
जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट
आज भास्कर\जबलपुर । कृषि विश्वविद्यालय से एक बड़ी खबर है कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के ससुर कुलगुरु डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा की लॉबी को आंशिक रूप से पहली चोट पहुंची है। कृषि विश्वविद्यालय में नई वित्त नियंत्रक सुश्री मंजू तिवारी ने पदभार ग्रहण कर लिया है। आज उनका पहला दिन था, अब वित्त नियंत्रक को तय करना है कि वह पूर्व की भांति और पूर्व के वित्त नियंत्रकों की तरह कुलगुरु पीके मिश्रा की कठपुतली बनी रहेगी या वित्त नियमों को सर्वोपरि रखते हुए कृषि विश्वविद्यालय को घाटे से उबारेंगी। कर्मचारियों को पिछले चार माह से रुका हुआ वेतन दिलाने में महिती भूमिका निभाना है।
सत्ता में जबलपुर से लेकर दिल्ली तक मजबूत वजूद रखने वाले कुलगुरु पीके मिश्रा के दामाद और स्तुति मिश्रा के पति भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा की वजनदार मौजूदगी में कुलगुरु पीके मिश्रा ने जब स्थापना व्यय पत्रक के साथ 130 करोड़ का बजट बनाकर जनवरी 25 के पूर्व कृषि मंत्रालय एवं वित्त मंत्रालय भोपाल भेजा था, तब वह यह क्यों नहीं सुनिश्चित कर पाए की यदि वित्त सचिवालय और वित्त मंत्रालय ने 130 करोड़ के बजट में कटौती करते हुए स्वीकृति 97 करोड़ कर दिया है, तो उसका कारण क्या है और यह कैसे मीट आउट होगा, अर्थात पूरे 130 करोड़ राज्य शासन से प्राप्त करने के लिए कुलगुरु के तीन लाइजनर भोपाल में पदस्थ पदस्थ हैं, तीनों कुछ भी नहीं कर पाए हैं।
भोपाल में कृषि विश्वविद्यालय के तीन लाइजनर होने की खबर है, मेरे पास सुनिश्चित जानकारी नहीं है, पर खबर के मुताबिक उनमें से एक भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा की पत्नी स्तुति मिश्रा भी है ,जिनका आधा से ज्यादा समय भोपाल में और शेष समय जबलपुर में व्यतीत होता है। शेष दो लाइजनर अधिकारियों के नाम की मुझे जानकारी नहीं है, कि वह भोपाल में पदस्थ है या नहीं है, भोपाल में कृषि विश्वविद्यालय की ओर से तीन लाइजनर अधिकारी पदस्थ होने की चर्चा है।
यह तीनों अधिकारी सहायक प्राध्यापक स्तर के हैं या अधिकारी स्तर के प्रशासनिक अधिकारी स्तर के हैं यह लेखक सुनिश्चित नहीं कर पाया है, क्योंकि स्तुति मिश्रा का नाम विश्वविद्यालय की लाइजनर के रूप में चर्चा में रहता है इसीलिए उन्हें खबर में लिया जाना आवश्यक है, भोपाल में तीन-तीन लाइजनर की उपस्थिति के बावजूद कर्मचारियों को फांके मस्ती के दिन गुजरना पड़े तो इस पर टीका टिप्पणी व्यर्थ है, यदि ऐसा कुछ भी है तो वह ठीक नहीं माना जा सकता।
मैं फिर विषय पर लौटता हूं कि पूर्व कुलगुरु और रक्तसंबंधियों को शासकीय सेवा का लाभ देने वाले पीके बिसेन के समय से भोपाल से बजट आवंटन अर्थात ग्रांट स्वीकृति में लापरवाही और गड़बड़ी शुरू हुई, अब यह छोटा सा गड्ढा चौड़ा होकर खाई बन गया है और जिसे पाटना बड़ा मुश्किल जा रहा है।
आशय यह है कि विश्वविद्यालय का अनुदान अर्थात ग्रांट 93 करोड़ सालाना है जो क्रमशः बढ़ता भी जाता है, इसमें अन्य स्थापना व्यय भी शामिल होते हैं और इस आधार पर कुलगुरु पीके मिश्रा ने जनवरी में राज्य शासन से 130 करोड़ का ग्रांट मांगा था।
