जबलपुर से पत्रकार दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट
- मोदी की स्वच्छ और ईमानदार प्रशासन की नीति को किया किनारे
आज भास्कर\जबलपुर। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के ससुराल गोंदिया की रहने वाली अशासकीय सहायक प्राध्यापक धारणा रामकिशोर टैमरे बिसेन को पलक पांवड़े बिछाकर कृषि कॉलेज बालाघाट में शासकीय सहायक प्राध्यापक के पद पर प्रतिनियुक्ति करने के खेल में शतरंज बिछाने का काम गौरीशंकर बिसेन की अगुवाई में पीके बिसेन और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के ससुर प्रमोद कुमार मिश्रा ने किया, यह आप गतांक 32 में पढ़ चुके हैं।
पिछले अंक में यह बताया था कि शासकीय राजा भोज कृषि कॉलेज तहसील वारासिवनी जिला बालाघाट में 13 मार्च 2015 को सहायक प्राध्यापक उद्यान के पद पर प्रथम नियुक्ति पाने वाले धारणा के पति शरद बिसेन को पत्नी सुख देने के लिए केंद्रीय कृषिमंत्री शिवराज और उनके सहयोगियों ने पूरी जान लगा दी है।
इसी षड्यंत्र और कूटरचना को आज बालाघाट कृषि कॉलेज से शुरू कर रहे हैं।
सुधी पाठकों को पिछले अंक में बताया है कि धरना के पति शरद ने डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया के प्राचार्य डॉक्टर अंजन एस नायडू की मदद से षड्यंत्र की नींव का पहला पहला पत्थर 19. 10.2016 को रखा है।
ईमानदारी की वजह से गौरीशंकर बिसेन गैंग की आंख की किरकिरी बने डीन डी एस गौतम को हटाकर पीएचडी स्कॉलर निशा मेहरा सप्रे के साथ कथित छेड़छाड़ की धारा 354 में फंसे बिहार के पटना निवासी डॉक्टर विजय बहादुर उपाध्याय को पहले गंजबासौदा भेजा और बाद में डी एस गौतम को हटाकर कृषि कॉलेज बालाघाट में डॉक्टर धारणा की प्रतिनियुक्ति के विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति के लिए भेजा गया।
निशा सप्रे से छेड़छाड़ के मामले में ग्रीन और क्लीन चिट देने वाली कृषि विश्वविद्यालय की जांच कमेटी मैं विश्वविद्यालय के नारु - कारू के तौर पर मशहूर प्रदीप कुमार बिसेन और पीके मिश्रा शामिल थे।
उपाध्याय पहले भी बदनाम थे, इसीलिए दोनों पक्षों के लिए गिव एंड टेक का अच्छा अवसर था।
धारणा से महाराष्ट्र शासन में 10 सितंबर 2012 से सहायक प्राध्यापक के पद पर पदस्थ होने का आवेदन 19.10.2016, को कुलसचिव कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर एके इंगले के नाम से दिलवाया जा चुका था।
कुलपति विजयसिंह तोमर ने भी मान लिया कि धारणा महाराष्ट्र शासन में सहायक प्राध्यापक है,। लेकिन जब अशासकीय सहायक प्राध्यापक की मध्य प्रदेश शासन में प्रतिनियुक्ति के अंतर प्रांतीय मामले की मॉनिटरिंग मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं कर रहे हो तो किसकी हिम्मत है कि वह धारणा से यह पूछे कि महाराष्ट्र शासन का नियुक्ति पत्र प्रस्तुत करें। उसके बाद ही प्रतिनियुक्ति की कार्रवाई आगे बढ़ेगी।
