- एक दिवसीय प्रवास पर जबलपुर पहुंचे डॉ. द्विवेदी ने पत्रकारों से एनीमिया को लेकर विस्तार से की चर्चा
आज भास्कर, इंदौर। केंद्रीय होम्योपैथी अनुसन्धान परिषद् आयुष मंत्रालय भारत सरकार के सदस्य और देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद के सदस्य तथा वरिष्ठ होम्योपैथिक चिकित्सक डॉ. एके द्विवेदी एक दिवसीय प्रवास पर 27 नवंबर, बुधवार को जबलपुर में थे। इस दौरान डॉ. द्विवेदी ने पत्रकारों से चर्चा की। जिसमें उन्होंने एनीमिया के तीन प्रमुख प्रकारों आयरन डेफिशियेंसी एनीमिया, सिकल सेल एनीमिया और अप्लास्टिक एनीमिया के कारण, लक्षण और उपचार पर विस्तार से जानकारी दी और जागरूकता लाने का आह्वान किया।
आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया से भारत की 57% महिलाएं पीड़ित
डॉ. एके द्विवेदी ने बताया कि आयरन डेफिशियेंसी एनीमिया शरीर में आयरन की कमी के कारण होता है, जो हीमोग्लोबिन निर्माण में बाधा उत्पन्न करता है। वहीं आयरन की कमी से होने वाला एनीमिया दुनियाभर में महिलाओं को प्रभावित करने वाली एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य समस्या है। भारत में 57 प्रतिशत महिलाएं आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया से पीड़ित है। तो किशोर लड़कियों में एनीमिया की घटना बहुत ज्यादा है। चिकित्सकीय दृष्टि से औसत ऊंचाई वाले पुरुषों के शरीर में लगभग 4 ग्राम आयरन होता है, महिलाओं में लगभग 3.5 ग्राम और बच्चों मे आमतौर पर 3 ग्राम या उससे कम आयरन होता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में आयरन की कमी ज्यादा होती है। इसका मुख्य कारण मासिक धर्म है। इससे महिलाओं में हर महीने खून और आयरन की कमी होती है। वहीं आयरन की कमी उम्रदराज महिलाओं में एक व्यापक समस्या है जो भारत में लगभग 90 प्रतिशत को प्रभावित करती है। इसके लक्षण की बात करे तो आयरन की कमी से होने वाले एनीमिया की वजह से लाल रक्त कोशिकाएं सामान्य से छोटी और रंग में हल्की होती है। वहीं नाखून भंगुर या चम्मच जैसे, मुंह के कोनों पर दरारें, त्वचा पीली होना, जीभ में दर्द या तकलीफ और हाथ दूसरों को ठंडे लगना आदि शामिल है। इसका उपचार उचित आयरन सप्लीमेंट्स और आयरन युक्त आहार के सेवन से किया जा सकता है।आनुवांशिक विकार है सिकल सेल एनीमिया
डॉ. एके द्विवेदी ने सिकल सेल एनीमिया को लेकर बताया कि यह एक आनुवांशिक विकार है। इसमें हीमोग्लोबिन की संरचना में गड़बड़ी होती है। रक्त कोकिशाएं सिकल, अर्ध चंद्राकार अथवा हंसिया के आकार में परिवर्तित हो जाती है। यह रोग मुख्यतः वंशानुगत होता है और गंभीर दर्द, संक्रमण और अंग क्षति का कारण बन सकता है। जल्दी पता लगाने और नए उपचारों की बदौलत, सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित लगभग आधे लोग 50 की उम्र तक जीवित रहते हैं। इसके लक्षण की बात करें तो इससे पीड़ित को थकान, बार-बार संक्रमण होना, दर्द, हाथ और पैरों में दर्दनाक सूजन, पीलिया से पीली आंखें और त्वचा आदि शामिल है। सिकल सेल एनीमिया गंभीर और कभी-कभी जानलेवा जटिलताओं का कारण भी बन सकता है। इससे पीड़ित लोगों को अक्सर आपातकालीन चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है या उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया जाता है क्योंकि उन्हें एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम (एसीएस) या वासो ओक्लूसिव क्राइसिस (वीओसी) जैसी जटिलताओं का अनुभव होता है। डॉ. द्विवेदी ने कहा कि इसका प्रबंधन विशेष दवाइयों और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के माध्यम से किया जा सकता है। हालांकि होम्योपैथिक चिकित्सा से मेरे द्वारा एनीमिया पीड़ित मरीजों का उपचार किया जा रहा है जिसके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं।अप्लास्टिक एनीमिया की स्थिति में शरीर में नई रक्त कोशिकाओं का नहीं होता निर्माण
