कृषि विवि में रक्तसंबंधियों को शासकीय सेवा का लाभ दिलाने वाले तीन कुलगरूओं की रिपोर्ट - Aajbhasker

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Thursday, March 20, 2025

कृषि विवि में रक्तसंबंधियों को शासकीय सेवा का लाभ दिलाने वाले तीन कुलगरूओं की रिपोर्ट



जबलपुर से वरिष्ठ पत्रकार दिग्विजय सिंह की  रिपोर्ट 

क्रमांक 03

  • अपनों को दे रहे वित्तीय लाभ, शासकीय धन को पहुंचा रहे नुकसान 
  • कृषि विवि में रक्तसंबंधियों को शासकीय सेवा का लाभ दिलाने वाले तीन कुलगरूओं की रिपोर्ट
  • अशासकीय सेवक की अंतर्राजीय प्रतिनियुक्ति की वजह से बंद वेतन को शुरू करने के लिए जोर लगाने वाले वित्त नियंत्रक अजय खरे की कहानी


आज भास्कर\जबलपुर। आज से 8 वर्ष पहले जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु की सगे रक्तसंबंधियों को प्रभावी पद के माध्यम से शासकीय सेवा देने की योजना शुरु हुई। इस योजना में तीन कुलगुरु के नाम स्पष्ट तौर पर सामने आए हैं। आरटीआई अधिनियम के माध्यम से प्राप्त जानकारी में पूर्व कुलगुरु डॉ विजय सिंह तोमर, डॉ प्रदीप कुमार बिसेन और डॉक्टर प्रमोद कुमार मिश्रा का स्पष्ट संलिप्तता के  अभिलेख  आरटीआई से मिल गए हैं।  इन तीनों  पर पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय कृषिमंत्री शिवराज सिंह चौहान का वरदहस्त होने के संकेत मिले हैं। शासकीय अभिलेख और परिस्थितियां इसे प्रमाणित भी कर रहे हैं। विजय सिंह तोमर के बेटी दामाद और प्रमोद कुमार मिश्रा के बेटी दामाद पर हम बाद में चर्चा करेंगे।


पहले हम पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अत्यंत करीबी पूर्व कृषिमंत्री गौरी शंकर बिसेन के सगे रक्त संबंध भाई प्रदीप कुमार  बिसेन के पुत्र शरद बिसेन की पत्नी धारणा रामकिशोर टेंभरे बिसेन की वर्ष 16.8 . 2017 में अशासकीय सेवा से शासकीय सेवा में अंतरप्रांतीय प्रतिनियुक्ति, फिर 25.8 .2017 को शासकीय राजा भोज कृषि कॉलेज मुरझड़ फार्म तहसील वारासिवनी जिला बालाघाट में पदग्रहण कराया गया। पदग्रहण के बाद कथित 376 के मामले में विभागीय जांच मैं क्लीन चिट पाने का प्रयास कर रहे पूर्व डीन बालाघाट विजय बहादुर उपाध्याय ने कमप्लाएंस रिपोर्ट में डेपुटेशन प्राप्त अशासकीय सहायक अध्यापक धारणा को न्यूली अपाएंटेड फेकल्टी बनाकर पत्र 29. 8 . 2017 वर्तमान कुलपति डॉ प्रमोद कुमार मिश्रा और वर्तमान स्टूडेंट वेलफेयर अमित शर्मा को भेजा। दोनों ने इस चारसोबीसी, सामूहिक धोखाधड़ी सामूहिक कूटरचना और सामूहिक षड्यंत्र से ओतप्रोत  पत्र 29. 8 .17 को यथा अनुरुप स्वीकार किया। और बिना आपत्ति दर्ज करते हुए पत्र स्थापना और वित्त नियंत्रक अजय खरे तक पहुंचाया। 


इन अधिकारियों ने इस बात पर विचार किए बिना कि एक गोंदिया की अशासकीय सहायक प्राध्यापक की शासकीय सेवा में प्रतिनियुक्ति और नियुक्ति नहीं हो सकती फिर भी पत्र 29. 8. 2017 स्वीकार किया है। बालाघाट गैंग  के सदस्य और बालाघाट  के मूलनिवासी dsw अमित शर्मा और तत्कालीन  उपवित्त नियंत्रक  अजय खरे ने अशासकीय कॉलेज गोंदिया  की सेवा पुस्तिका को शासकीय सेवा पुस्तिका में परिवर्तित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। धारणा के छठवा वेतनमान सातवां वेतनमान लगने का एक भी अभिलेख गोदीया बालाघाट और जबलपुर में नहीं होने के बावजूद धारणा को सातवां वेतनमान प्रदान किया है। जब बालाघाट के 48 कर्मचारियों की सातवा वेतनमान की एंट्री के लिए सेवा पुस्तिका  डीन एन के बिसेन ने पूर्व उप वित्त नियंत्रक और वर्तमान वित्त नियंत्रक अजय खरे को भेजी तब अजय खरे ने डॉक्टर धारणा की सेवा पुस्तिका रोककर बाकी की सभी सेवा पुस्तिका में सातवां  वेतनमान की एंट्री करके सेवा पुस्तिका वापस बालाघाट भेज दी। लेकिन 2022 - 23 के दरम्यान धारणा की सेवा पुशती⁵का लगभग डेढ़ वर्ष तक जबलपुर में वेतन निर्धारण कार्यालय और अजय खरे के पास क्यों पड़ी रही इस इस बात का कोई तर्क सम्मत कारण अजय खरे के पास नहीं है ।