यहीं से खेल शुरू होता है, धारणा ने सादे कागज पर प्रतिनियुक्ति के आवेदन 19.10. 2016 पर यह टंकित किया कि महाराष्ट्र शासन लिखने से कोई आपत्ति विपत्ति नहीं आएगी। कोई पूछताछ नहीं होगी। किसकी हिम्मत कि हाई प्रोफाइल षड्यंत्र, कदाचरण और भ्रष्टाचार, सगे रक्तसंबंधियों को शासकीय सेवा का लाभ देने के अपराध के बारे में पूछताछ कर ले। लेकिन आरटीआई में , आवेदन 19.10.2016 के अनुसार महाराष्ट्र शासन का नियुक्तिपत्र की प्रतिलिपि मांगी गई, कृषि विश्वविद्यालय के स्थापना एक ने शासकीय अभिलेख नहीं दिया। प्रथम अपील अधिकारी ने महाराष्ट्र शासन में सहायक प्राध्यापक के पद पर अगस्त होने का अभिलेख देने का आदेश दिया, पुनः स्मरणपत्र भी दिया है कि धारणा के आवेदन 19. 10. 2016 के अनुसार महाराष्ट्र शासन में 10. 09.2012 से पदस्थ होने के लेख अनुसार नियुक्तिपत्र की प्रतिलिपि प्रदान की जाए, लेकिन स्थापना एक के अनुभाग अधिकारी श्री जान को अभी तक महाराष्ट्र शासन में नियुक्ति का धरना का आदेश नहीं मिला है।
आशय यह कि अभी तक की तहकीकात से स्पष्ट है की धारणा कभी महाराष्ट्र शासन की सेवा में नहीं रही है । धारणा ,गोंदिया एजुकेशन सोसाइटी प्राइवेट संस्थान के अशासकीय कॉलेज डीबी साइंस कॉलेज में 10 सितंबर 2012 से नियुक्त हुई। और 14 सितंबर 2012 से जॉइन अर्थात सेवा में उपस्थित हुई है।
आरटीआई से प्राप्त धारणा की प्रतिनियुक्ति फाइल 09.05.2024 अभी तक यही बता रही है। गोंदिया एजुकेशन सोसाइटी का नियुक्तिपत्र पहली बार सामने आने से स्पष्ट हो गया कि यह अंतरप्रांतीय धोखाधड़ी, जालसाजी, झूठ, फरेब, मक्कारी सरकारी अभिलेख में फेरफार करने के लिए मिथ्या अभिलेख बनाने का गोरखधंधा, अपराध है।
पूरी डोर भोपाल से चल रही थी इसीलिए कोई शख्स हिम्मत नहीं कर सका, जिस किसी ने इस भ्रष्टाचार को रोकने की कोशिश की उसे उठाकर फेंक दिया गया।
आगे विस्तार में नहीं जाते हुए सुधी पाठकों को कृषि कॉलेज बालाघाट में धारण की पदग्रहण तिथि 25.8.2017 की कंप्लायंस रिपोर्ट अर्थात प्रतिनियुक्ति आदेश की पालना रिपोर्ट अधिष्ठाता विजय बहादुर उपाध्याय ने 298 2017 को दिन फैकल्टी पीके मिश्रा, डीएसडब्ल्यू अमित शर्मा, और कुल सचिव को भेजी।
विजय बहादुर की चालाकी और कूटरचना देखिए की अधिष्ठाता विजय बहादुर उपाध्याय ने पत्र 29.8.2017 के कॉलम में अंदर प्रतिनियुक्ति आदेश 16.8.17 का संदर्भ डाला है। लेकिन पत्र के ऊपर पहली लाइन में दो सीधी नियुक्तियां वाले नाम के बीच में धारणा का नाम जोड़ते हुए, धारणा को भी न्यूली अपॉइंटेड फैकेल्टी बता दिया, धोखाधड़ी वाली इस पत्र की प्रतिलिपि को पीके मिश्रा और अमित शर्मा ने स्वीकार कर लिया,यह पिछले अंक में आप पढ़ चुके हैं। अर्थात सामूहिक षड्यंत्र ,पद का दुरुपयोग ,कदाचरण और अन्यथा की स्थिति का लाभ देना पत्र 29.8. 2017 से प्रमाणित है।
