
दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट
आज भास्कर\जबलपुर। भाजापा की राज्य और केंद्र सरकार पर "फासीवादी" का ठप्पा क्यों लगता है? इसका जीता जागता उदाहरण है, 15 सालों से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह के संरक्षण और छत्रछाया में हुआ मंत्री गौरीशंकर बिसेन की बहू धारणा रामकिशोर टैबरे बिसेन की गोंदिया से बालाघाट में की गई अशासकीय सेवा से शासकीय सेवा में अंतरप्रांतीय प्रतिनियुक्ति 16. 08. 2017 और संविलियन 05. 10 .2018,
अब केंद्र में कृषिमंत्री शिवराज सिंह के पास बात का कोई जवाब नहीं है कि कूटरचना का मामला उनके मुख्यमंत्रितव कार्यकाल में विधानसभा में उठने के बाद दांडिक प्रकृति के अपराध पर जबलपुर के अधारताल थाने में एफआईआर क्यों दर्ज नहीं हुआ। इस पर मैं खुलासा बाद में करूंगा। लेकिन गत सातवें अंक में मैंने नवागत पुलिस अधीक्षक जबलपुर को आठवां अंक समर्पित करने की यह सूचना अपने सुधि पाठको को दी थी। पुलिस की कार्रवाई में विलंब क्यों है ,यह मैं अगले नवें अंक में बताऊंगा। लेकिन अभी पूर्व पुलिस अधीक्षक आदित्य प्रताप सिंह के कार्यकाल में कूटरचना से संबंधित समस्त शासकीय अभिलेख बतौर साक्ष्य प्रस्तुत किए है और dsp क्राइम का नोटिस 1503/ 03 .09. 2024 मिलने पर कथन 12 .9.2024 दर्ज कराया है। अपराधिक प्रकरण दर्ज करने के लिए प्रथम रिमाइंडर 6 जनवरी 2025 को दूसरा रिमाइंडर 17 फरवरी 2025 को दिया है। जांच अधिकारी के समक्ष कथन दर्ज कराने के बाद में आरटीआई से जो नई जानकारियां मिली है वह रिमाइंडर में लेख किया है। इस पर भी बाद में चर्चा करेंगे , अभी पुलिस अधीक्षक जबलपुर के अधीन कूटरचना का घटनास्थल होने के कारण, लगभग 200 पेज के शिकायत आवेदन की पावती 18 .07 .2024 मैंने डॉक्टर धारणा टेंभरे बिसेन के कूटरचित तीन संविलियन और प्रतिनियुक्ति के आवेदनपत्र मे कुटरचना का लगभग 40 बिंदुओं में विश्लेषण प्रस्तुत किया है। और एसपी जबलपुर संपत उपाध्याय के नाम से दिया रिमाइंडर क्रमांक 2 मैंने वर्तमान कुलपति भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा के ससुर पीके मिश्रा को भी 25. 02 . 2025 को देकर पावती प्राप्त की है। पीके मिश्रा को संपूर्ण शिकायत की जानकारी देना इसीलिए जरूरी है ताकि वे अदालत में यह नहीं कह सके कि उनके संज्ञान में नहीं है। क्योंकि वर्तमान कुलगुरु पीके मिश्रा इस तकरार के मुख्य आरोपियों में से एक है। जिस समय मैंने 18 जुलाई 2024 को पुलिस अधीक्षक जबलपुर को जांच के लिए लगभग 200 पेज की शिकायत सौंपी थी, उस समय विवेचना और विश्लेषण के वक्त धारणा बिसेन के तीन आवेदन पत्र प्राप्त संलग्न की फाइल 95 2024 में भौतिक रुप से अस्तित्व में है, अर्थात दृष्टिगोचर होते हैं। लेकिन लिए चौथा आवेदन छाया ग्रह की तरह पढ़ने को तो मिलता है लेकिन अस्तित्व में दिखता नहीं है , तीन आवेदन भौतिक रूप से रिकार्ड में हैं। इसीलिए इन तीन आवेदन पत्र 19 साल 2016, दूसरा आवेदन 30 .06 .2017और तीसरा आवेदन 05. 04. 2018, आरटीआई से प्राप्त सम्मेलन की फाइल 9. 05. 2024 में मिले थे।
