अयोध्या में कारसेवा के लिए जबलपुर के 41 कारसेवकों ने मुंडवा लिए थे सिर - Aajbhaskar

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Monday, January 15, 2024

अयोध्या में कारसेवा के लिए जबलपुर के 41 कारसेवकों ने मुंडवा लिए थे सिर


आज भास्कर,जबलपुर : अयोध्या में 22 जनवरी को सहस्त्राब्दी का सबसे बड़ा सनातन-महोत्सव आयोजित होने जा रहा है। नव्य-भव्य श्रीराम मंदिर में रामलला विराजने वाले हैं। अतएव, प्रसंगवश 1992 की कारसेवा का उल्लेख स्वाभाविक हो गया है। अयोध्या में कारसेवा के लिए जबलपुर के 41 कारसेवकों ने सिर मुंडवा लिए थे।

राख-काेयला भरकर जीआरपी-आरपीएफ को दिया था चकमा

मटकी में अस्थियों के स्थान पर राख-काेयला भरकर जीआरपी-आरपीएफ को चकमा दे दिया था। अयोध्या पहुंचकर हाथ में भगवा ध्वज लिए जय श्रीराम का जयघोष करते कारसेवकों ने बंदूकों के सामने छाती अड़ा दी थी। रामकृपा से ही अब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। अतएव, आंखें खुशी के अश्रुओं से छलछला रही हैं। जीवन का सबसे बड़ा स्वप्न साकार हो रहा हैै। इस संघर्ष-यात्रा से जुड़े अतीत के अनुभव अब भी स्मृतियों में सजीव हैं।

जबलपुर जिला बजरंग दल के प्रथम संयोजक शरद अग्रवाल ने किया था अपनी टोली का नेतृत्व

जबलपुर जिला बजरंग दल के प्रथम संयोजक शरद अग्रवाल ने बताया कि जबलपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय केशव कुटी के आदेश पर तत्कालीन प्रांत प्रचारक धर्मनारायण शर्मा के मार्गदर्शन व मेरे नेतृत्व में 41 कारसेवकों का दल अयोध्या के लिए प्रस्थान कर गय। 25 अक्टूबर, 1990 की शाम इटारसी-इलाहाबाद पैसेंजर में उनके अलावा जबलपुर से रमेश रैकवार, विजय सेन, बसंत बैरागी, सुरेंद्र अग्रवाल, मन्नू केशरवानी, प्रेम लढ़िया, राजू ठाकुर, महेंद्र जैन, अशोक उपाध्याय, धन्नू दादा, इंद्रकुमार दुबे और भगवत दुबे सहित अन्य ने जयश्रीराम के उद्घोष के साथ अयोध्या के लिए प्रस्थान किया था। मानिकपुर तक मध्य प्रदेश की सीमा थी, अतः सब निश्चिंत थे।

जीआरपी-आरपीएफ ने पहले खाली कराई ट्रेन, फिर जाने दिया

शरद अग्रवाल ने बताया कि मानिकपुर स्टेशन पर जीआरपी-आरपीएफ की टुकड़ी ट्रेन में घुस आई और सभी यात्रियों को बाहर निकाल दिया। तभी कारसेवकों का दिमाग चला और उन्होंने अस्थि विसर्जन के लिए प्रयागराज जाने की जानकारी दी। कुछ कारसेवकों ने पहले ही सिर मुंडवा लिए थे, इसलिए जीआरपी-आरपीएफ उनकी बातों में आ गए। लिहाजा, हमें ट्रेन में वापस सवार होकर आगे जाने दिया गया। हालांकि मेरा मानना है कि जिस तरह बिना अस्थि-कलश देखे जिस तरह जीआरपी-आरपीएफ द्वारा हमें हरी झंडी दे दी गई, वह रामलहर का प्रभाव ही था। यदि जांच की जाती तो मटकियों में अस्थि के स्थान पर सिर्फ राख और कोयला मिलता।

