मैं तो फिर भी ठीक हूं - डॉ मन्तोष भट्टाचार्य - Aajbhaskar

खबरे

Sunday, October 20, 2024

मैं तो फिर भी ठीक हूं - डॉ मन्तोष भट्टाचार्य

आज भास्कर ............


अक्सर हम यही सोचते रहते हैं कि हम कितने बदनसीब हैं ,अन्य लोगों की तुलना में बहुत ही परेशान हैं या हमारी किस्मत ही खराब है ,ऊपर वाले ने हमारे साथ बहुत ग़लत किया है ,हमें अच्छा अवसर नहीं दिया ताकि हम भी बहुत शोहरत और पैसा कमा सकते थे । अक्सर यही धारणा हमारे मन में उमड़ती घुमड़ती रहती है। लेकिन जब दूसरों के हकीकत से हम रूबरू होते हैं तब हमें पता चलता है कि हम जैसे भी हैं अपनी जगह ठीक ही हैं

कुछ वर्ष पूर्व की बात है

रांझी में एक सज्जन रहते थे वो शुद्ध घी , बड़ी ,पापड़ , खजूर के गुड़ , खुशबूदार अगरबत्ती , धूप , चन्दन, शंख की चूड़ियां जैसे ढेरों आइटम का कारोबार किया करते थे । ऐसे ढेरों आइटम वो कोलकाता से लाकर यहां अपने खरीददारों को बेचा करते थे , जो कि उनकी बंधी ग्राहकी थी । उनके ढेरों ग्राहकों में हम लोग भी एक ग्राहक बन गए थे और उनसे शुद्ध घी गुड़ इत्यादि खरीद लिया करते थे । बहुत मेहनत किया था उन्होंने तभी तो कुछ समय बाद इग्निस कार में अपने ग्राहकों को उनकी जरूरत की चीजें सप्लाई करने लगे थे । उन दिनों हमारे पास नैनो कार थी और उनको इग्निस कार में माल लेकर घूमते देख मेरे मन में ईर्ष्या हुआ करती थी कि मैं उनके सामने कुछ भी नहीं हूं । जबकि बंदा बड़े मज़े से मेरे सामने ही इग्निस कार को रोड में बड़े शान से फर्राटे भरता नज़र आता था।


वहीं हम अपनी छोटी सी कार नैनो में बैठकर चलते थे । तब मैं अपनी किस्मत को कोसा करता था ।

बहरहाल एक लंबे अंतराल के बाद अभी हाल ही में दो दिन पहले मैं अपनी पत्नी और बेटे के साथ रात को वेस्ट लैंड खमरिया गया था घूमने साथ ही मां दुर्गा के दर्शन करने । वहीं पर लगे ढेरों स्टाल के बीच उन सज्जन का स्टाल देख हम लोग उनके पास पहुंचे । वहां वो सज्जन अपनी पत्नी के साथ अपनी दुकान में बैठे नजर आए । लेकिन उन पर नजर पड़ते ही हम चौंक गए क्योंकि वो बंदा बहुत ही कमजोर दिखाई दे रहा था उनकी हैल्थ भी बहुत डॉउन नजर आ रही थी । यह देख जब उनसे मैंने पूछा कि आपकी तबियत खराब हो गई है क्या ? तो उन्होंने बताया कि उनकी दोनों किडनी खराब हो गई है । और लंबे समय तक बाहर किसी बड़े शहर में इलाज के बाद भी कोई आराम नहीं मिला जबकि लाखों रुपए खर्च हो गए । और अब हैदराबाद के किसी चिकित्सक से आयुर्वेदिक उपचार ले रहे हैं । मेरे पूछने पर कि डायलिसिस क्यों नहीं लिया ? इस पर उन्होंने इसके लिए मना कर दिया । अब कहानी ये‌ है कि उनके पास जो भी माल बचा है उसे वो कुछ कम दामों में बेचकर इससे जल्द से जल्द निजात पाना चाहते हैं । क्योंकि जिस्म में ताकत ही नहीं बची थी ।

यह सब जानकर मुझे बहुत दुख हुआ लेकिन तत्काल ही अंदर से एक आवाज ने मुझे हिम्मत दी कि मैं स्वयं तो अपनी जगह बिल्कुल ठीक हूं , स्वस्थ हूं और अपनी रोजी रोटी भी ठीक ठाक ही चल रही है ।

बेटे ने उनके पास से कोलकाता का बंगाली नमकीन खरीदा और मैंने मां शेरावाली का सांचे में ढला खूबसूरत मुखड़ा खरीदा और फिर हम वहां से वापस लौट पड़े । लेकिन वापसी में अपनी कार में बैठ मैं निरंतर यही सोच रहा था कि इस संसार में कोई भी सुखी नहीं है , और दूसरे क्या कर रहे हैं ? कैसा कर रहे हैं ? कितना आगे निकल गए मुझसे ? ये सब सोचने की आवश्यकता नहीं है हमें सिर्फ और सिर्फ अपना काम करना है तभी हम सुखी और प्रसन्न रह सकते हैं । बस यही हर वक्त अपने दिमाग में बैठाए रखना है ।

सीधी सी बात है कि लोगों को छोड़ो खुद पर हमेशा ध्यान देना जरूरी है ।

======================

डॉ मन्तोष भट्टाचार्य
जबलपुर ( म.प्र )