जब मामला भोपाल से नियंत्रित हो तो किसी की हिम्मत भी नहीं है कि उसमें सही गलत को लेकर टीका टिप्पणी करें। और इसी के साथ जब विजय बहादुर उपाध्याय ने शरद बिसेन से जबलपुर के करमचंद चौक स्थित गोयल प्रिंटिंग प्रेस से खरीदी गई सर्विस बुक में प्रविष्टियां डालना शुरू किया तो उसमें धारणा को गोंदिया के अशासकीय डीबी साइंस कॉलेज की नियुक्ति तिथि 14 सितंबर 2012 कोशासकीय नियुक्ति तिथि बताते हुए और मानते हुए वरिष्ठता की गणना कर दी। यदि यह पत्रकार इस धोखाधड़ी जालसाजी को नहीं खोलता तो इस समय डॉक्टर पीके मिश्रा कुलगुरु जो वरिष्ठता सूची बना रहे हैं उसके अनुसार धरना रामकिशोर टैमरे बिसेन पत्नी शरद बिसेन का कृषि कॉलेज बालाघाट का अधिष्ठाता बनने का रास्ता खोल दिया था, उनकी प्लानिंग भी यही थी।
षड्यंत्र के शुरुआती वर्ष 2016 से कृषि कॉलेज बालाघाट बिसेन गैंग के भ्रष्टाचार का अड्डा और चारागाह बन चुका था। नरेश बिसेन पूर्व अधिष्ठाता ने जब मधुमक्खी पालन के प्रशिक्षु किसानों को रामटेक होते हुए नागपुर की तरफ भेजो तो इस बेवकूफ दिन ने रामटेक में ₹6 प्रति कप की दर से चाय खरीदी है। इस कम अक्ल अधिष्ठाता को इतना समझ में नहीं आया की पूरी दुनिया में कहीं पर भी ₹6 प्रति कप चाय बिकती ही नहीं है।
और स्थानीय निधि संपरीक्षा के आवासीय संपरिक्षक आर के कोस्टा ने इसे पास भी कर दिया ,अर्थात इस पर ऑडिट आपत्ति नहीं लगी, कोई रोक-टोक नहीं लगी ऐसी प्रत्येक एंट्री पर सही अर्थात राइट का टिक लगा दिया, जहां सीस पेंसिल से गोला लगाना था वहां गोला लगाया नहीं है, इधर कथित लिफाफा हाथ में पकड़ा गया और उधर ऑडिट का क्लीयरेंस मिला। सुधी पाठक सोचें कि जब 50 किसानों की चाय के कप में ₹1 प्रति कप के हिसाब से भ्रष्टाचार की रकम एकत्र की जाएगी तो कृषि कॉलेज बालाघाट के भ्रष्टाचार के निकृष्टतम स्तर का अंदाजा लगा लें कि क्या चल रहा था। भ्रष्टाचार करने में अकल तक नहीं लगाई, अरे भाई ₹5 की जगह सीधे ₹10 प्रति कप चाय का जोड़ लेते तो कोई नहीं पकड़ पता कि इसमें भ्रष्टाचार हुआ है , क्योंकि ₹ 10 प्रति कप चाय खरीद के पी जा सकती है। स्पेशल चाय इसी रेट पर आती है।
अरे भाई किसानों को ईमानदारी से कॉफी का रेट लगा देते तो ₹15 प्रति कब कॉफी का लग जाता। ऑडिट वेरिफिकेशन वाले फिजिकल वेरिफिकेशन करने कभी नहीं जाते वह केवल कागज की जांच करते हैं ,कम से कम कागज तो सही बनाना सीख जाओ ...भाई नरेश बिसेन,... उत्तम बिसेन। जैसे कथित तौर पर इस काम के लिए वर्तमान कुलगुरु पीके मिश्रा मशहूर है, पीके मिश्रा की गलतियां पकड़ना आसान नहीं है लेकिन धीरे-धीरे उनकी हर चीज पकड़ में आ रही है जिन पर खुलासा बाद में होगा।
भ्रष्टाचार की चर्चा करते-करते हम काशी कॉलेज बालाघाट में पदस्थ दो महत्वपूर्ण deen गणेश कुमार कोतू, इनके साथी नरेश बिसेन, इनके कम खास आहरण वितरण अधिकारी ऋषिकेश ठाकुर और सरोदे सीताराम को भूल गए हैं।
संघ की कृपा से विश्वविद्यालय के भावी कुलगुरु बनने का सपना देख रहे कथित भ्रष्टाचार से घिरे और लिपटे गणेश कुमार कोटू ने धारणा को छतवान वेतनमान देने संबंधी समस्त पत्राचार में सीधे-सीधे योगदान दिया है। मुझे पता नहीं गणेश कुमार कोटो को कितने नंबर का चश्मा लगता है ,लेकिन कहीं गड़बड़ हुई है।
