- रादुविवि में गुरुपूर्णिमा महोत्सव का आयोजन, पूर्व अध्यक्ष एवं आचार्य डाॅ. राधिक प्रसाद मिश्र का किया सम्मान, संगोष्ठी में रखे विचार
आज भास्कर/जबलपुर : 21जुलाई। जीवन में शिक्षा के साथ साथ विभिन्न क्षेत्रों में भी हम जिनसे कुछ सीखते हैं वे सभी गुरु तुल्य हैं। गुरु शिष्य का गहन आत्मीय संबंध होता है।गुरुओं को ऐसे आदर्श व्यक्ति के रूप में देखा जाता है, जो अपना जीवन सीखने और आत्म-सुधार के लिए समर्पित करते हैं। किसी भी आयोजन की सफलता टीम भावना से ही संभव है। ये विचार माननीय कुलगुरु प्रो. राजेश कुमार वर्मा ने रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय में आयोजित गुरुपूर्णिमा महोत्सव कार्यक्रम की अध्यक्षता करते करते हुए व्यक्त किये।
मप्र शासन उच्च शिक्षा विभाग द्वारा जारी आदेश के परिपालन में विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग स्थित डाॅ. हीरालाल जैन सभाकक्ष में रविवार को कुलगुरु प्रो. राजेश कुमार वर्मा, कुलसचिव डाॅ. दीपेश मिश्रा, विभागाध्यक्ष प्रो. धीरेन्द्र पाठक द्वारा संस्कृत विभाग के पूर्व अध्यक्ष व आचार्य डाॅ. राधिका प्रसाद मिश्र का शाल, श्रीफल एवं फूलमालाओं के द्वारा सम्मान किया गया। इसी प्रकार कुलगुरु प्रो. राजेश कुमार वर्मा, कुलसचिव डाॅ. दीपेश मिश्रा एवं विभाग अध्यक्ष प्रो. धीरेन्द्र पाठक का शाल, श्रीफल एवं फूल मालाओं से सम्मान किया गया। इस मौके पर आयोजित संगोष्ठी में प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए संस्कृत पालि एवं प्राकृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. धीरेन्द्र पाठक ने कहा कि गुरु पूर्णिमा मुख्यतः हमारे गुरुओं के प्रति कृतज्ञता और श्रद्धा व्यक्त करने का दिन है। ये गुरु औपचारिक आध्यात्मिक शिक्षक, वंश धारक या कोई भी व्यक्ति हो सकते हैं, जो ज्ञान और बुद्धि प्रदान करते हैं, जो हमें हमारे जीवन पथ पर मार्गदर्शन करते हैं।
गुरु पूर्णिमा के महत्व की दी जानकारी
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता एवं मुख्य अतिथि डाॅ. राधिका प्रसाद मिश्र ने कहा कि गुरु पूर्णिमा का दिन सभी गुरुओं के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करने के लिए सनातन हिन्दू परंपरा का एक पर्व है, सभी सनातनी हिंदू इसे संसार भर में मनाते हैं। यह हिंदू पंचांग के आषाढ़ माह की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता गुरु पूर्णिमा आध्यात्मिक गुरुओं और शिक्षकों को श्रद्धांजलि देने के लिए समर्पित एक प्रमुख त्यौहार है। गुरु पूर्णिमा है, उन गुरुओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और स्मरण का दिन है, जो हमारी राह को अंतर्दृष्टि और समझ से प्रकाशित करते इस दिन शिष्य परम्परागत रूप से प्रार्थना करते हैं, पूजा (पूजा अनुष्ठान) करते हैं, तथा अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मंत्र (पवित्र मंत्र) पढ़ते हैं तथा निरंतर मार्गदर्शन के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। हिंदू धर्मग्रंथों के आधार, वेदों को संकलित करने वाले श्रद्धेय ऋषि वेद व्यास की जयंती मनाई जाती है। ज्ञान के संरक्षण और प्रसार में उनकी भूमिका के लिए उन्हें गुरुओं का गुरु माना जाता है। संगोष्ठी में कुलसचिव डाॅ. दीपेश मिश्र ने कहा कि गुरु पूर्णिमा भारतीय ज्ञान प्रणालियों में गुरु-शिष्य परम्परा, अर्थात शिक्षक-शिष्य परंपरा का उत्सव मनाती है। यह परंपरा ज्ञान को संरक्षित करने और पीढ़ियों तक हस्तांतरित करने के महत्त्व पर जोर देती है। गुरुपूर्णिमा महोत्सव कार्यक्रम का संचालन डाॅ. सरिता यादव एवं आभार प्रदर्शन डाॅ. अखिलेश मिश्र ने किया। इस अवसर पर विधि विभाग की डाॅ. देवीलता रावत, हिन्दी विभाग की डाॅ. आशारानी, संस्कृत विभाग की डाॅ. साधना जनसारी, डाॅ. जया शुक्ला सहित श्री जितेन्द्र तिवारी, रामफल शर्मा, सौरभ गर्ग, जयकृष्ण उपाध्याय, अजय तिवारी, डाॅ. अजय मिश्रा, डाॅ. धीरेन्द्र कुमार, डाॅ. संजीव श्रीवास्तव, डाॅ. शैलेष प्रसाद, डाॅ. प्रवेश पाण्डेय, डाॅ अभय सिंह ठाकुर, डाॅ. अनुज प्रताप, डाॅ. हरीष यादव, डाॅ. दीपेश मिश्रा, डाॅ. देवांशु गौतम, डाॅ. विवेक गहरवाल, डाॅ. आशीष यादव,डाॅ. मोहनिका गजभिये सहित सहित सभी शिक्षण एवं शोधार्थी एवं छात्र-छात्राओं की मौजूदगी रही