तब यह तीन-तीन लाईजनर अधिकारी भोपाल में क्या कर रहे थे। लेकिन यह बात भी समझना आवश्यक है कि भोपाल का वित्त मंत्रालय ने किस कारण से स्थापना बजट की राशि में लगभग 35 करोड़ की कटौती की है।
इस कटौती का तार्किक आधार क्या है और उसके निराकरण के लिए कोई प्रयास क्यों नहीं हुए,। यह चर्चा जरूर है कि वित्त मंत्रालय से किसी भी विभाग को स्थापना और अन्य बजट का स्वीकृत आवंटन प्राप्त करने के लिए एक निश्चित कमिशन की राशि अदा करना पड़ती है,अब इस कमीशन की शक्ल क्या है इसके विस्तार में जाना ठीक नहीं लेकिन यदि यह चर्चा बाहर हो रही है तो निश्चित रूप से कहीं ना कहीं गड़बड़ तो है खासतौर पर उसे भाजपा शासन के काल में जहां ईमानदारी वफादारी भ्रष्टाचार मुक्त और साफ सुथरा पारदर्शी प्रशासन देने की बात अटल बिहारी वाजपेई के जमाने से हो रही है।
मुख्यमंत्री मोहन यादव जी को इन सारे तथ्यों पर विचार करना चाहिए क्योंकि भाजपा सरकार को व्यवस्था परिवर्तन के लिए लाया गया है, सत्ता परिवर्तन के लिए नहीं लाया गया है, उस हिसाब से तो कांग्रेस के शासनकाल को ज्यादा बेहतर माना जा रहा है। क्योंकि कांग्रेस के शासनकाल में काशी विश्वविद्यालय के 500 छोटे बड़े कर्मचारियों को कभी भी भूखे नहीं रहना पड़ा और उनके बच्चों की स्कूल फीस और ट्यूशन फीस के लिए उधार पैसा नहीं लेना पड़ा या स्कूल प्रशासन से और प्रबंधन से हाथ जोड़कर रिक्वेस्ट नहीं करना पड़ी कि साब वेतन नहीं हुई है, कुछ दिन की मोहलत दे दो। मजे की बात देखिए कि विश्वविद्यालय का 100 फ़ीसदी कर्मचारी भाजपा का वोटर माना जाता है, और भाजपा शासन काल में उन्हीं पर चोट पड़ रही है। इनमें पेंशनर्स एसोसिएशन के सचिव रतन पारखी भी हैं।
हाल ही में पेंशनर एसोसिएशन ने बड़े तामझाम के साथ अंबेडकर सामुदायिक भवन हाईकोर्ट चौराहे पर पिछले दिनों पूर्व सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री लखन घनघोरिया की अध्यक्षता में सम्मेलन किया था, इसमें कुलगुरु पीके मिश्रा भी उपस्थित हुए थे, किसने क्या कहा क्या सुना उसका लब्बो लुआब लेखक के पास नहीं है, पर झांकी सजी थी यह सही है भोजन पानी हुआ यह भी सही है, पर निष्कर्ष की वास्तविक जानकारी सामने नहीं आई है। कि भविष्य में कृषि विश्वविद्यालय में सुधार हो पाएगा या नहीं।
बरहाल राज्य शासन को तो सबसे पहले इस तथ्य को परखना चाहिए कि क्या वास्तव में कृषि विश्वविद्यालय ने अपने तीन लाइजनर भोपाल में रख छोड़े हैं तो इनका काम क्या है और यह क्या करते हैं, इनमें से एक कोई विदिशा के हैं, ऐसा ही एक और कोई अन्य सहायक प्राध्यापक है जिसे भोपाल के काम ज्यादा रहते हैं, अब जबकि हर तरह की बातचीत के लिए संचार के अत्याधुनिक संसाधन मौजूद है, तब यह तीन के तीन सहायक प्राध्यापकों की भोपाल में लाईजनर अधिकारी के रूप में क्या आवश्यकता है इस पर विचार सरकार को करना है।
