जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट
आरएसएस की धौंस दिखा वित्त नियंत्रक कर रहा वित्तीय अनियमितता
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय की वित्तीय स्थिति बिगड़ने वाले कुलपति डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा और कथित वित्त नियंत्रक के .वी. के. वैज्ञानिक अजय खरे पर खास रिपोर्ट।
आज भास्कर,जबलपुर। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव के विज्ञापन खाते से किसान कल्याण योजना वर्ष 2025 - 26 का एक विज्ञापन वायरल हुआ है। विज्ञापन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री मोहन यादव का फोटो है। यह फोटो सबसे ऊपर है। किसान कल्याण योजना में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय को ब्लॉक ग्रांट में 178 करोड़ और पेंशनर की सावित्री योजना में 78 करोड़ देने की घोषणा की है। स्पष्ट है की घोषणा हवा हवाई है और धरातल पर खरी नहीं उतरी है। ब्लॉक ग्रांट के 178 करोड़ में क्या होगा क्या नहीं होगा उसका डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट क्या है कोई नहीं जानता।
इसी तरह कृषि विश्वविद्यालय के सेवानिवृत कर्मचारियों अधिकारियों को सावित्री योजना के अंतर्गत पेंशन के खाते में 78 करोड रुपए दिया है।
विज्ञापन के अनुसार वर्ष 2025 - 26 के बजट में यह प्रावधान है। स्पष्ट है कि यह बजट फरवरी 2025 को स्वीकृत हुआ है। सरकार के सालाना वित्त बजट में पैसा स्वीकृत होने से निःसंदेह रकम राज्य शासन के वित्त मंत्रालय से निकलकर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के खाते में आ चुकी है।
इसके पूर्व 11 मार्च 2025 के लेख में मैंने बैंकों के फ़िक्स डिपॉजिट कारनामे की तरफ इशारा किया है ।
चाहे प्राइवेट बैंक हो या राष्ट्रीयकृत बैंक हो बड़ी फिक्स डिपाजिट पाने के लिए संबंधित अधिकारी को बतौर इनाम एक बड़ी रकम दी जाती है।
यह काम बैंक के रिकॉर्ड में होती है लेकिन इनाम पाने वाले के रिकॉर्ड में सरकारी रिकॉर्ड में नहीं होती है।
खासतौर पर वित्त नियंत्रक अजय खरे के बारे में मैं बताना चाहूंगा कि यह आरएसएस के नाम की बड़ी दम भरते हैं।
यह समय की बलिहारी है कि अब आरएसएस में वैसे लोग नहीं रह गए हैं जो नीति और सिद्धांतों के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दें। अजय खरे संघ के उन मौका परस्त लोगों में शामिल हैं जो केवल अपना फायदा निकालना जानते हैं।
अजय खरे केवीके की सेवा से अर्थात भारत सरकार की सेवा से राज्य शासन की सेवा में विश्वविद्यालय के पास आए हैं।
केवीके का स्थापना प्रबंधन जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय देखा है। इसीलिए अजय खरे राज्य शासन की सेवा में 65 वर्ष की आयु की छूट का पूरा लाभ लेना चाहते हैं।
और इसीलिए राज्य शासन और भारत सरकार के कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली को अपने कथित आर्थिक लाभ के लिए उलझा कर रखा है। कृषि अनुसंधान परिषद नई दिल्ली में संभव होता है 62 साल के से अधिक की सेवाएं नहीं होती हैं। नौकरी में आने के लिए एक अंडरटेकिंग और शपथ पत्र देना होता है जिसमें नियुक्ति करता को शपथ पर समस्त शर्तों को मान्य करके नियुक्ति प्राप्त करने संबंधी शर्तें वर्णित रहती हैं।
मैं आपको वित्त नियंत्रक अजय खरे के एक कथित गोलमाल के बारे में बताता हूं जो उन्होंने अपने वेतन मन में लगा रखा है। यह भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है जिस पर जांच जरूरी है। और आगे में जिस मुद्दे को वर्णित कर रहा हूं उसे पर विश्वविद्यालय आने वाली भारत सरकार और स्थानीय राज्य सरकार की अधिक टीमों की रिपोर्ट और टीप भी चाहूंगा।