गिरफ्तारी से बचने शंकरगढ़ से तीन किलोमीटर पहले ट्रेन से उतरे, पैदल पहुंचे अयोध्या

मानिकपुर से ट्रेन आगे बढ़ी, तो प्रयागराज से पहले वाले स्टेशन शंकरगढ़ पर गिरफ्तारी की आशंका उठ खड़ी हुई। इसे समय रहते भांपते हुए हर हाल में अयोध्या पहुंचने का संकल्प ले चुके कारसेवकों ने ट्रेन से उतरने में देर न लगाई। सभी शंकरगढ़ से तीन किलोमीटर पहले उतर गए और खेत-मेढ़ होते हुए पैदल ही आगे बढ़ने लगे। इस तरह मप्र के मानिकपुर से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक का सफर कारसेवकों ने पैदल ही तय करने के शौर्य का परिचय दिया था। उत्साह इतनी प्रबल था कि हमने अपने कदमों से नदी-पहाड़ और जंगल नाप दिए। ऐसा लग रहा था मानों हम सब प्रभु राम की वानरसेना हैं।

तमसा नदी पार करते ही दूर नहीं थी अयोध्या

जबलपुर के 41 कारसेवक फाफामऊ से धुपियामऊ तक एक पैसेंजर ट्रेन से पहुंचे, लेकिन उसी स्टेशन पर ट्रेन रोक दी गई। लिहाजा, फिर से पदयात्रा शुरू हुई। खेत-मेढ़ पार कर सभी प्रतापगढ़ पहुंचे। सई नदी पार की और उजला गांव में पड़ाव डाला। वहां से तिवारीपुर फिर करारी, भीकमपुरा, बुधिया गांव आए। बाबूगंज से भामापुर पहुंचे। बड़ा नाला पार किया और धनीपुर में रुके। रात में बड़ा तिवारीपुर आया। गोमती को रात में पार किया। जाससापारा, उधारपुर, मिश्रराडली होकर बहरेतापुर की दोहरी नहर पैदल पार की। फैलपुर के बाद हैदरगंज आया। बीच में तमसा नदी आई और फिर अयोध्या दूर नहीं थी। इसी के साथ कारसेवकों की खुशी का ठिकाना नहीं था। भक्तमाल में सभी ने भोजन किया। सरयू में स्नान किया। इसके बाद निर्णायक संघर्ष हुआ। लाठियां खाईं। इसके बावजूद सभी के दिल में एक ही संकल्प था-रामकाज कीन्हें बिना मोहि कहां विश्राम।

प्रभुकृपा से तीनों बार सफल हुई कारसेवा

शरद अग्रवाल बताते हैं कि प्रभुकृपा से जबलपुर के कारसेवकों के प्रयास 1990, 1991 व 1992 यानि तीनों बार सफल रहे। प्रत्येक कारसेवक पर प्रभु राम और बजरंगबली की साक्षात कृपा अनुभूत की गई। पहले दो प्रयासों के दौरान उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की अयोध्या में परिंदे के भी पर न मार पाने जैसी दिल को चुभने वाली चुनौती से कारसेवक बेहद आक्रोशित थे। मुलायम सरकार ने कारसेवकों पर गोली चलाने, लाठी चार्ज करने और अश्रु गैस के गोले छोड़ने से लेकर गिरफ्तारी और अत्याचार में कोई कसर शेष नहीं रखी थी। संत समाज, लालकृष्ण आडवानी, विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंहल व साध्वी उमा भारती के आव्हान पर कारसेवकों सहित समूचा सनातन हिंदू समाज उत्साह से सराबोर था। इसीलिए कारसेवक पहली बार विवादित ढ़ांचे के शिखर पर भगवा ध्वज लहराने में सफल हुए। दूसरी बार कारसेवक सरयू तट पर जनमेदिनी का इतिहास बनाते हुए एकत्र हुए। अंतत: तीसरे प्रयास में मूल लक्ष्य प्राप्त करने ही दम लिया।