
21 3.25 शुक्रवार
वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह की रिपोर्ट
आज भास्कर,जबलपुर। जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति और वित्त नियंत्रक कार्यालय में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी है इस पर एक रिपोर्ट
पिछले चार अंको में अपने पढ़ा है कि किस तरह कृषि विश्वविद्यालय का वित्त नियंत्रक कार्यालय गत छह माह से कृषि विज्ञान केंद्र के कर्मियों को वेतन भुगतान करने में नाकामयाब है। क्यों नाकामयाब है इस पर हम विस्तार से अगले अंक में चर्चा करेंगे।
अभी हम विश्वविद्यालय के ऊंची मूछ वाले और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अत्यंत करीबी , कुलपति पीके मिश्रा और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा की पसंद वित्त नियंत्रकअजय खरे की चर्चा करते हैं।
जिस उदाहरण को हम प्रस्तुत करने जा रहे हैं वह बालाघाट के शासकीय राजा भोज कृषि विश्वविद्यालय में फर्जीवाडा के सहारे अशासकीय सेवा से शासकीय सेवा में अंतर प्रांतीय प्रतिनियुक्ति फिर पदग्रहण और फिर संविलियन 05 10 2018 पाने वाली धारणा रामकिशोर टेंभरे पति शरद
बिसेन, और धारणा के ससुर शरद के पिता पूर्व कुलपति डॉक्टर प्रदीप कुमार बिसेन का मामला है।
पूर्व के तीन खोजी रपट में हम स्पष्ट कर चुके हैं कि जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय में केवीके के वैज्ञानिक अजय खरे , वित्त नियंत्रक कार्यालय में पूर्व कुलगुरु पी के बिसेन की कृपा से उपवित्त नियंत्रक बने और अब नए कुलगुरु पी के मिश्रा की कृपा से वित्त नियंत्रक के पद को सुशोभित कर रहे हैं।
वित्त नियंत्रक के पद के योग्य नहीं होते हुए भी यदि अजय खरे इस पद पर बैठे हैं तो निश्चित मान लीजिए की उनकी चाटुकारिता और चापलूसी का इसमें बड़ा योगदान है।
अजय खरे विश्वविद्यालय में राजनीति का बड़ा खमबा अर्थात वर्तमान कुलगुरु पीके मिश्रा को पकड़े हैं , इसीलिए कोई उनको हिला नहीं पा रहा है ऐसा सभी का मानना है। पीके मिश्रा से उपकृत होने की वजह से, वित्त नियंत्रक अजय खरे - पीके मिश्रा के लोगों को उपकृत करने का काम कर रहे हैं, ऐसे संकेत इस श्रीमती डॉक्टर धारणा रामकिशोर टेंभरे बेसिन के प्रकरण से मिल रहे हैं।
संयुक्त संचालक स्थानीय निधि संपरीक्षा सिविक सेंटर जबलपुर के आवासीय संपरिक्षक बालाघाट आरके कोस्टा ने अत्यंत गंभीर और आपराधिक प्रवृत्ति की वित्तीय अनियमितता पकड़ी है। यह ऑडिट अंकेक्षक की भलमन साहत है कि धांधली पकड़ने के बाद भी पूरा मामला वित्तीय अनियमितता और गबन का होने के बावजूद पुलिस अधीक्षक बालाघाट को प्रकरण नहीं सौंपा। केवल पूर्व मंत्री गौरी शंकर बिसेन की बहू होने का लाभ डॉक्टर धारणा बिसेन को मिला है। आवासीय संपरिक्षक आर कोस्ट ने धारणा का वेतन भुगतान करने में रोक लगाने का मार्गदर्शन 6 12 2023 दिया है।
