मिसरोद पुलिस ने उसके खिलाफ धारा 306 के तहत अपराधिक प्रकरण दर्ज कर लिया। याचिका में राहत चाही गई थी कि उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त किया जाए। सरकार की तरफ से याचिका का विरोध करते हुए कहा गया कि मृतका के परिजनों ने निष्पक्ष जांच के लिए मिसरोद थाने में आवेदन दिया था। उनकी तरफ से बताया गया था कि मृतका के शरीर में चोट के निशान थे। युवती के साथ मारपीट की गई थी, इसके बाद उसने फांसी लगाकर आत्महत्या की है। मृतका का कमरा अंदर से बंद था और पुलिस ने उसे खोला था। मृतिका के घर घटना के पूर्व कौन आया, इस संबंध में पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की जांच तक नहीं की। याचिकाकर्ता और युवती के बीच प्रेम-संबंध थे, इसके बावजूद भी उसने किसी दूसरी युवती से विवाह किया था।
एकलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि मृतका के कमरे से पुलिस ने दोनों के बीच अंतरंगता के फोटो बरामद किए हैं। इसके अलावा दोनों के बीच असमय फोन पर बात भी होती थी। एकलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का हवाला देते हुए अपने आदेश में कहा कि अपराधिक कार्यवाही को उत्पीड़न के हथियार में बदलने की अनुमति नहीं दे सकते हैं। शादी नहीं करना आत्महत्या के लिए उकसाने के दायरे में नहीं आता है। एकलपीठ ने याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने के आदेश जारी किए हैं।