शहर के स्वास्थ्य इतिहास में पहली बार लीवर ट्रांसप्लांट के लिए बनाया गया जबलपुर से भोपाल तक ग्रीन कॉरिडोर। - Aajbhaskar

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Friday, September 22, 2023

शहर के स्वास्थ्य इतिहास में पहली बार लीवर ट्रांसप्लांट के लिए बनाया गया जबलपुर से भोपाल तक ग्रीन कॉरिडोर।


Highlights :
  • लीवर ट्रांसप्लांट के लिए बीते 48 घंटे से बड़ेरिया मेट्रो प्राइम के डॉक्टरों की टीम ने मेहनत की: सौरभ बडेरिया
  • हार्ट और लीवर का ट्रांसप्लांट 4 घंटे के भीतर ही करना होता है।

आज भास्कर, जबलपुर : पीयूष के मामा जी राजेश श्रॉफ अब इस दुनिया में नहीं है। लेकिन उनका लीवर उनके बाद भी जीवित रहेगा। दरअसल बड़ेरिया मेट्रो प्राइम में 64 वर्षीय राजेश श्रॉफ को जब लाया गया। तो डॉक्टरों ने उनकी जांच की। परिवार वालों से बताया कि यह ब्रेन डेड हो चुके हैं। इस प्रक्रिया में मेट्रो हॉस्पिटल के डॉक्टर के अनुसार, ब्रेन डेड की प्रक्रिया के लिए चार तरीके के टेस्ट जरूरी होते हैं। इसके अलावा एक विशेष टेस्ट होता है, जो 24 घंटे में दो बार करना होता है।

इन सभी की रिपोर्ट्स आने के बाद एक कमेटी पेशेंट को ब्रेन डेड घोषित करती है। उसका सर्टिफिकेट जारी करती है।

मीडिया से बात करते हुए मेट्रो प्राइम हॉस्पिटल के चेयरमैन सौरभ बडेरिया ने बताया, कि किसी भी व्यक्ति का अंग डोनेट करने से पहले, उसकी या उसके परिवार की सहमति आवश्यक होती है। शरीर का अंग निकालने के बाद हर एक अंग का अपना एक समय होता है। और उसे उसी समय के भीतर ही उसे दूसरे शरीर में प्रत्यारोपित करना होता है। इस मामले में राजेश श्रॉफ के शरीर से निकल गए लीवर को, दूसरे के शरीर में ट्रांसप्लांट करने से पहले यह जानकारी भी निकालनी थी। कि नजदीक में ऐसा कौन सा मरीज है। जिसे तत्काल में लीवर की आवश्यकता है। इस मामले में भोपाल में बंसल हॉस्पिटल में भर्ती एक मरीज को लीवर की आवश्यकता थी। उससे संपर्क किया गया, दोनों का ब्लड ग्रुप मैच किया गया। इसके बाद सभी औपचारिकताओं को पूरा करने के बाद लीवर ट्रांसप्लांट की संभावना बनी। बीते 48 घंटे से हॉस्पिटल की टीम लगातार कम कर रही है। क्योंकि इस पूरी प्रक्रिया में एक-एक मिनट, और एक-एक सेकंड बड़ा कीमती होता है। यदि देरी हो जाए तो शरीर से निकल गया अंग, किसी काम का नहीं रह जाता। परिजनों की तरफ से पीयूष ने बताया कि, उनके मामा जी की शादी नहीं हुई थी। वह अकेले ही थे। लेकिन इसके बावजूद वह हमारे परिवार का अहम हिस्सा थे। दोस्तों के बीच वह काफी लोकप्रिय थे। और हमेशा जीवन भर लोगों की मदद करते रहे। हालांकि उन्होंने अपनी तरफ से जीवित रहते हुए, अंगदान से संबंधित किसी फॉर्म को साइन नहीं किया था। लेकिन बडेरिया मेट्रो प्राइम में लगे पोस्टर के जरिए पीयूष को अंगदान करने की प्रेरणा मिली। उन्होंने अपने परिवार से इस विषय में विचार विमर्श किया, और सभी की यह सहमति बनी। कि कम से कम किसी न किसी रूप में उनके मामा जी जीवित रहेंगे। इस बात को ध्यान में रखते हुए परिवार ने अपनी सहमति दी। भोपाल के बंसल हास्पिटल से डॉक्टरों की एक टीम आई। जिसने लीवर को लिया और शासन प्रशासन ने भी इस मामले में सहयोग करते हुए, सारे रास्ते पर ग्रीन कॉरिडोर बनाकर, लीवर को जरूरतमंद व्यक्ति तक पहुंचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस लीवर के ऑपरेशन में बड़ेरिया मेट्रो प्राइम के डॉक्टर सुनील गुलाटी, डॉ विशाल बडेरा, डॉक्टर हर्ष सक्सैना, डॉक्टर शैलेंद्र राजपूत, डॉ राजेश पटेल डॉक्टर सुनील जैन की भूमिका उल्लेखनीय रही।

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