धरना का वेतन भुगतान रोकने वाले पत्र 6 12 2023 की प्रतिलिपि कुलगुरु पीके मिश्रा और वित्त नियंत्रक अजय खरे को भी प्राप्त हुई है। कुलगुरु पीके मिश्रा और वित्त नियंत्रक अजय खरे तथा उनके वेतन निर्धारण शाखा का अनुवाद अधिकारी मिश्रा पूरे मामले को खोलकर पी गए क्योंकि मोटे-मोटे कथित लिफाफे पहुंच रहे थे। इसी प्रकरण की आड़ में कुलगुरु पीके मिश्रा ने भी अपनी कुर्सी सुरक्षित करने में भलाई समझी। आवासीय संपरिक्षक आर के कोस्टा बालाघाट का पत्र 6 12 2023 में दिया वेतन रोकने का
यह मार्गदर्शन तब तक लागू रहेगा जब तक डॉक्टर धारणा, उनके पति शरद बिसेन, बालाघाट कॉलेज के डीन nk बिसेन ऑडिट आपत्ति का विधि अनुरूप निस्तारण नहीं कर देते हैं।
प्रथमदृष्टया यह स्पष्ट कर दें कि बिसेन दंपति के पास आवक की कोई कमी नहीं है। जिस कॉलेज में धारणा फर्जीबाड़ा के सहारे
कृषि के योग्य छात्र का हक मार कर बैकडोर से कीटशास्त्र की सहायक प्राध्यापक बनी है। उसी बालाघाट कॉलेज में उनके पति शरद बिसेन भी कथित बैकडोर से अपने पिता, तत्कालीन संचालक विस्तार सेवा कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर रहे पीके बिसेन के कार्यकाल में उद्यान शास्त्र विभाग के सहायक प्राध्यापक की नौकरी पा गए । कुलगुरु पीके मिश्रा द्वारा अपने मित्र और सहपाठी पीके विषय के बेटे शरद को लाभ देने का यह अलग प्रकरण है।
(अर्थात वर्तमान कुलगुरु पीके मिश्रा और पूर्व कुलगुरु प्रदीप कुमार बिसेन ने अपने सगे रक्तसंबंधियों को अपने पद का लाभ दिया है। यह अधिकार संपन्न पद (कुलगुरु का पद) का दुरुपयोग होने के कारण दानडिक अपराध की श्रेणी में आता है) वेतन प्राप्त कर रहे हैं।
अब कहानी में आगे चलते हैं जहां से वित्त नियंत्रक अजय खरे का रोल 23 जनवरी 2025 सेशुरू होता है। और खुलकर भ्रष्टाचार में इंवॉल्व होने का उदाहरण बनता है।
धरना के प्रति नियुक्ति आवेदन 19 10 2016 और प्रस्तुत अन्य अभिलेखों में सामूहिक कूटरचना और कदाचरण के सहारे प्रतिनियुक्ति पर आने की पुष्टि ऑडिटर आर के कोस्टा को हुई । शासन को होने वाली आर्थिक क्षति को रोकने के लिए आर के कोस्टा की सख्ती और दबाव पड़ने पर गत 8 वर्ष से मलाई खा रही धरना और शरद को नवंबर दिसंबर 2024 से धारणा का वेतन बंद होने से बड़ा कष्ट हुआ है।
वेतन रुकना तो निश्चित था, परंतु बिसेन परिवार की राजनीति और बादशाहत को वित्तीय अनुशासन के नियम से कड़ी चुनौती मिल गई ।तब पिछले 8 साल से मुफ्त की मलाई खाने वाले धारणा और शरद छटपटाने लगे। इस छटपटाहट को खत्म करने के लिए बालाघाट कॉलेज के डीन एन के बिसेन, उत्तम बिसेन और डीडीओ घनश्याम देशमुख सक्रिय हो गए, लेकिन बाद में घनश्याम देशमुख लिखा पड़ी के साथ इस प्रक्रिया से विमुख और अलग होकर किनारे बैठ गए। पुराने डीडीओ घनश्याम देशमुख स्पष्ट समझ गए की यह आर्थिक अपराध अर्थात गबन अर्थात शासकीय राशि के अपभक्षण का मामला बन रहा है।
इसके बाद भी डीन एन के बिसेन और उत्तम बिसेन को समझ नहीं आया। उत्तम बिसेन इस मसले पर गत माह शासकीय कार्य निकालकर कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर आए थे और अमित शर्मा के माध्यम से फील्डिंग जमा कर लौट गए थे।