डॉ. एके द्विवेदी ने बताया कि अप्लास्टिक एनीमिया दुर्लभ और गंभीर स्थिति है जो किसी भी उम्र में हो सकती है। इस स्थिति में आपका बोन मैरो नए ब्लड सेल्स का निर्माण नहीं कर पाता है। इसे को मायेलोडिस्प्लास्टिक सिंड्रोम भी कहा जाता है। इसके कारण रोगी में अधिक थकान होती है, संक्रमण के साथ ही रक्तस्त्राव का खतरा बढ़ जाता है। यह अचानक हो सकता है या फिर धीरे-धीरे विकसित होता है। अप्लास्टिक एनीमिया कम या बहुत गंभीर हो सकता है। दवाएं, ब्लड ट्रांस्फ्यूजन या स्टेम सेल ट्रांस्प्लांट जिसे बोन मैरो ट्रांस्प्लांट कहा जाता है, के जरिए अप्लास्टिक एनीमिया का उपचार किया जाता है। डॉक्टर इस स्थिति को अप्लास्टिक एनीमिया बोन मैरो फेलियर भी कहते हैं। वहीं यह टीनेज और 20 की उम्र में अधिक होता है। पुरुषों और महिलाओं में इसका खतरा समान रहता है और अधिकांश विकासशील देशों में यह आम है। अप्लास्टिक एनीमिया के दो प्रकार है और वो है इन्हेरिटेड अप्लास्टिक एनीमिया। यह खराब जीन के कारण होता है और बच्चों और यंग एडल्ट्स में आम है। दूसरा है एक्वायर्ड अप्लास्टिक एनीमिया। यह व्यस्कों में आम है। इसके सामान्य लक्षण में रेड ब्लड सेल्स कम होने पर खतान, अनियमित हार्टबीट, सांस उखड़ना, पीली त्वचा, सिरदर्द, चक्कर आना, छाती में दर्द शामिल है तो व्हाइट ब्लड सेल्स कम होने पर संक्रमण, बुखार वहीं प्लेटलेट काउंट कम होने पर आसानी से चोट लगना और खून बहना, नाक से खून आना शामिल है।होम्योपैथी और अप्लास्टिक एनीमिया
डॉ. एके द्विवेदी ने कहा कि होम्योपैथी की 50 मिलिसिमल पोटेंसी की दवा से अप्लास्टिक एनीमिया जैसे गंभीर रक्त विकार का सरल इलाज होम्योपैथिक चिकित्सा से मेरे द्वारा किया जा रहा है। हमारे यहां पूरे देश सहित अन्य देशों के कई मरीज अपना सफलतापूर्व इलाज करवा चुके हैं। प्रायः जहां होम्योपैथिक इलाज के बारे में जन सामान्य में भ्रांति है कि इसके परिणाम विलंब से आते हैं। लेकिन इस बीमारी में अत्यंत कम समय में तेज, सकारात्मक एवं स्थाई परिणाम देखने को मिले हैं। डॉ. द्विवेदी ने यह भी जोर दिया कि समय पर निदान और सही उपचार से इन तीनों प्रकार के एनीमिया को नियंत्रित किया जा सकता है। उन्होंने सभी से संतुलित आहार लेने, नियमित स्वास्थ्य जांच कराने और किसी भी असामान्य लक्षण दिखाई देने पर तुरंत डॉक्टर से परामर्श करने की अपील की।गौरतलब है कि भारत सरकार ने वर्ष 2047 तक भारत को एनीमिया मुक्त करने का निर्णय लिया है। इसके लिए कुछ हद तक डॉ. द्विवेदी के प्रयास ही रहे हैं जिससे भारत सरकार ने इसके लिए बजट में प्रावधान किया है। क्योंकि डॉ. एके द्विवेदी ने एनीमिया बीमारी को लेकर वित्य मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण से इंदौर प्रवास पर मुलाकात की थी और उन्हें इस बीमारी के घातक परिणामों के बारे में बताया था। वहीं डॉ. एके द्विवेदी दो बार राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी से भी मिले हैं और उन्हें एनीमिया बीमारी की जटिलताओं के बारे में बताया है। इस दौरान डॉ. द्विवेदी ने राष्ट्रपति को उनके द्वारा 25 वर्षों से होम्योपैथिक चिकित्सा के माध्यम से एनीमिया का उपचार कर लोगों दिए जा रहे बेतरह इलाज की विसृत्त रिपोर्ट भी सौंपी है जिसे देखने के बाद राष्ट्रपति ने डॉ. द्विवेदी की प्रशंसा कर उनके कार्य की सराहना भी की।