जौरा । जौरा ब्लाक में अपात्र लोगों को रेवड़ियों की तरह बीपीएल राशन कार्ड बांटे गए हैं। जांच के बाद एसडीएम प्रदीप ताेमर ने इस बार 463 फर्जी बीपीएल राशनकार्ड निरस्त किए हैं। बीते एक महीने में एसडीएम 1749 फर्जी राशनकार्ड पकड़ चुके हैं। अभी भी सैकड़ों बीपीएल राशनकार्ड की जांच जारी है। जौरा एसडीएम ने जिन 463 फर्जी बीपीएल राशनकार्डों को निरस्त किया है, उनमें जौरा ब्लाक के लगभग 55 के लोगों के नाम हैं। यह सभी राशन कार्ड तत्कालीन तहसीलदार नरेश शर्मा के कार्यकाल 1 सितंबर 2022 से 27 मार्च 2023 के बीच बने हैं, जिनमें अधिकांश अपात्र हैं। इन फर्जी बीपीएल राशनकार्ड के बारे में संभाग आयुक्त तक शिकायत पहुंची थी कि हजारों रुपये लेकर एक-एक फर्जी राशन कार्ड बनाया गया है। इसी शिकायत के बाद 17 मई को कलेक्टर अंकित अस्थाना ने इस मामले में जांच बैठाई थी। जांच करने वाले एसडीएम प्रदीप तोमर ने 5 दिसंबर को 370 फर्जी बीपीएल राशनकार्ड निरस्त किए थे, इसके बाद 25 दिसंबर को 916 फर्जी गरीबों के नाम बीपीएल सूची से काटे गए थे। जांच में तीसरी रिपोर्ट बीते रोज आई, जिसके बाद एसडीएम न्यायालय ने 463 बीपीएल राशनकार्ड फर्जी बताते हुए उन्हें निरस्त कर दिया गया है।
आदेश में पूर्व तहसीलदार का नाम गायब
यह फर्जी राशन कार्ड तत्कालीन तहसीलदार नरेश शर्मा के कार्यकाल में बने। इससे पहले दो आदेशों में 1286 फर्जी राशन कार्ड निरस्त किए गए, तब एसडीएम तोमर ने अपने आदेश में तत्कालीन तहसीलदार नरेश शर्मा के नाम का जिक्र करते हुए लिखा, कि उक्त राशन कार्ड का तहसील व एसडीएम कार्यालय में कोई रिकार्ड ही नहीं है। तहसीलदार नरेश शर्मा ने पटवारियों से आवेदन लेकर इन्हें आवक-जावक शाखा से जनपद पंचायत सीईओ को भेज दिया।
बीपीएल कार्ड के लिए किए गए आवेदनों की प्राथमिक आर्डरशीट में न तो तारीख तक दर्ज नहीं है। इन आवेदन फार्म तक में जानकारी पूरी नहीं है। अधिकांश में नाम पूरे नहीं लिखे और आवेदन के हस्ताक्षर तक नहीं थे। इसके अलावा कई आवेदन ऐसे पाए गए, जिनमें ऐसे पटवारियों के नाम व हस्ताक्षर पाए गए हैं, जो उन हल्कों में कभी पदस्थ ही नहीं रहे। यानी पटवारियों के भी फर्जी हस्ताक्षर किए गए हैं। इस बार के आदेश में तहसीलदार के नाम का जिक्र नहीं, केवल उनके कार्यकाल को दर्शाया गया है।
बीपीएल कार्ड के लिए किए गए आवेदनों की प्राथमिक आर्डरशीट में न तो तारीख तक दर्ज नहीं है। इन आवेदन फार्म तक में जानकारी पूरी नहीं है। अधिकांश में नाम पूरे नहीं लिखे और आवेदन के हस्ताक्षर तक नहीं थे। इसके अलावा कई आवेदन ऐसे पाए गए, जिनमें ऐसे पटवारियों के नाम व हस्ताक्षर पाए गए हैं, जो उन हल्कों में कभी पदस्थ ही नहीं रहे। यानी पटवारियों के भी फर्जी हस्ताक्षर किए गए हैं। इस बार के आदेश में तहसीलदार के नाम का जिक्र नहीं, केवल उनके कार्यकाल को दर्शाया गया है।