इसी योजना के तहत धरना और शरद ने बालाघाट से
जबलपुर में वित्त नियंत्रक अजय खरे को फोन लगाया , अजय खरे से मार्गदर्शन लिया , अजय खरे ने वकीलों के पास जाने की सलाह दी। अजय खरे की सलाह पर वकीलों ने एक पत्र ड्राफ्ट किया। पत्र का तैयार मसौदा लेकर बिसेन दंपति 22 और 23 जनवरी2025 के दरमियान जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय अधारताल जबलपुर स्थित वित्त नियंत्रक कार्यालय और कुलपति पीके मिश्रा के पास पहुंचे।
पीके मिश्रा के चरण स्पर्श किए पीके मिश्रा ने आशीर्वाद दिया और तुरंत वित्त नियंत्रक अजय खरे के पास भेज दिया। अजय खरे चतुरसुजान व्यक्ति हैं, अजय खरे ने अपना हाथ दबने से पहले नए कुलसचिव डॉक्टर एके जैन के को फसाने का प्रयास किया, जैसी कि अजय खरे की आदत है । अजय खरे ने 23 जनवरी की सुबह 11:30 बजे के लगभग कुलसचिव एके जैन के पास बिसेन दंपति को भेजा। वित्तीय अनियमितता का मामला कुलसचिव से संबंधित नहीं होने के कारण और वित्त नियंत्रक के अधीन होने के कारण कुल सचिव ए के जैन ने बिसेन दंपति को वापस अजय खरे के पास भेजा, अजय खरे अपने कार्यालय में बिसेन दंपति का इंतजार करते हुए मिले, तुरंत वकीलों का बनाया हुआ पत्र का आधिकारिक क्रमांक तो मुझे ध्यान उतना नहीं आ रहा है लेकिन जैसा मुझे ध्यान है, अजय खरे के वित्त नियंत्रक कार्यालय सेपत्र क्रमांक 1171 दिनांक 23 जनवरी 2025 तैयार किया गया। और कानूनी भाषा के सहारे गंभीर ऑडिट आपत्ति का निराकरण किया बिना , नियमानुसार वेतन दिया जाए की भाषा का उपयोग करते हुए 2 घंटे के अंदर बिसेन दंपति को पत्र 23 जनवरी 2025थमा कर वापस बालाघाट रवाना कर दिया गया।
सुधीर पाठक जान विचार करें कि भ्रष्टाचार करने वालों को आने-जाने में परेशानी ना हो इसीलिए विषय दंपति सुविधा से बालाघाट पहुंच जाए तुरंत पत्र तैयार कर पकड़ा दिया गया। कोई आम आदमी होता तो उसकी तो कोई बात ही नहीं की जाए।
(पत्र 23 01 25 में नियमानुसार वेतन दिया जाए, लिखना भी गलत है इस पर हम आगे विस्तार से चर्चा करेंगे,।)
अजय खरे ने पत्र 23 1 2025 में लिखी भाषा के माध्यम से एक तीर से दो शिकार करना चाह रहे थे,। अर्थात सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे,।
अजय खरे ने पत्र 23 1 2025 में जिस भाषा का इस्तेमाल किया , यह भाषा गलत *है*
अजय खरे कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक होने के कारण प्रशासनिक भाषा नहीं जानते हैं।
प्रशासनिक भाषा इस तरह की नहीं होती है, जो पत्र में इस्तेमाल की गई है। इस पर हम आगे चर्चा करेंगे,।)
अब हम आगे कृषि विश्वविद्यालय में इस पत्र की राजनीति का खुलासा करते हैं।
जिसमें आप 2 घंटे बदाम 70 दिन की तुलना करेंगे। भ्रष्टाचार किस तरह होता है इस पर चर्चा करते हैं।
पूरे प्रकरण पर गहरी नजर रख रहे आरटीआई कार्यकर्ता को इस बात का अंदेशा था कि बिसेन दंपति रुके हुए वेतन को शुरू करवाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाएंगे। इसी एड़ी चोटी के जोड़ के अंतर्गत बिसेन दंपति के परम संरक्षक कुलपति पीके मिश्रा और वित्त नियंत्रक अजय खरे की मदद से उन्हें 2 घंटे के भीतर वेतन भुगतान नियमानुसार किए जाने संबंधी पत्र मिल गया।
