हमारे दर्शन में वैज्ञानिक परीक्षण, प्रयोग, विश्लेषण की है नितान्त संभावना- श्री अशोक कड़ेल - Aajbhaskar

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Friday, August 9, 2024

हमारे दर्शन में वैज्ञानिक परीक्षण, प्रयोग, विश्लेषण की है नितान्त संभावना- श्री अशोक कड़ेल


आज भास्कर  जबलपुर :


रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर
  • हमारे दर्शन में वैज्ञानिक परीक्षण, प्रयोग, विश्लेषण की है नितान्त संभावना- श्री अशोक कड़ेल
  • भारतीय ज्ञान परंपरा एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में
  • भौतिक विज्ञान पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ
जबलपुर 07 अगस्त। आज विश्व को विज्ञान से यह अपेक्षा करनी पड़ रही है कि वह वैश्विक कल्याण को प्राथमिकता दे। वैदिक विज्ञान की स्थापनाओं का मूल भाव ही यही बताया गया है। हमारे प्राच्य विज्ञान के सूत्रों का पुनः प्रकाशन होना चाहिए। हमारे दर्शन में वैज्ञानिक परीक्षण, प्रयोग, विश्लेषण की नितान्त संभावना है। वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वे भवन्तु सुखिनः की कामना से विश्व कल्याण हेतु वैश्विक विज्ञान के इस उद्देश्य को हम भारतीय प्राचीन वैज्ञानिक ऋषियों के जीवन, दर्शन एवं उसके विज्ञान पक्ष को उद्घाटित कर जानकारी सुलभ कराने का प्रयास किया जाना चाहिए। यह बात मप्र हिन्दी गं्रथ अकादमी के संचालक मान. श्री अषोक कड़ेल ने बुधवार को रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय के पं. कुंजीलाल दुबे प्रेक्षागृह में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में मुुख्य अतिथि के रूप में कही।

मध्यप्रदेष शासन उच्च शिक्षा विभाग के आदेशानुसार विश्वविद्यालय में ‘भारतीय ज्ञान परंपरा एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में भौतिक विज्ञान‘ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला एवं शोध संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए माननीय कुलगुरू प्रो. राजेष कुमार वर्मा ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 शिक्षा व अनुसंधान के क्षेत्र में बुनियादी सुधार एवं शिक्षा के समावेशी स्वरूप पर बल देती है। यह नीति शैक्षणिक संस्थानों के भीतर अनुसंधान, नवाचार और रचनात्मकता को बढ़ावा देने जैसे उद्देश्यों पर केंद्रित है। इसमें अंतर्निहित मूल भाव देश के युवाओं को अपने देश की प्रगति में ठोस योगदान देने की क्षमता से लैस करना है। माननीय कुलगुरू प्रो. राजेश कुमार वर्मा के संरक्षण व कुलसचिव डॉ. दीपेश मिश्रा एवं विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. पी.के. खरे के मागदर्षन में 07 व 08 अगस्त 2024 कोे ‘भारतीय ज्ञान परंपरा एवं राष्ट्रीय षिक्षा नीति 2020 के संदर्भ में भौतिक विज्ञान‘ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला एवं शोध संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र का संचालन एवं आभार प्रदर्षन कार्यशाला मुख्य समन्वयक एवं नोडल अधिकारी प्रो. राकेश बाजपेयी ने किया।

विभिन्न तकनीकी सत्रों में विशेषज्ञों ने दी उत्कृष्ट जानकारी-
राष्ट्रीय कार्यशाला एवं शोध संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के पश्चात आयोजित प्रथम सत्र में विषय विशेषज्ञ के रूप में प्रो. आलोक चक्रवाल, कुलपति गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय, बिलासपुर ने भारतीय ज्ञान परम्परा तथा भौतिक विज्ञान पर आधारित व्याख्यान में कहा कि प्राचीन भारतीय ज्ञान-परंपरा एवं अनुसंधान के केंद्र नालंदा, तक्षशिला, विक्रमशिला, शारदा जैसे विश्वविद्यालय रहे हैं। ये भारतीय बुद्धिमत्ता और विद्वता की उद्गमस्थली हैं। नालंदा विश्वविद्यालय विश्व की सबसे प्राचीन विद्यापीठों में से एक है। इस युग को ‘भारत का स्वर्ण युग’ कहा जाता है। इस समय इस विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में वेद, व्याकरण, चिकित्सा, तर्कशास्त्र और गणित सहित विविध प्रकार के विषय शामिल थे। इसका परिसर आज भी सदियों पुरानी ज्ञान की विरासत का गवाह है। हमें अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए जिन्होंने इस विश्वविद्यालय के माध्यम से ज्ञान की सशक्त नींव रखी। सत्र अध्यक्षः- प्रो. सुरेन्द्र सिंह, रा.दु.वि.वि., जबलपुर रहे। वहीं प्रतिवेदक डॉ. कपिला शर्मा, डॉ. गौरव सिंह रहे।