गहराई से अध्ययन और विश्लेषण से पता चला कि डीन बालाघाट के पत्र और संविलियन के पत्र और प्रस्ताव 23. 03 . 2018 में धारणा से प्राप्त संविलयन का आवेदन का लेख तो है लेकिन या आवेदन दूर-दूर तक बालाघाट और जबलपुर में कृषि विश्वविद्यालय के रिकार्ड में नहीं है। बालाघाट से प्राप्त आरटीआई के जवाब में डीन एनके बिसेन ने लिखकर दिया है कि पत्र 23 .03 . 18 मैं उल्लेखीत संविलियन का आवेदनपत्र रिकार्ड पर नहीं है, उपलब्ध नहीं है। जिसमें साशय कूटरचना, धोखाधड़ी, छल कपट, तथ्यों को छिपाना, समस्त झूठी, असत्य जानकारी को सत्य के रूप में प्रस्तुत करना और उसे विश्वविद्यालय के स्तर पर स्वीकार किया जाना की पुष्टि होती है।
यह जानकारी देर से मिलने के कारण पुलिस अधीक्षक जबलपुर को सौंपी शिकायत में धारणा के चौथे संविलियन के आवेदन पत्र( 23. 03 .2018) का तुलनात्मक अध्ययन आईपीसी और भारतीय न्याय सहित के नई धाराओं के अंतर्गत प्रस्तुत नहीं कर पाए है। इसीलिए इसे गत छटवें और सातवें अंक में विश्लेषण के साथ पुलिस अधीक्षक जबलपुर को सौंपी शिकायत 18.07. 2014 में यह बता दिया है कि सूची क्रमांक चार में अभ्यर्थी धारणा के तीनों आवेदन पत्र में कुतरचना के 34 बिंदुओं को पेज नंबर 18 से 20 में बताया है। विस्तार से प्रस्तुत किया है।
यहां हम झगड़ा बिसेन के सर्वप्रथम आवेदन 19. 10 .2016 के बारे में बता देती यह केवल और केवल मात्र प्रतिनियुक्ति का आवेदन है। इस आवेदन 19. 10 .2016 में उन तथ्यों और जानकारी का समावेश नहीं था जो मूलभूत नियम के अंतर्गत अनिवार्य एवं अत्यंत आवश्यक है। अर्थात जिनके बिना प्रतिनियुक्ति संभव ही नहीं है।
इसके बावजूद पीके मिश्रा की अध्यक्षता में प्रशासनिक परिषद की 164 बैठक 21. 07. 2017 में इसे स्वीकार किया है। इसीलिए लेखक बार-बार छल, धोखाधड़ी, कदाचरण, पद का दुरुपयोग, और सामूहिक सुविचार सुनियोजित सुसंगठित राजनैतिक प्रभाव वाले षड्यंत्र का उल्लेख करता है।
इस बीच विश्वविद्यालय में की जा रही शिकायतओ के चलते अचानक धारणा टेंभरे बिसेन ने 30 .06 .2017 एक नया आवेदन प्रस्तुत किया यह आवेदन रिकार्ड पर है ।
आप दोनों आवेदनो के विषय के बारे में सुनिए।
धारणा का प्रथम आवेदन 19. 10. 2016 का विषय केवल और केवल प्रतिनियुक्ति है। धारणा के दूसरे आवेदन 30. 06. 2017 का विषय प्रतिनियुक्ति और संविलियन दोनों है।
इसमें संविलियन के लिए अत्यंत अनिवार्य और मूलभूत शर्त पूर्व संस्था के नियुक्ति करता का प्रतिनियुक्ति पर सहमती पत्र होना आवश्यक है। इस आशय का पत्र आवेदन 306 2000 सप्ताह में संलग्न करने का लेख है परंतु गोदिया एजुकेशन सोसाइटी के चेयरमैन का सहमतिपत्र संलग्न नहीं है । यही कूटरचना और छल, धोखाधड़ी है। आरटीआई से मांगे जाने पर कृषि कॉलेज बालाघाट के डीन एनके बिसेन ने जानकारी दी है कि पत्र रिकार्ड में नहीं है। धारणा को नोटिस देखकर पत्र की मांग की है जिसका जवाब धारणा ने नहीं दिया है। धारणा का प्रतिनियुक्ति का यह दूसरा आवेदन पत्र 306 2017 पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव, डीन फेकल्टी, स्थापना एक, और पूरे तक में की पर्सन की भूमिका निभाने वाले बालाघाट निवासी सहायक कुलसचिव प्रशांत श्रीवास्तव की कहीं कोई टीप नहीं है।