इस इस तरह का पत्राचार हो सकता है,इस आशंका के चलते आरटीआई कार्यकरता ने 13 जनवरी 2025 को आरटीआई अधिनियम की धारा 6 (1) के अंतर्गत एक आवेदन लगाया। आवेदन में धरना का रुका हुआ वेतन शुरू करने के संबंध में बालाघाट और जबलपुर के बीच हुए पत्राचार की प्रतिलिपि , कुलपति पीके मिश्रा और वित्त नियंत्रक अजय खरे से निशान अंतर्गत मुलाकात के संबंध में जानकारी चाही गई।
आरटीआई आवेदन धारा 6(1 ) के अंतर्गत 13 01 2025 को आवेदन प्रस्तुत किया गया।
वित्त नियंत्रक अजय खरे ने 23 1 2025 को 2 घंटे में पत्र बनाकर विशेष दंपति के हाथ में पकड़ा दिया।
30 दिन की निर्धारित समय अवधि के भीतर जानकारी देने के अधिनियम के प्रावधान का पालन अगले 60 दिन तक नहीं हुआ।
अब सुधी पाठक गण विचार करें की जो पत्र 2 घंटे के अंदर बिसेन दंपति के हाथ में पकड़ कर दे दिया गया उसे देने के मामले में विश्वविद्यालय के कुलपति पीके मिश्रा और वित्त नियंत्रक अजय खरीद सहमत नहीं थे। आरटीआई अधिनियम के नियमों का जानबूझकर दुर्भावना वर्ष उल्लंघन किया गया, यह उलझन इसीलिए किया गया तब तक संभवत विशेष दंपति की वेतन देना शुरू हो जाए। हालांकि आरटीआई एक्टिविस्ट का वेतन दिए जाने नहीं दिए जाने से कोई संबंध नहीं है वह एक प्रशासनिक प्रक्रिया के अंतर्गत सारी जानकारी प्राप्त कर रहा है।
और इस आरटीआई आवेदन 13.1.2025 पर वित्त नियंत्रक अजय खरे ने कह दिया कि यह उनसे संबंधित नहीं है।
60 दिन में जब जानकारी देने की स्थिति नहीं बनी तो आवेदक ने प्रथम अपील आवेदन दाखिल किया।
प्रथम अपील आवेदन दाखिल करने के तुरंत बाद वित्त नियंत्रक का एक पत्र 12 3.2025 आवेदक को प्राप्त हुआ कि आपके द्वारा जाहि गई जानकारी लोक सूचना अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत कर दी गई है।
यहां सुधी पाठक इस बात पर विचार करें कि जो पत्र 2 घंटे में विशेष दंपति को उपलब्ध करा दिया गया वही पत्र 60 दिन में भी आवेदक को नहीं मिला है।
13 मार्च 2025 को प्रथम अपील अधिकारी के पास आरटीआई कार्यकर्ता के पक्ष में न्यायाधीश पारित होने के बाद भी आज 22 मार्च 2025 तक लोक सूचना अधिकारी ए के जैन ने जानकारी नहीं दी है।
जनता अंदाजा लगा ले कि विश्वविद्यालय में भ्रष्ट आचरण का कॉकस कितना मजबूत है। दूसरे शब्दों में इन भ्रष्टाचार अधिकारियों को परोक्ष रूप से मुख्यमंत्री मोहन यादव का समर्थन जैसा भी माना जा सकता है।
क्योंकि यदि अधिकारी गलती कर रहा है तो इसमें शासन प्रशासन का भी रोल होता है।
यह इसीलिए कि मोहन यादव मुख्यमंत्री का पद ग्रहण करते समय ही, शिवराज सिंह की 15 साल पुरानी लॉबी को तोड़ने के लिए दो-तीन अधिकारियों को निलंबित कर चुके थे और चेतावनी दे चुके थे कि काम नहीं करोगे तो निलंबन किया प्रक्रिया जारी रहेगी।
घबरा आईएएस आईपीएस और अन्य अधिकारियों ने मोहन यादव जी को सेट करना शुरू किया इसमें विश्वविद्यालय भी शामिल है, और इसी प्रक्रिया के चलते भ्रष्ट आचरण वाले मजे उठा रहे हैं।