यह दोनों आहरण वितरण अधिकारी कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर में सुबह शाम मॉर्निंग टी और इवनिंग टी की तरह सहायक कुलसचिव प्रशांत श्रीवास्तव और पीके बिसेन की कृपा से उपवित्त नियंत्रक का पद हथियाने में सफल केवीके के वैज्ञानिक अजय खरे से मोबाइल पर बातचीत करते और मार्गदर्शन लेते थे। हाल फिलहाल यह मार्गदर्शन लेने देने का काम डर और दहशत के कारण बंद हो गया है। यदि इनके कॉल डिटेल की जानकारी हासिल की जाए तो लगाया गया आरोप सही हो सकता है।
अब यहां चर्चा करेंगे डीडीओ ऋषिकेश ठाकुर, सरोदे सीताराम की,
इन लोगों ने राज्य शासन के वित्तीय नियमों के अनुसार धरना की प्रति नियुक्ति दिनांक 16. 8. 17 के वक्त अशासकीय डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया में बनाई गई डॉक्टर धरना की सेवा पुस्तिका अर्थात सर्विस बुक क्यों नहीं मांगी।
मुद्दा यह है कि क्या किसी भी शासकीय सेवक की दो सेवा पुस्तिका हो सकती है या नहीं हो सकती हैं। महत्वपूर्ण विषय यह है कि वर्ष 2017 में धरना की प्रतिनियुक्ति के पश्चात धारणा के पति शरद बिसेन को जबलपुर के करमचंद चौक स्थित सबसे पुराने गोयल प्रिंटिंग प्रेस से अगस्त 2017 में सर्विस बुक खरीदने की जरूरत क्यों आन पड़ी। इस पर स्थानीय निधि संपरीक्षा सिविक सेंटर जबलपुर के संयुक्त संचालक की ओर से सालाना ऑडिट के लिए भेजी जा रही टीम ने आपत्ति क्यों दर्ज नहीं की है। अपने प्रतिवेदन में ऑडिट टीम ने डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया की सर्विस बुक उपलब्ध नहीं होने और जबलपुर से वर्ष 2017 में खरीदी सर्विस बुक के पन्नों पर डीबी साइंस कॉलेज की कथित 4 साल पुरानी 14 सितंबर 2012 से लेकर 25 अगस्त 2017 तक की प्रविष्टियां करने के बिंदु को हाईलाइट क्यों नहीं किया।
क्या वर्तमान संयुक्त संचालक स्थानीय निधि संपरिक्षक श्री पाठक इस बात पर गौर फरमाएंगे की धरना की 24 अगस्त 2017 की तारीख में जारी एलपीसी मैं 31 जुलाई 2017 को अंतिम वेतन भुगतान करने का प्रमाणपत्र देने की वैधानिकता क्या है। खाने का आशय यह है कि यदि 31 जुलाई को अंतिम वेतन इस स्थिति में बना होगा जब 31 जुलाई 2017 को ही धरना गोंदिया से रिलीव हुई होगी। कोई भी एलसी रिलीव होने के अंतिम दिन के आधार पर उसी दिन बनाई जानी चाहिए या 24 दिन बाद बनाई जानी चाहिए यह नीतिगत और नियम का विषय है जिसके बारे में यह लेखक अनजान है लेकिन धारण की सर्विस बुक में गोंदिया से रिलीविंग डेट 24 अगस्त 2017 दर्ज होना और यह खामी स्थानीय निधि संपरिक्षक के चालक चुस्त ऑडिटरों की नजर में नहीं आना क्या बताता है। संदेश साफ है सबको अपनी-अपनी नौकरी करना है और बीवी बच्चे पालना है, किसी को भी राजनीतिक कोप का शिकार नहीं बनना है,
