अंक 25 वाँ
क्रमशः ___