चाहे कृषि विश्वविद्यालय हो या केवीके का वेतनमान का आधारभूत संरचना हो, इसके अंदर 10000 का कोई स्केल अर्थात वेतनमान का बेसिक आधार वर्णित नहीं है।
यह स्केल 9000 का है जो विश्वविद्यालय में सभी पर लगा है।
वित्त नियंत्रक खुद उसे कुर्सी पर बैठे हैं जिस कुर्सी के लिए ना तो वह पात्र हैं और ना ही अधिकारी हैं, लेकिन आरएसएस के कथित आशीर्वाद का वह जो गाना गाते हैं उसी के आधार पर यह मान लिया जाए कि संघ इसे गलत काम कर रहा है। या संघ की आड़ में यह अपने आप को सुरक्षित रखना पसंद कर रहे हैं। मुझे पता नहीं कि इस संबंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारी क्या विचार रखते हैं या उनके सामने यह मसला जाएगा तो उसे पर उनका क्या चिंतन और अभिमत होगा मैं नहीं कह सकता। पर यह तय है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए अजय खरे और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के ससुर वर्तमान कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा पूरे मसले को उलझाए रखना चाहते हैं।
यहां मैं यह भी स्पष्ट कर दूं कि हाल ही में स्थानीय निधि संपरीक्षा के कुछ अधिकारियों को गड़बड़ी करने पर जिलाधीश दीपक सक्सेना ने कथित अनियमितताओं के कारण निलंबित करने की खबर सामने आई है। संघ के कर्ताधर्ताओं को इस बात पर विचार करना चाहिए कि कौन संघ के नाम को आगे बढ़ा रहा है या संघ को बदनाम कर रहा है या किन लोगों की हरकतों के कारण संघ बदनाम हो रहा है। इस खबर का कितना असर आगे होगा यह मैं नहीं कह सकता
क्योंकि सईयां भये कोतवाल तो अब डर काहे का।
कुछ भी हो जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में वर्तमान कुलगुरु पीके मिश्रा के कारण जो अराजक स्थिति निर्मित हुई है उसे पर मुख्यमंत्री मोहन यादव और कृषि मंत्री इंदल सिंह कंसाना को संज्ञान लेना चाहिए। यह भी उचित रहेगा कि वह जबलपुर के पूर्व जेडीए अध्यक्ष और वर्तमान में सागर में रानी अवंती बाई विश्वविद्यालय के कुलगुरु विनोद मिश्रा को वर्तमान कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा के स्थान पर भेज दें।
कृषि विज्ञान केंद्रों में गत 6 माह से वेतन नहीं मिला है। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में भी वेतन और पेंशन का मामला 3 माह से जीरो पर है। बहुत सारे कर्मचारी और अधिकारियों ने तमाम बैंकों से अपने वेतन के आधार पर लोन ले रखा है और उनकी सिविल बिगड़ रही है जिससे आगे उनको परेशानी होना है। भाजपा की सरकार संवेदनशील सरकार कहलाती है। लेकिन अभी तक मोहन यादव की संवेदनशीलता दिखाई नहीं दे रही है। शुरुआत में एक दो आईएएस अधिकारियों को निलंबित करके मुख्यमंत्री मोहन यादव ने अपनी पकड़ बनाई थी लेकिन अब पूरी पकड़ बन गई है इसीलिए किसी को निलंबित करने की स्थिति दिखाई नहीं दे रही है। आशा यह है कि जो पावर पॉइंट पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पास था अब वह सरक के वर्तमान मुख्यमंत्री मोहन यादव के पास आ गया है और इसीलिए किसी अच्छे या कड़े निर्णय की अपेक्षा नहीं की जा सकती है। जिसे हम बोलचाल की भाषा में कहते हैं कि गुरु सब सेट हो गया है। नहीं तो मुख्यमंत्री बनने के बाद, जिस गति से मुख्यमंत्री मोहन यादव अधिकारियों पर गाज गिरा रहे थे, अब वह गाज गिरना बंद हो गई है। इशारा साफ है की क्या संकेत जा रहा है।