आज भास्कर, भोपाल। मध्यप्रदेश सरकार नगर निगम अध्यक्षों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के नियम में बदलाव करने जा रही है। इस बदलाव के तहत, अब तीन चौथाई पार्षदों की सहमति अविश्वास प्रस्ताव पास करने के लिए जरूरी होगी। इसके साथ ही अध्यक्ष के खिलाफ प्रस्ताव उनकी नियुक्ति के तीन साल बाद ही लाया जा सकेगा।
इससे पहले, अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए केवल एक तिहाई पार्षदों की जरूरत थी, और प्रस्ताव अध्यक्ष के दो साल के कार्यकाल के बाद लाया जा सकता था। सरकार का मानना है कि इस बदलाव से नगर निगम अध्यक्षों की स्थिरता और कार्यक्षमता में सुधार होगा।
सतना नगर निगम अध्यक्ष के खिलाफ कां'ग्रेस द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव असफल हो गया था, जब 18 पार्षदों में से 5 पार्षद उपस्थित नहीं हुए। इसके बाद, दो कांग्रेस महिला पार्षदों ने भाजपा का समर्थन कर दिया, जिससे कांग्रेस की योजना विफल हो गई।
नए नियमों के लागू होने से 10 नगर निगमों में संभावित अविश्वास प्रस्तावों को रोका जा सकेगा, जिनमें रीवा, जबलपुर, ग्वालियर, कटनी, मुरैना, बुरहानपुर, और छिंदवाड़ा शामिल हैं। इन नगर निगमों में अब विपक्ष को अध्यक्ष को हटाने के लिए अधिक चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
छिंदवाड़ा और बुरहानपुर में कांग्रेस अध्यक्षों की कुर्सी नए नियमों के कारण सुरक्षित हो गई है। छिंदवाड़ा में कांग्रेस पार्षदों के पाला बदलने से पार्टी अल्पमत में आ गई थी, और बुरहानपुर में अनीता यादव महज एक वोट से अध्यक्ष बनी थीं, जिनकी कुर्सी अब सुरक्षित मानी जा रही है।