बालाघाट एन के  बिसेन के पास भी इस बात का कोई जवाब नहीं है कि जब वित्त नियंत्रक जबलपुर से धारणा बिसेन को सातवां वेतनमान देने की संस्तुति नहीं हुई तो उन्होंने क्यों सातवां वेतनमान देना शुरु किया। जब आरटीआई  कार्यकर्ता की पूछताछ शुरू हुई तो मजबूरी में बिना अनुमोदन और सत्यापन के डॉक्टर धारना कि सर्विस बुक  वर्ष 2023- 24 में वापस बालाघाट भेज दी । वास्तविकता यह है कि अजय खरे को पूर्व कुलगुरु डॉक्टर प्रदीप कुमार बिसेन ने उपकृत किया था। अजय खरे ,प्रदीप बिसेन की मेहरबानी से ही उपवित्त नियंत्रक के पद पर पदासीन  हुए थे। इसीलिए अजय खरे आज तक  के इतिहास में कितने बड़े, सुसंगठित कदाचरण, सुविचार षड्यंत्र हिस्सा बनते हुए इसे ढांकने का प्रयास कर रहे हैं।


अजय खरे इतने खतरनाक मामले में किस कदर शामिल है इसका उदाहरण मैं आपको बताता हूं। इस मामले में जब आवासी सम परीक्षक बालाघाट आर के कोष्टा ने गंभीर वित्तीय अनियमितता पाई तो 6.12.2023, को वेतन रोकने का निर्देश दिया। इतना घनघोर फर्जीवाड़ा देखकर पूर्व डीडीओ देशमुख ने अपने आप को तत्काल अलग किया और एक पत्र वर्तमान डीन बालाघाट एन के बिसेन को दिया और तत्काल पद छोड़ दिया।  डीडीo का पद छोड़ने की सूचना जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर को भी भेजी है। इतना होने के बाद भी अजय खरे की आंख नहीं खुली।


कृषि कॉलेज बालाघाट के नए डीडीओ  ने भी फाइल को छूने से इंकार कर दिया।
ऐसी स्थिति में पूर्व कुलपति पी के बिसेन के पुत्र शरद बिसेन और धारणा बिसेन सीधे कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर में कुलगुरु पी के मिश्रा के पास पहुंचे।


 इस 23 जनवरी 2025 के दरमियान बालाघाट के वकीलों की सलाह पर बिसेन दंपत्ति  विश्वविद्यालय आए, साथ में एक पत्र भी बनाकर लाए। वकीलों की भाषा में लिखे पत्र में वेतन पुनः दिए जाने संबंधी मार्गदर्शन बाबत लेख किया गया था। 


मुझे जो जानकारी है वह सही है या गलत है , मैं दावा नहीं करता लेकिन जो खबर है वह ,यह है कि वर्तमान कुलसचिव ए के जैन के सामने , पुराने रुआब के  चलते वह पत्र शरद बिसेन ने प्रस्तुत किया  और कहा कि अजय खरे ने भेजा है, आप इस पर हस्ताक्षर कर दो। जैन  साब अपनी आदत के अनुसार मुस्कुराए और बोले यह वित्तीय अनियमितता का मामला है। वित्त नियंत्रक ही इसे बेहतर सुलझा सकते हैं । अजय खरे ने जिस शातिराना  अंदाज में सांप को मारने और लाठी को बचाने का इरादा किया था, वहां खेल हो गया । भाषा पलट गया इस बार शकुनि का पांसा बैठने की बजाए युधिष्ठिर का पांसा बैठ गया , कुलसचिव कार्यालय से उल्टे बांस बरेली चले गए । शरद और धारणा  पुनः उनके सलाहकार और वित्त नियंत्रक अजय खरे के पास लौटे। अजय अरे ने दोनों को बैठाया ,चाय पानी कराई और कहा कोई बात नहीं मैं तो बैठा हूं, अभी चिट्ठी बना कर देता हूं, बताओ तुम्हारे वकीलों ने क्या लिखकर दिया है, अजय खरे ने कथित वकीलों के द्वारा बनाए गए वेतन शुरू करने के उस पत्र को पढ़ा और सहमति जताते हुए वेतन निर्धारण कार्यालय से अनुभाग अधिकारी मिश्रा को बुलाया और कहा यह पत्र रिकार्ड पर ले लो चढ़ा लो और  शरद को दे दो। पूरे मामले की खास बात यह है कि संयुक्त संचालक स्थानीय निधि संपरीक्षा सिर्फ सेंटर जबलपुर ने इतनी गंभीर वित्तीय हानि  के मामले में 10. 10 .2022 को संचालनालय भोपाल से मार्गदर्शन के लिए पत्र भेजा है। 2 साल से ऊपर बीते पत्र पर भोपाल से कोई जवाब नहीं आया है। इस पर दोबारा कोई रिमानडर  सिविक सेंटर जबलपुर से भोपाल संचालनालय को नहीं गया है।