अर्थात यह दूसरा आवेदन पत्र 306 2017 पूरी तरह से बोगस झूठा गलत कह सकते जानकारी से युक्त पकड़ी गई गलती को छुपाने के लिए व्हाइटनर लगाकर खानापूर्ति करने की कोशिश की है। प्रशांत श्रीवास्तव ने इस बाबत कोई जांच नहीं उठाई की पत्र में उल्लिखित प्रतिनियुक्ति के लिए अत्यंत आवश्यक और मूलभूत नियम की अनिवार्य शर्त की पुष्टि करने वाला संलग्न सहपत्र साथ में क्यों नहीं दिख रहा है। यहां पर प्रशांत श्रीवास्तव का सबसे महत्वपूर्ण रोल दिखाई दे रहा है।
ऊपर लिखित दोनों आवेदन धारणा ने हिंदी भाषा में कुलसचिव जबलपुर के नाम से संबोधित किया है लेकिन जिस तीसरे सम्मेलन के आवेदन का विश्लेषण मैंने पुलिस अधीक्षक जबलपुर को 100 पीस शिकायत 18.07. 2014 में किया है वह सांवलियान आवेदन 5. 4 .2018 इंग्लिश भाषा में है। और वह सांवलियान का आवेदन 05. 04. 2018 डीन बालाघाट विजय बहादुर उपाध्याय के नाम से दिया गया है, अर्थात एक कनिष्ठ अधिकारी ने अपने से वरिष्ठ अधिकारियों, डीन फेकल्टी और कुलपति जबलपुर को आदेशित किया है कि वह प्रशासनिक परिषद और प्रमंडल की बैठक बुला कर धारणा का सांवलियन करें। इस सम्मेलन के तीसरे आवेदन पत्र 54 /2018 में सर्वाधिक महत्वपूर्ण यह कि धारणा ने लिखा है कि वह महाराष्ट्र के गोदिया से धोटेबंधु साइंस कॉलेज से 1 वर्ष की लियन पर विश्वविद्यालय के माध्यम से कृषि कॉलेज बालाघाट में आई है ।और उसकी लिए लियान अवधि समाप्त होने के पूर्व सेवा को मर्ज कर लिया जाए।
लीयान कब ली है, आरटीआई से मांगे जाने पर जवाब मिला है कि लीन से संबंधित कोई अभिलेख गोदिया के धोतेबंधु साइंस कॉलेज का पत्र रिकार्ड पर उपलब्ध नहीं है।
यह आठवां अंक पुलिस अधीक्षक जबलपुर को इसलिए समर्पित क्योंकि हमारे नवागत पुलिस अधीक्षक जो भी होते हैं वह भविष्य में पुलिस महानिदेशक के पास तक अवश्य पहुंचते हैं। संपत उपाध्याय भी हमारे भविष्य के पुलिस महानिदेशक हे। जिस तरह वर्तमान पुलिस महानिदेशक कैलाश मकवाना ने जबलपुर में रहकर सैद्धांतिक और व्यावहारिक पुलिसिंग का अनुभव प्राप्त किया है। कैलाश मकवाना की सामाजिक पुलिसिंग बहुत तगड़ी थी। और यही उनकी सफलता का राज है। कई बार व्यवहारिक अध्यन कानून से भी ज्यादा कारगर होता है। अर्थात कानूनन पुलिससिंग और सामाजिक पुलिसिंग के बीच मौजूद अत्यंत बारी और सूक्ष्म अंतर को समझना बहुत जरुरी है। कैलाश मकवाना ने जबलपुर में वह काम कर दिखाया है जिसकी कई सालों से प्रतीक्षा थी।
हम नवागत पुलिस अधीक्षक संपत उपाध्याय से भी उम्मीद करते हैं कि वे भी कुछ नया करेंगे ।
जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह का जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय
की धोखाधड़ी को आठ साल से छुपाने वाले वर्तमान कुलगुरु पीके मिश्रा के प्रशासनिक चरित्र पर यह आठवी रिपोर्ट है।
आगे के अंक में हम एकबार फिर कानून पर बात करेंगे। उसके बाद इस अंतरप्रांतीय अशासकीय सेवक की परतों - खामियों पर लौटेंगे।
क्रमशः******