आप बेचारे मोहन यादव कहां-कहां देखे मुसीबत तो है लेकिन है तो है क्या किया जा सकता है, मोहन यादव एक समस्या निपटाते हैं 10 नहीं खड़ी हो जाती हैं अब वह कहां-कहां देते हो जितना बनता है उतना देखते हैं।
अब मैं वापस अपने मूल विषय में आता हूं कि जो पत्र दो घंटे में विशेष दंपति को देखकर उन्हें बालाघाट रवाना कर दिया गया वह पत्र आरटीआई अधिनियम के प्रावधान के अनुसार 30 दिन में नहीं दिया गया। प्रथम अपील में अपील करता के पक्ष में आदेश पारित होने के बाद भी 80 दिन में वह कागज अर्थात पत्र 23 जनवरी 2025 या जो भी तारीख हो वह नहीं दिया जा रहा है।
इस उदाहरण के मार्फत में यह बताना चाहता हूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार मिटाने की कितनी भी बड़ी-बड़ी बातें कर ले नीचे से ऊपर तक सब एक ही रंग में रंगे हुए हैं।
लेकिन यह उदाहरण एक नजीर है कि भ्रष्टाचार या भ्रष्ट आचरण या इस तरह की समस्त गतिविधियां बिना राजनीतिक संरक्षण के नहीं चल सकती।
सुधी पाठक इस बात की कल्पना करें कि जिस धारणा बिसेन को एक सादे कागज पर लिखे प्रतिनियुक्ति के कूटरचित आवेदन 19 10 2016 के आधार पर वर्तमान कुलगुरु पीके मिश्रा ने प्रशासनिक परिषद की 166 में बैठक 21 07 2017 मैं अनुमोदन के माध्यम से सरकारी कर्मचारी बना दिया, अब अपने आप को बचाने के लिए पीके मिश्रा हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
इस संभव प्रयास के अंतर्गत आरटीआई आवेदन 131.2025 में चाही गई जानकारी आज दिनांक तक आवेदक को उपलब्ध नहीं कराई गई है।
प्रथम अपील अधिकारी के आदेश के बावजूद लोग सूचना अधिकारी एके जैन इस बात का क्या कारण बताएंगे कि 13 मार्च 2025 को निर्णय होने के 11 बाद भी धरना बिसेन को वेतन दिए जाने संबंधी मार्गदर्शन का पत्र23 01 2025 उपलब्ध नहीं कराया है।
वित्त नियंत्रक अजय खरे ने भी 12 मार्च 2025 को पत्र दिया है कि आपकी चाही जानकारी लोक सूचना अधिकारी एक के जैन के पास भेज दी गई है।
मजे की बात यह है कि लोग सूचना अधिकारी एके जैन के सहायक लोग सूचना अधिकारी राकेश बोरकर लोक सूचना से संबंधित सभी आवेदन रिसीव करते हैं।
पर प्रथम अपील की सुनवाई के वक्त राकेश बोरकर नदारत रहते हैं। नेतागिरी में बने रहने वाले राकेश बोरकर या भली-भांति जानते हैं की प्रथम अपील में उनके खिलाफ आदेश पारित हो सकता है और इसीलिए वह अपने बचाव में प्रथम अपील की सुनवाई में उपस्थित नहीं होते हैं।
वास्तव में लोग सूचना अधिकारी के स्थान पर सहायक लोग सूचना अधिकारी ही प्रथम अपील में प्रतिनिधित्व करते हैं।
इस लेख का निष्कर्ष यह है कि भ्रष्ट लोगों के लिए सारा तंत्र सहयोग की मुद्रा में है। और जो पत्रकार आरटीआई कार्यकर्ता यदि समाज के भीतर ऐसे कोढ़ को उजागर करना चाहते हैं तो उन्हें कोई सहयोग नहीं दिया जाएगा
जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार की कृषि विश्वविद्यालय के भ्रष्टाचार पर पांचवी रिपोर्ट 22 3.2025