 

क्योंकि हम सब जानते हैं कि ऐसे मार्गदर्शन के पत्र भोपाल इसीलिए जाते हैं ,भेजें जाते हैं कि ना तो कभी भोपाल से मार्गदरशन आएगा और ना ही दुबारा मार्गदर्शन मांगा जाएगा। इस तरह शासन की जेब में ईमानदारी से हाथ डालकर चूना लगाने का काम ब- दस्तूर चलता रहेगा। सयुक्त संचालक लोकल फंड ऑडिट जबलपुर की इस ऑडिट आपत्ति  10. 10. 2022 की खास बात यह है कि अजय खरे ने इस ऑडिट आपत्ति 11. 11 . 2022 को वित्त नियंत्रक कार्यालय जबलपुर में पावती किया है, हस्ताक्षर किया है, सील लगाई है नंबर चढ़ाया है अर्थात नंबर चढ़ाया है ,फिर 23 12 को पुन्हा आपत्ति पर टीप  दर्ज की है कि निराकरण  उपरांत विचार करना संभव होगा। इसके बाबजूद बिसेन दंपत्ति का वेतन पुनः चालू करने के लिए अजय खरे को कितना मोटा लिफाफा मिला है हम नहीं जानते लेकिन अजय खरे ने 23 जनवरी 2025 को रबर स्टांप की तरह कथित वकीलों के द्वारा तैयार पत्र को यथा अनुरुप स्वीकार किया और अपनी प्रशासनिक क्षमता/ अक्षमता  का परिचय देते हुए नियमानुसार वेतन देते रहे हैं, इसीलिए वेतन दिया जाए की टीप देते हुए लिखा पत्र 23. 1. 2025 बिसेन दंपत्ति के हाथ में ससम्मान पकड़ा दिया। कोई भी शासकीय पत्र किन परिस्थितियों में हाथों हाथ रवाना किया जाता है यह विचारणीय है। लेकिन इन सब बातों से वित्त नियंत्रक अजय खरे को क्या लेना देना, 

 


उपवित्त नियंत्रक की कुर्सी उन्हें पीके  बिसेन के माध्यम से मिली थी, इसीलिए वफादारी निभाना जरुरी थी। इसीलिए हाथों हाथ पत्र पकड़ा दिया गया। धारणा और शरद बड़े खुश होकर वापस बालाघाट लौटे और डीन एन के बिसेन को पत्र पकड़ा दिया।प्रदीप बिसेन , एन के बिसेन, उत्तम बिसेन यह सब एक ही गांव घर गर्रा  वारासिवनी के निवासी हैं ।आपस में रिश्तेदार हैं।,इसीलिए योग्य नहीं होते हुए भी कनिष्ठ वैज्ञानिक एन के बिसेन
  डीन के पद पर बैठे हैं,  सभी रिश्तेदारी वफादारी दिखा रहे हैं। जबलपुर से अजय खरे की चिट्ठी मिलने के बाद
डीन एन के बिसेन ने नई-नई पदस्थ डीडीओ पर दबाव डाला कि सेलरी बना दो, समझदार डीडीओ ने जवाब दिया -- पत्र आपके नाम आया है , वित्त नियंत्रक ने पत्र आपको दिया है ,आपको देना है तो अपनी रिस्क पर आप सैलरी दे दो, जब तक ऑडिट आपत्ती का क्लियरेंस नहीं हो जाता मैं सैलरी नहीं बनाऊंगी, मैं अपने वेतन से बाद में रिकवरी नहीं कराउंगी। शरद बिसेन दंपत्ति की योजना पर घड़ों पानी फिर गया। अजय खरे भी वफादारी निभाने के चक्कर में एक्सपोज हो गए। यह भी पता चल गया कि अजय खरे में वित्त नियंत्रक के गुण नहीं है। प्रमाणित हो गया कि कुलगुरु पीके मिश्रा जिस वित्त नियंत्रक अजय खरे पर भरोसा जता रहे हैं वह  अजय खरे वित्त नियंत्रक के पद पर बैठने लायक भी नहीं है।सिद्धांत आदर्श और सुचिता का आज चोला पहने वाली आरएसएस और उसकी राजनैतिक संस्था भजापा पूरी तरह हमाम के अंदर कैसे हैं , कृषि विवि में दिखने लगा है। प्रमाणित हो गया कि जवाहरलाल नेहरु कृषि विश्वविद्यालय में किस कदर राजनीति चाटूकारीता हावी है।

 


इस कहानी को आगे और विस्तार देंगे और समय-समय पर  सरकार को दो करोड़ का चुना लगाने वालों की कहानी बताते रहेंगे।

क्रमशः..............