शिक्षा और कृषि को लाभ का धंधा बनाने तीन गुना तक फायदा लेने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्र की पूर्ति के लिए सहायक प्राध्यापकों का भोपाल में होना जरूरी है या विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए मौजूद रहना जरूरी है, सरकार को इस पर विचार करना चाहिए। वैसे भी जनसंपर्क अधिकारी के पद पर एक अतिव्यस्त प्राध्यापक की नियुक्ति की आवश्यकता पर भी विचार करना चाहिए। मानसिक रूप से अत्यधिक श्रम करने वाले प्राध्यापक के कंधों पर और मस्तिष्क पर कितना बोझ दिया जाना चाहिए इसे बताने की आवश्यकता नहीं है, हमारे मुख्यमंत्री मोहन यादवजी इस मामले में पूरी तरह से सक्षम है। यह लेख यदि मुख्यमंत्री जी तक पहुंचा तो वह इस बात पर विचार करने मजबूर होंगे कि एक प्राध्यापक की शिक्षा से इतर जिम्मेदारियां बढ़ानी चाहिए या नहीं, और यदि बढ़ानी चाहिए तो किस सीमा तक जिम्मेदारी बढ़ाना चाहिए।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा की सहायक प्राध्यापक पत्नी स्तुति मिश्रा पर यह भी आरोप है कि वह पढ़ाती नहीं है, ज्यादातर समय भोपाल में ही रहती हैं, लेकिन यहां कथित तौर पर हाजिरी रजिस्टर में उनकी पूरी-पूरी हाजिरी लगती है, यह भी जांच का विषय है। इस संबंध में लेखक गहराई में नहीं जाना चाहता लेकिन यदि कुछ भी है तो वह सरकार की छवि को प्रभावित कर रहा है,। जनता में सरकार की भद्द उड़ रही है। इस 26 वे अंक में यह विषय इसीलिए उठाना पड़ा क्योंकि विश्वविद्यालय की वित्तीय हालत बहुत गंभीर है, खास तौर पर राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में यदि उत्तर प्रदेश की सरकार को डबल इंजन की सरकार कहा जाता है, तो कम से कम कृषि विश्वविद्यालय की सरकार को ट्रिपल इंजन की सरकार कहा जा सकता है, इसके तीन इंजन है कुलगुरु पीके मिश्रा, उनकी बेटी सहायक प्राध्यापक स्तुति मिश्रा, और स्तुति मिश्रा के पति खजुराहो के सांसद और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा,।
भाजपा सरकार के अंदर कृषि विश्वविद्यालय का इतना वजनदार पक्ष कभी नहीं रहा उसके बावजूद यदि कृषि विश्वविद्यालय को दुर्दिन देखना पड़ रहे हैं, तो सत्ता पक्ष को गंभीरता से विचार करना चाहिए। स्तुति मिश्रा के बारे में तो चर्चा है कि यदि उसने कृषि विश्वविद्यालय में कोई लकीर खींच दी है तो उसे बदलना संभव ही नहीं टेढ़ी खीर है।
यह भाजपा के लिए अच्छा संकेत नहीं है। सरकार के पास अपनी एलआईबी, और गुप्तचर एजेंसियां हैं, खबरें कहां तक कितने प्रतिशत सही हैं इसकी तस्दीक कराई जा सकती है। कुल मिलाकर कृषि विश्वविद्यालय की लचर व्यवस्था को सुधारने के लिए गंभीर प्रयास की आवश्यकता है।
अगले 27 वें अंक में एक बार फिर अशासकीय सेवा से शासकीय सेवा में अंतरप्रांतीय प्रतिनियुक्ति 16 08 2017 पर, पाठकों की मांग पर व्यक्तिशह जिम्मेदारी और आरोप का सिलसिला सरल भाषा में प्रस्तुत करने की कोशिश करेंगे।
यह इसलिए कि पत्रकार साथियों ने कहा कि व्यक्तिशह आरोप तय किया जाना आवश्यक है, यह पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज उनके पूर्व कृषिमंत्री गौरीशंकर और उनके भाई पीके बिसेन का 08 साल पुराना अपराध का चक्रव्यूह है, इसे समझने में मुश्किल जा रही है, कि किसका कहां कितना रोल है, कूटरचना , कदाचरण, षड्यंत्र के अपराध का सबसे पहले आरोपी कौन है।
क्रमशः ---------