द्वितीय सत्र में विषय विशेषज्ञ के रूप में प्रो. संजय तिवारी, कुलगुरु, म.प्र. भोज मुक्त वि.वि., भोपाल ने भारतीय ज्ञान परम्पराः भौतिक शास्त्र पर पीपीटी के माध्यम से दिये गए अपने व्याख्यान में भारत के कहा प्राचीन वैज्ञानिकों को ही ऋषि कहा जाता है। वे मंत्र अर्थात् वैज्ञानिक सूत्रों के दृष्टा (अनुभव करने वाले) हैं, सृष्टा अर्थात रचियता नहीं। अर्थात उन्होंने इस सृष्टि और प्रकृति में जो कुछ भी घटित होते देखा और सूक्ष्मता से अध्ययन किया, उसे ही व्याख्यायित किया है। इसीलिए आज का रिसर्च शब्द भी कहीं न कहीं ऋषि से प्रेरित प्रतीत दिखता है। आत्मानुसंधान ही तो वास्तव में विज्ञान का लक्ष्य है। इसमें सत्र अध्यक्ष के रूप में प्रो. एस. एस. संधू, विभाग अध्यक्ष, जीवविज्ञान विभाग एवं निर्देशक, डीआईसी व प्रतिवेदक डॉ. जया सिंह, डॉ. जीतेन्द्र सोलंकी की मौजूदगी रही। इसके बाद के सत्र में डॉ. सोमनाथ बी. डनायक, आईआईटी, कानपुर ने विवेकपूर्ण विज्ञानः प्रयोग के माध्यम से भारतीय भाषाओं की वैज्ञानिकता का प्रदर्षन पर अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया इसमंे सत्र अध्यक्ष के रूप में प्रो. कैलाश विश्वकर्मा, हमीरपुर (उ.प्र.) व प्रतिवेदक डॉ. दीप्ति जैन, डॉ. कविता गौर की मौजूदगी रही। अंत में आभार प्रदर्शनः प्रो. राजेन्द्र कुररिया, शास. आदर्श विज्ञान महाविद्यालय, जबलपुर ने किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय कार्यशाला समन्वयक के रूप में प्रो. रवि कटारे, विभागाध्यक्ष, भौतिक विज्ञान, शास. स्वशासी विज्ञान महाविद्यालय, जबलपुर, प्रो. गिरीश वर्मा, आचार्य, एम.एच. शास. स्वशासी गृह विज्ञान एवं विज्ञान महिला महाविद्यालय, जबलपुर, प्रो. राजेन्द्र कुमार कुररिया, आचार्य, शासकीय स्वशासी विज्ञान महाविद्यालय, जबलपुर, प्रो. कमल कुमार कुशवाहा, विभागाध्यक्ष, एप्लाइड फिजिक्स विभाग, शास. इंजीनियरिंग कॉलेज, जबलपुर, डॉ. आर.एस. चंडोक, प्राचार्य, श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज, जबलपुर, प्रो. कलोल दास, उप-प्राचार्य, सेंट अलॉयसियस कॉलेज (स्वशासी), जबलपुर, डॉ. अरुणेन्द्र कुमार पटेल, सहायक प्राध्यापक, अमर वीरांगना रानी दुर्गावती शास. महावि., तेंदूखेड़ा, जिला दमोह एवं डॉ. रिकेश भट्ट, संकाय सदस्य, भौतिक विज्ञान एवं इलेक्ट्रॉनिक्स, रादुविवि, जबलपुर सहित सभी प्रतिभागियों की मौजूदगी रही।




रादुविवि जनसम्पर्क प्रकोष्ठ/क्रमांक/1285/07.08.2024