अभी यह पता नहीं है कि वर्ष 2024 - 25 और वर्ष 2025 से 2026 में संयुक्त संचालक स्थानीय निधि संपरिक्छा सिविक सेंटर जबलपुर से भेजी टीम ने क्या जांच पड़ताल की है और आपत्तियां उठाई हैं। पिछले 20 सालों से अधिक समय से हमारे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी भ्रष्टाचार को रोकने के लिए की जी जान एक कर रहे हैं पर यह रुक ही नहीं रहा है।
ताजा स्थिति में दो महत्वपूर्ण तथ्य और निकाल कर आए हैं पहला यह की विधानसभा भोपाल में उठे ध्यान आकर्षण सूचना 57 की पूर्ति के लिए अधिष्ठाता बालाघाट से धरना द्वारा डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया में सहायक प्राध्यापक के पद पर नियुक्ति हेतु किया गया आवेदनपत्र मांगा गया था, आरटीआई के अनुसार यह आवेदन पत्र टीवी साइंस कॉलेज गोंदिया और कृषि कॉलेज बालाघाट दोनों के रिकॉर्ड में नहीं है। डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया ने 18 पदों पर भारती के लिए वर्ष 2012 में आम सूचना का प्रकाशन किया था विज्ञापन का प्रकाशन किया था। तो ऐसे सभी फॉर्म के साथ अर्थात आवेदनपत्र डीबी साइंस कॉलेज गोंदिया में सुरक्षित होना चाहिए थे।
धरना के आवेदन पत्र का नहीं मिलने से यही अर्थ निकलता है की धारणा की नियुक्ति डीबी साइंस कॉलेज में पूरी तरह से बोगस और फर्जी है।
इसमें एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि जिस तरह अधिष्ठाता कृषि कॉलेज बालाघाट ने प्रतिनियुक्ति आदेश 16.08.2017 का अनुपालन रिपोर्ट कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर को भेजा था। इस तरह गोंदिया एजुकेशन सोसाइटी के नियुक्ति पत्र 2012 के आधार पर डीबी साइंस कॉलेज में 14.9.2012 को पदग्रहण करने वाली धरना का कोई अनुपालन रिपोर्ट प्राचार्य डॉक्टर अंजन कुमार एस नायडू ने अध्यक्ष गोंदिया एजुकेशन सोसाइटी को नहीं दिया है।
प्राचार्य अंजन कुमार एस नायडू ने 13 अगस्त 2017 को एक प्रमाण पत्र देते हुए यह प्रमाणित किया है कि डॉक्टर धरना रामकिशोर टेंपर बिसेन उनके कॉलेज में 14 सितंबर 2012 से कार्यरत रही हैं। अर्थात सेवा में आने के 5 साल बाद नियुक्ति की अनुपालन रिपोर्ट नहीं देकर एक प्रमाण पत्र बनाकर देना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यह अंतर प्रांतीय धोखाधड़ी जालसाजी शासकीय सेवा का लाभ पाने के लिए झूठ अभिलेख तैयार करने पर भारतीय न्याय संहिता की गंभीर धाराओं का अपराध है।
जबलपुर से पत्रकार दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट,4 मई 2025, दिन रविवार, अंक 33 वां
सुधी पाठक 34 वें अंक में पढ़ेंगे कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा की धारणा के प्रकरण में दुहरा और तिहरा मानक अपने का किस्सा।
इससे भाजपा के लाडले कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा की श्रेष्ठ प्रशासनिक क्षमताओं का परिचय मिलेगा। अगले अंक में यह कहावत चरितार्थ और फलितार्थ होगी की समरथ को नहीं दोष गोसाई....।।